Tuesday, November 12, 2019

गुरु नानक जयंती: गुरुद्वारों की सजावट, लंगर और कार्यक्रमों की तैयारी शूरु


आज श्री गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। आज के दिन पूरा शहर गुरु की भक्ती में लीन हो जाएगा। मंगलवार को यानी की आज श्री गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। आज के दिन पूरा शहर जगमगा जाएगा और गुरु की भक्ती में लीन हो जाएगा। इस प्रकाश पर्व के लिए शहर के विभिन्न गुरुवारों को साजाया जा रहा है। गुरुद्वारों को फूलों की माला दीप आदि लगाकर सजावट दी जा रही है। श्री गुरु सिंह सभा गुरु नानक देव का 550वां प्रकाश पर्व धूमधाम से मना रहें हैं। प्रकाश पर्व के दिन रोडवेज के निकट स्थित गुरुद्वारे पर मुख्य दरबार सजेगा। गुरु जी का अटूट लंगर शहर के हर गुरुद्वारे में बटे। इसी के साथ शहर के सभी गुरुद्वारों को भव्य रूप से सजाया गया है। प्रकाश पर्व की धूम पुरे शहर में अलग ही नज़र रही है। सभी गुरुद्वारों के सेवक और संगत सुबह से ही गुरुद्वारे में पहुंचकर कार्यक्रम का हिस्सा बनेंगे। सोमवार सुबह से ही सेवकों ने सजावट शुरु कर दी थी। साथ ही सेवकों ने बताया कि इस बार 550वें प्रकाश पर्व के अवसर पर पहली बार गुरुद्वारे को फूलों से सजाया जा रहा है। साथ ही सेवकों ने बताया कि गुरुद्वारे में पाठ, कीर्तन, लंगर आदि का आयोजन किया गया है। इसी के साथ आतिशबाजी का भी आयोजन किया जाएगा।


Wednesday, October 23, 2019

कबीर दास जी के दोहे


कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आई ।
अंतरि भीगी आतमा, हरी भई बनराई ॥
अर्थ: कबीर कहते हैं – प्रेम का बादल मेरे ऊपर आकर बरस पडा  – जिससे अंतरात्मा  तक भीग गई, आस पास पूरा परिवेश हरा-भरा हो गया – खुश हाल हो गया – यह प्रेम का अपूर्व प्रभाव है ! हम इसी प्रेम में क्यों नहीं जीते ! 

Friday, October 11, 2019

कबीर दास जी के प्रसिद्द दोहे


यह तन काचा कुम्भ है,लिया फिरे था साथ।
ढबका लागा फूटिगा, कछू न आया हाथ॥
अर्थ: यह शरीर कच्चा घड़ा है जिसे तू साथ लिए घूमता फिरता था.जरा-सी चोट लगते ही यह फूट गया. कुछ भी हाथ नहीं आया.

Sunday, September 29, 2019

कबीर दास जी के दोहे


तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी ।
मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ॥
अर्थ: तुम कागज़ पर लिखी बात को सत्य  कहते हो – तुम्हारे लिए वह सत्य है जो कागज़ पर लिखा है. किन्तु मैं आंखों देखा सच ही कहता और लिखता हूँ. कबीर पढे-लिखे नहीं थे पर उनकी बातों में सचाई थी. मैं सरलता से हर बात को सुलझाना चाहता हूँ – तुम उसे उलझा कर क्यों रख देते हो? जितने सरल बनोगे – उलझन से उतने ही दूर हो पाओगे.