Thursday, February 28, 2019

आज का पंचांग




आज का पंचांग - 01 मार्च 2019

जीवन में दाम्पत्य सुख के लिए भगवान गौरी शंकर की आराधना करना प्रेम को बढ़ता है।

विवाहित महिला व पुरुष शिवालय में जाकर शिवलिंग व माता पार्वती को मौली द्वारा सात बंधन में पिरोए तो अटूट बंधन जीवन में बंध जाता है। विवाहित महिला अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए माता पार्वती के चरणों में से सिंदूर को अपने माथे में लगाए तो उनके सुहाग की आयु लंबी होती है।



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इस मंदिर में विराजते हैं भगवान वेंकटेश्वर

हमारे भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो अपने आप में एक अलग महत्व रखते हैं। ऐसा ही एक मंदिर है तिरुपित वेन्कटेशवर मंदिर, जो आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति में स्थित है। तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार है और भगवान विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास भी किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। माना जाता है कि वैकुण्ठ में विष्णु इसी तालाब में स्नान किया करते थे। यह भी माना जाता है कि जो भी इसमें स्नान कर ले, उसके सारे पाप धुल जाते हैं और सभी सुख प्राप्त होते हैं। बिना यहाँ डुबकी लगाए कोई भी मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकता है। डुबकी लगाने से शरीर और आत्मा पूरी तरह से पवित्र हो जाते हैं।



भगवान वेंकटेश्वर के भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर यहां आकर अपने बाल अर्पण करके जाते हैं। ऐसा कर वे भगवान विष्णु के अवतार, वेंकटेश्वर की आर्थिक सहायता करते हैं ताकि वे धन कुबेर से लिया गया उधार चुका सकें। इस मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात इसकी दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का अद्भुत संगम है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनी 'सप्तगिरि' कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि वैकुंठ एकादशी के अवसर पर जो लोग यहाँ पर प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं उनके सभी पाप धुल जाते हैं। मान्यता है कि यहाँ आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।   

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कभी किसी से विश्वासघात न करें

यह बात उस समय की है जब पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी की फांसी में दो दिन ही बाकी थे। जब बिस्मिल जी गिरफ्तार हुए थे, वह चाहते तो वहां से भाग सकते थे। लेकिन वह भागे नहीं। इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी किया है, जो इस प्रकार है। उस आत्मकथा में रामप्रसाद बिस्मिल जी ने लिखा कि मुझे जब गिरफ्तार किया गया तो मेरे पास उस समय भी मौका था भागने का। जब मुझे कोतवाली लाया गया तो वहां पर निगरानी के लिए एक सिपाही रखा गया था लेकिन वह सो गया था। मुंशी ने उस सिपाही को जगाया और पूछा कि क्या तुम आने वाली विपत्ति के लिए तैयार हो? 



यह बात सुनकर सिपाही समझ गया और उनके पैरों पर गिरकर बोला कि नहीं मुंशी जी आप भागे तो मैं गिरफ्तार हो जाऊंगा, बाल-बच्चे भूखे मर जायेंगे। सिपाही की यह बात सुनकर मुझे उस पर दया आ गई और मैं वहां से भागा नहीं। रात के समय शौचालय का प्रयोग करने के लिए वह गए और उनके साथ मौजूद सुरक्षा में तैनात सिपाही ने उनकी रस्सी खोल दी। सिपाही को ऐसा करते देख दूसरे सिपाही ने उससे कहा कि ऐसा मत करो इसकी रस्सी मत खोलो। तो पहले वाले सिपाही बोले कि मुझे इनपर पूरा विश्वास है कि यह भागेंगे नहीं। रामप्रसाद बिस्मिल जी के दिमाग में कई बार सुझाव आया कि यह सही मौका है, यहां से भागने का। लेकिन वह भागे नहीं, उनके मन में विचार आया कि जिस सिपाही ने मुझ पर इतना भरोसा किया है तो मैं उसके साथ विश्वासघात कैसे कर सकता हूं। ऐसे थे रामप्रसाद बिस्मिल जी जिन्होंने खुद से पहले दूसरे को देखा।

Wednesday, February 27, 2019

परम पूज्य त्रिदंडी जिगर स्वामी जी से सनातन टीवी ने की खास बातचीत




परम पूज्य त्रिदंडी जिगर स्वामी जी महाराज से जानिए कैसे स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी महाराज ने लोगों को दिखाया था भक्ति का मार्ग

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आज का पंचांग - 28 फरवरी 2019


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जब हनुमान जी और महर्षि वाल्मीकि के बीच हो गई थी बहस

यह बात तो सर्वविदित है कि जब कभी कहीं भी राम कथा होती है तो वहां हनुमान जी गुप्त रूप से मौजूद होते हैं। और कुछ ऐसा ही हुआ महर्षि वाल्मीकि जी के साथ। यह बात उन दिनों की है जब महर्षि वाल्मीकि रामायण लिखा करते थे। वह दिनभर में जितनी भी रामायण लिखते, शाम को उसे वनवासियों को सुनाते। राम कथा सुनने के लिए काफी संख्या में वनवासी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में शाम के समय जुटते। 

एक बार वाल्मीकि अशोक वाटिका का प्रसंग सुना रहे थे। उन्होंने कहा कि हनुमान जी जब सीता माता की खोज करने अशोक वाटिका पहुंचे तो वहां उन्होंने सफेद फूल देखे। तभी वहां राम कथा सुन रहे एक वनवासी ने उन्हें रोका और बोला कि हनुमान जी ने सफेद नहीं, लाल फूल देखे थे। लेकिन वाल्मीकि जी नहीं माने और उन्होंने कहा, नहीं हनुमान जी सफेद फूल देखे थे। दोनों ही अपनी बात अड़े रहे।



 जब दोनों को बहस करते हुए काफी देर हो गई तो अंत में वाल्मीकि जी ने वनवासी से पूछा कि तुम्हें कैसे पता कि हनुमान ने वहां सफेद नहीं, लाल फूल देखे थे। तब वनवासी ने कहा कि मैं ही हनुमान हूं। ऐसा बोलते ही वह वनवासी अपने असली रूप में आ गया। हनुमानजी के वास्तविक रूप में आने के बाद भी वाल्मीकि जी अपनी बात पर अड़े रहे। उन्होंने हनुमान जी से कहा कि अशोक वाटिका में सफेद फूल ही थे, लाल नहीं थे। 

जब दोनों के बीच विवाद बढ़ गया तो मध्यस्थता कराने के लिए ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे इसका हल निकालने को कहा। तब ब्रह्मा जी ने हनुमान से कहा कि उन्होंने सफेद फूल ही देखे थे। लेकिन जब वो अशोक वाटिका में थे तो उस समय उनकी आंखें क्रोध से लाल हो रही थी। जिस कारण उन्हें सफेद फूल भी लाल दिखाई दे रहे थे। 

बहुत ही अद्भुत है कोणार्क का सूर्य मंदिर का रहस्य

भारत के ओडिशा राज्य के कोणार्क में एक ऐसा सूर्य मंदिर है जो अपनी खूबसूरती के साथ-साथ अपने अंदर कई रहस्य भी समाएं हुए है। यह मंदिर बहुत बड़े रथ के आकार में बना हुआ है, इसमें कीमती धातुओं के पहिये, पिल्लर और दीवारे बनी है। इस मंदिर के पहिये धूपघड़ी का काम करते जिसकी सहायता से हम दिन-रात दोनों ही समय सही समय का पता लगा सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर को पूर्वी गंगा साम्राज्य के महाराजा नरसिंहदेव ने 1253 से 1260 ई. में बनवाया था और वहां पर 1282 तक शासन भी किया था।



आज यह मंदिर UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साईट में भी शामिल है और साथ ही यह मंदिर भारत के 7 आश्चर्यों में भी शामिल है। यह मंदिर सूर्यदेव को समर्पित था, जिन्हें स्थानीय लोग बिरंचि-नारायण कहते थे। पुराणानुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। उन्हें ऋषि कटक ने इस श्राप से बचने के लिये सूर्य भगवान की पूजा करने की सलाह दी। साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्ष तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया। इसके बाद सूर्यदेव ने साम्ब के सभी रोगों का नाश कर दिया। 

कोणार्क के बारे यह भी कहा जाता है कि यहां आज भी नर्तकियों की आत्माएं आती हैं। अगर कोणार्क के पुराने लोगों की माने तो आज भी यहां आपको शाम में उन नर्तकियों के पायलों की झंकार सुनाई देगी जो कभी यहां राजा के दरबार में नृत्य करती थी। आश्चर्य की बात यह भी है कि कभी भी इस मंदिर में पूजा नहीं हुई। यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर में कभी पूजा नहीं हुई। कहा जाता है कि मंदिर के प्रमुख वास्तुकार के पुत्र ने राजा द्वारा उसके पिता के बाद इस निर्माणाधीन मंदिर के अंदर ही आत्महत्या कर ली जिससे बाद से इस मंदिर में पूजा या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

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Tuesday, February 26, 2019

काले अंगूर हैं आपकी सेहत के लिए फायदेमंद

इन सर्दियों में काले अंगूर बहुत मिलते हैं, जो हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। काले अंगूर का नियमित सेवन करने से डायबटीज, ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारियां, त्वचा व बालों की बीमारियों से निजात पा सकते हैं। इसके साथ ही यह आपकी याद्दाशत के लिेए भी काफी फायदेमंद है। काले अंगूर के और भी बहुत ऐसे लाभ है जो आपको अनेक बीमारियों से बचा सकते हैं। जानिए क्या-क्या है इसके और फायदे-

1. काले अंगूर का सेवन आँखों के लिए बहुत फायदेमंद है। इसमें पाए जाने वाला Lutein और Zeaxanthin तत्व आँखों को स्वस्थ रखता है और आँखों की रोशनी भी बढ़ाता है।

2. डायबिटीज के मरीज भी काले अंगूर खा सकते हैं। काले अंगूर में खूब फाइबर होता है जो शुगर लेवल घटाता हैं। इसके साथ ही यह आपका पाचन भी ठीक करता 

3. काले अंगूर नियमित खाने से माइग्रेन सरदर्द में आराम मिलता है और यह अल्झाइमर रोग से भी बचाता है।



4. झड़ते बालों के लिए काला अंगूर बहुत फायदेमंद है। काले अंगूर के बीजों को मसल कर बालों की जड़ों में लगायें और थोड़ी देर बाद ठंडे पानी से धोएं। इसमें पाए जाने वाला Linoleic acid बालों की जड़ों को मजबूत करता है और बाल झड़ने से बचाता है।

5. काला अंगूर में विटामिन C और विटामिन E होता है. इसलिए Kale Angoor के सेवन से युवा, चिकनी, निखरी हुई स्किन बनती है और चेहरा खूबसूरत होता है।

6. इस अंगूर में Anti-oxident और Anti-mutagenic गुण होते हैं, जिसकी वजह से काला अंगूर सभी प्रकार के कैंसर खासकर ब्रैस्ट कैंसर से बचाव करता है।

7. काला अंगूर किडनी की बीमारी में भी काफी फायदेमंद है। यह यूरिक एसिड का लेवल कम करके किडनी प्रेशर को कम करता है। 

8. अगर आप वजन घटाने की सोच रहे हैं तो यह आपके लिये काफी फायदेमंद है। अंगूर में मौजूद एंटी ओक्सिडेंट गुण शरीर में जमें टॉक्सिन्स को शरीर से बाहर निकालता है, जिससे आपका वजन घटता है।

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आज का पंचांग - 27 फरवरी 2019


अत्याचार के खिलाफ हमेशा आवाज उठाए

ये बात उन दिनों की जब भारत अंग्रजों का गुलाम था। स्वामी विवेकांद रेल से यात्रा करके कहीं जा रहे थे। रेल के जिस डिब्बे में स्वामी जी बैठे थे, उसी कोच में अपने बच्चे के साथ एक महिला भी यात्रा कर रही थी। यात्रा के दौरान रेल एक स्टेशन पर रूकी और उस स्टेशन से दो अंग्रेज अफसर चढ़े। वो डिब्बे में जा पहुंचे जहां स्वामी जी बैठे थे और महिला के सामने वाली सीट पर आकर बैठ गए। उन दिनों अंग्रेज हमेशा ही भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार करते थे और ये उनके लिए आम बात थी। 

थोड़ी देर बाद वो दोनों अफसर उस महिला के साथ बदसलूकी और भद्दी टिप्पणी करने लगे। वो महिला अंग्रेजी नहीं समझती थी, तो चुप रही। महिला को शांत देख दोनों अंग्रेज महिला को परेशान करने पर उतर आए। कभी उसके बच्चे को तंग करते। कभी बच्चे का कान मरोड़ते, तो कभी उसके गाल पर चुटकी काट लेते। परेशान होकर उस महिला ने अगला स्टेशन आने पर एक दूसरे कोच में बैठे भारतीय सिपाही से उन दोनों की शिकायत की। 



शिकायत पर वह भारतीय सिपाही उस कोच में आया, मगर अंग्रेजों को देखकर कुछ कहें बगैर ही वहां से वापस चला गया। जब रेल दोबारा चलने लगी तो दोनों अंग्रेज अफसरों ने अपनी हरकत फिर से शुरू कर दी। विवेकानंद काफी देर से यह सब देख-सुन रहे थे। वो समझ गए थे कि ये अंग्रेज इस तरह नहीं मानेंगे। वो अपने स्थान से उठे और जाकर उन अंग्रेजों के सामने खड़े हो गए।

उनकी सुगठित काया देखकर अंग्रेज सहम गए। पहले तो विवेकानंद ने उन दोनों की आंखों में घूरकर देखा। फिर अपने दायें हाथ के कुरते की आस्तीन ऊपर चढ़ा ली और हाथ मोड़कर उन्हें अपने बाजुओं की सुडौल और कसी हुए मांसपेशियां दिखाईं। विवेकानंद के रवैये से दोनों अंग्रेज अफसर डर गए और अगले स्टेशन पर वह दूसरे कोच में जाकर बैठ गए। बाद में विवेकानंद ने अपने एक प्रवचन में यही घटना सुनाते हुए कहा कि जुल्म को जितना सहेंगे, वह उतना ही मजबूत होगा। अत्याचार के खिलाफ तुरंत आवाज उठानी चाहिए।

आचार्य ब्रह्मार्षि ऋषिवर श्री किरीट भाई जी महाराज के मुखारविंद से अमृतमय श्रीमद् भागवत कथा का रसपान करें


बहुत ही रहस्यमयी है बाड़मेर का किराडू मंदिर

हमारे भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जिनके रहस्य बहुत चौंकाने वाले हैं। भारत के मंदिरों में आज भी कई ऐसे ऐतिहासिक राज दफन हैं, जिनके बारे में कोई नहीं जानता। ऐसा ही एक मंदिर है राजस्थान के बाड़मेर जिले में और इस रहस्यमयी मंदिर का नाम किराडू है। बाड़मेर का ये किराडू मंदिर खंडहरों के बीच बसा हुआ है। यह मंदिर देखने में बहुत खूबसूरत और विशाल है। बाड़मेर में रहने वाले लोगों का यह मानना है कि यदि कोई इंसान रात में यहां रुक जाए तो वह पत्थर का बन जाता है। 



इस मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रृद्धालुओं को बाड़मेर से करीब 39 किलोमीटर की दूरी तय करके जाना पड़ता है। वहां के लोगों का तो यह भी कहना है कि यह जगह श्रापित है। शाम होते ही यहां का नजारा देखकर हर इंसान की हालत खराब हो जाती है, कोई भी इंसान यहां नहीं रूकता और ना ही मंदिर के अंदर जाता। यही कारण है कि शाम होने के बाद कोई भी इस मंदिर के आस-पास भी नहीं भटकता है और ना ही मंदिर के अंदर पैर रखता। अब यह तो भगवान ही जाने की इस मंदिर की बात में कितनी सच्चाई है।

आचार्य ब्रह्मार्षि ऋषिवर श्री किरीट भाई जी महाराज के मुखारविंद से अमृतमय श्रीमद् भागवत कथा का रसपान करें


Monday, February 25, 2019

सनातन टीवी ने परम पूज्य खटलेश स्वामी जी महाराज से की खास बातचीत


आज का पंचांग - 26 फरवरी 2019


योग से आप रहेंगे स्वस्थ्य व तंदुरुस्त

योग शरीर के समस्त रोगों के लिए एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। यह मानव की हर तरह की शुद्धि का आसान उपकरण है। योग के माध्यम से शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ किया जा सकता है और इन तीनों के स्वस्थ रहने से आप स्‍वयं को भी स्वस्थ महसूस करते हैं। योग प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाकर जीवन में नई ऊर्जा का संचार करता है। शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए अपनाया जाने वाला योग कई मायनों में अन्य तरकीबों से अलग है। अगर आप पहली बार योग का अभ्यास शुरू कर रहे हैं तो कई बातों का ध्यान जरूर रखें। 

1. शरीर को रीलेक्स करें और हल्का वार्मअप करें - आई बॉल, जीभ, हाथ-पैर की कलाइयां, पैर के पंजे, कमर व गर्दन को दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे करते हुए गोल-गोल क्लॉकवाइज और एंटी क्लॉकवाइज घुमाएं। अपने हाथ की मुठ्ठी को खोलें और बंद करें। इसी तरह पैरों की अंगुलियों की भी योग एक्सरसाइस करें। खुलकर हंसे और छींक को रोके नहीं। जब शरीर का वार्मअप पूरा हो जाए तो फिर योगा के आसन करना शुरु करें।  

2. संयम और धैर्य रखें - योग करते समय संयम और धैर्य जरूर रखना चाहिए, हर व्यक्ति की क्षमता अलग होती है, और उसी हिसाब से वह योग करता है। इसलिए अगर आप संयम के साथ योग सीखेंगे तो सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।



3. आसन करते समय मुंह से सांस ना लें - श्वास योग में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। श्वास की प्रक्रिया को नियंत्रित किये बिना के योग करना अधूरा है। आसन करते समय कभी भी मुंह से श्वास ना लें। योग-प्रशिक्षक से जानकारी लेकर योग-आसन करते समय नियम के अनुसार ही श्वास लें।

4. रोगों से लड़ने की मिलती है शक्ति - शारीरिक व मानसिक रोग तनाव व चिंता से भी होते हैं। इन्हें दूर करने के लिए यौगिक क्रियाएं उत्तम हैं। प्राणायाम और मेडिटेशन करना मानसिक समस्याओं में बेहद फायदेमंद है।

5. योग के 3 घंटे बाद भोजन ग्रहण करें - अगर योग सुबह खाली पेट किया जाए तो बहुत लाभदायक होता है। अगर यह संभव नहीं हो तो योग और भोजन के बीच कम से कम 3 घंटे का अंतर रखें। योग करने के कुछ समय बाद आप भोजन कर सकते हैं लेकिन योग के पहले कम से कम 3 घंटे भोजन ना करें। 

6. मालिश : मालिश से माँस-पेशियाँ पुष्ट होती हैं। दृष्टि तेज होती है व नींद भी अच्छी आती है। शरीर में शक्ति उत्पन्न हो शरीर का वर्ण सोने के समान हो जाता है। मालिश से रक्त संचार सुचारू रूप से चलता है। स्वच्छ खून जब धमनियों में दौड़ने लगता है तो वह शरीर को कांतिमय बना देता है। इससे तनाव, अवसाद भी दूर होता है। 

महादेव के इस मंदिर में 5000 सालों से जल रहा है अग्निकुंड

हमारे भारत देश में कई ऐसे अद्भुत मंदिर हैं, जिनका इतिहास एक या दो साल नहीं बल्कि कई सालों पुराना है। ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर हिमाचल प्रदेश के करसोगा घाटी के ममेल गांव में स्थित है। इस प्राचीन मंदिर का नाम ममलेश्वर महादेव मंदिर है, जो पूरे भारत में प्रसिद्ध है। 



महादेव का यह अद्भुत मंदिर हिमाचल प्रदेश की करसोगा घाटी के ममेल गांव में स्थित है। यह प्राचीन मंदिर 5000 सालों से भी ज्यादा पुराना है और महाभारत काल में घटित घटनाओं से भी इस मंदिर का बहुत गहरा संबंध है। क्योंकि इस मंदिर में पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय यहीं बिताया था। महादेव के इस मंदिर में महाबली भीम से जुड़ी कई निशानियां मौजूद हैं। 

मंदिर में एक ऐसा अग्निकुंड भी है जो महाभारत काल से ही जलता हुआ आ रहा है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर में 5000 साल पुराना गेहूं का दाना भी है, जिसका वजन 200 ग्राम है और इस गेहूं को पांडवों ने ही उगाया था। साथ ही मंदिर में भीम का एक प्राचीन ढोल भी है, इस ढोल की लंबाई 6 फीट से भी ज्यादा है। ममलेश्वर महादेव मंदिर में पांच शिवलिंग भी स्थापित हैं। लोगों का कहना है कि पांडवों ने ही इनकी स्थापना की थी। 

Sunday, February 24, 2019

स्वामी विवेकानंद ने बताया जीवन में क्या है मां का महत्व

एक दिन की बात है जब स्वामी विवेकानंद एक सभा को संबोधित कर रहे थे। तब एक जिज्ञासु ने उनसे प्रश्न किया कि इस संसार में मां की महिमा कि वजह से गाई जाती है? स्वामी जी मुस्कुरा कर उस व्यक्ति से बोले कि तुम एक काम करो, पांच सेर वजन का एक पत्थर ले आओ। जब व्यक्ति पत्थर ले आया तो स्वामी जी ने उससे कहा कि अब इस पत्थर को किसी कपड़े में लपेटकर अपने पेट पर बाँध लो और चौबीस घंटे बाद मेरे पास आओ तब मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा।



स्वामी जी के आदेशानुसार उस व्यक्ति ने पत्थर को अपने पेट पर बांध लिया और वहां से चला गया। पेट पर पत्थर बंधे हुए ही वो दिनभर अपना काम करता रहा, लेकिन काम करते समय उसे परेशानी और थकान महसूस हुई। शाम होते ही पत्थर का बोझ संभाले हुए उसके लिए चलना-फिरना असह्य हो उठा और उसके पास उस पत्थर को संभालने की ताकत भी नहीं रही। थका-हारा वह व्यक्ति स्वामी जी के पास पंहुचा और बोला कि मैं इस पत्थर को अब और अधिक देर तक नहीं बांध सकता।

उसने बोला कि मैं बहुत थक गया हूं और मेरा चलना-फिरना मुश्किल हो गया है। एक प्रश्न का जबाव पाने के लिए मैं इतनी कड़ी सजा नहीं भुगत सकता हूं। स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले कि पेट पर इस पत्थर का बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया। जबकि मां अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को पूरे नौ माह तक ढ़ोती है और गृहस्थी का सारा काम करती है। संसार में मां के सिवा कोई इतना धैर्यवान और सहनशील नहीं है। इसलिए माँ से बढ़ कर इस संसार में कोई और नहीं। 

आज का पंचांग - 25 फरवरी 2019


Saturday, February 23, 2019

राजा विक्रमादित्य ने की थी इस मंदिर की स्थापना

शनिवार के दिन शनिदेव के दर्शन करने से सारे कष्ट दूर होते हैं और पूजा करने से शनि ढय्या खत्म होती है। वैसे तो शनिदेव के कई सारे मंदिर हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में एक ऐसा मंदिर है जिसकी कई सारी विशेषताएं। यह मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के पट पर यह नवग्रह शनि मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना राजा विक्रमादित्य ने 2 हजार साल पहले की थी। राजा विक्रमादित्य ने मंदिर बनाने के बाद यही से विक्रम संवत की शुरुआत की थी। 



यह एक ऐसा मंदिर जहां शिव के रूप में शनि विराजित हैं और लोग मनोकामना पूर्ण करने के लिए यहां तेल चढ़ाते हैं। जिन लोगों पर शनि की ढय्या का प्रभाव होता है, वे ढय्या शनि को तेल चढ़ाते हैं। शनि की साढ़ेसाती और अन्य समस्याओं के लिए शनि की मुख्य प्रतिमा की पूजा की जाती है। शनि अमावस्या के दिन इस मंदिर में भीड़ लग जाती है और भक्त शनिदेव को तेल चढ़ाते हैं। मंदिर में इतनी भीड़ हो जाती है कि लोगों को दर्शन करने भी मुश्किल होते हैं। इसलिए लोगों को आसानी से दर्शन हो सकें, मंदिर के बाहर एलईडी डिस्प्ले की व्यवस्था की गई है। 

खाने में जरूर करें काले नमक का इस्तेमाल, होंगे कई बेहतरीन फायदे

नमक एक ऐसी चीज है जिसके बगैर हमें खाने में कोई स्वाद ही नहीं आता। जब तक खाने में नमक ना हो तो वो खाना फीका लगता है। लेकिन क्या आपको पता है सफेद नमक हमारी सेहत के लिए ज्यादा अच्छा नहीं है। सफेद नमक में सोडियम, अन्य केमिकल की मात्रा ज्यादा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लेकिन आप अपने खाने में काला नमक भी उपयोग कर सकते हैं। काले नमक में 80 प्रकार के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। 

1. अगर आपके जोड़ो में दर्द है तो काला नमक आपके लिए लाभकारी है। गर्म पानी में काला नमक मिलाकर दर्द वाली जगह पर सिकाई करने से दर्द में बहुत जल्दी आराम मिलता है। लेकिन इसका परिणाम तभी मिलता है जब सिकाई रोजना की जाए।
2. शरीर में मौजूद बैक्टीरिया बीमारियों को फैलाने का काम करता है। शरीर के बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए रोजाना नमक वाला पानी पीएं। नमक वाला पानी पीने से गंदे बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं। 
3. काले नमक का सेवन करने से अस्थमा जैसी पेरशानियों से छुटकरा मिलता है। आप इसे गुनगुने पानी में उबले अंडे में डालकर सेवन कर सकते हैं। काले नमक से बने गर्म पानी की भाप से कफ और खासी छूमंतर हो जाती है।



4. लिवर से संबंधित परेशानी से छुटकारा पाने के लिए काले नमक वाला पानी पीएं। रोजाना यह पानी पीने से लिवर के डैमज सैल्स दोबारा सही होने लगते हैं। इसके साथ ही नमक का पानी शरीर से टॉक्सिन दूर करता है। 
5. बालों की रूसी दूर करने में काला नमक सहायक है। बालों का समय से पहले झड़ना, सफेद होना और रूखे-रूखे होने से रूसी की समस्या ज्यादा होती है। काला नमक और लाल टमाटर का लेप बना कर बालों पर लगाने से जल्दी ही रूसी बालों से गायब हो जाएगी।
6. सुबह खाली पेट गुनगुने पानी में नींबू का रस और एक चुटकी काला नमक मिलाकर रोजना पीएं, तो कुछ ही दिनों में आपका हाजमा एकदम जबरदस्त हो जाएगा। पेट में गैस, जलन, अपच, पेट फूलना आदि की समस्या से जल्द छुटकारा मिलेगा। 
7. काला नमक प्राकृतिक रूप से पाए जाने के कारण इसमें तत्वों और खनिज पदार्थों की प्रचुरता होती है। इसमें सोडियम, क्लोराइड, सल्फर, आयरन, हाइड्रोजन जैसे तत्वों के साथ-साथ 80 प्रकार के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं, जो हमारे शरीर के लिए किसी न किसी रूप में फायदेमंद हैं।

Friday, February 22, 2019

आत्मीय अहसास से बनते हैं रिश्ते

यह बात उस समय की है जब प्रभु श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण 14 वर्ष के लिए वनवास गए हुए थे। श्री राम उनके भाई लक्ष्मण और माता सीता तोनों ही चित्रकूट की ओर जा रहे थे। पहाड़ी रास्ता था, हर तरफ नुकीले पत्थर और कांटे पड़े हुए थे। श्री राम को बार-बार कांटे चुभ रहे थे और ठोकरें लग रहीं थीं। मगर, श्री राम के कदम डगमगाए नहीं और ना ही वो क्रोधित हुये। हाथ जोड़कर धरती माता से अनुरोध करने लगे कि 'मां, मेरी एक विनम्र प्रार्थना है आपसे, क्या आप स्वीकार करेंगी?' प्रभु राम का अनुरोध भला कोई कैसे ठुकरा सकता है। धरती माता बोलीं- 'प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए।'



यह सुन कर भी राम ने अपनी विरम्रता नहीं खोयी और बोले कि 'मां, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज में इस पथ से गुजरे तो आप नरम हो जाना। कुछ पल के लिए अपने आंचल में ये पत्थर और कांटे छुपा लेना। मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे प्यारे भाई भरत के पांव में आघात मत करना। धरती माता कुछ सोच में जरूर पड़ गयीं। फिर उन्होंने पूछा- 'भगवन, मेरी धृष्टता माफ करियेगा! मगर क्या आपके भ्राता भरत आपसे अधिक सुकुमार हैं? जब आप इतनी सहजता से कांटे की चुभन सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नहीं कर पाएंगे? फिर उनको लेकर आपके चित्त में ऐसी व्याकुलता क्यों?' 

श्री राम ने कहा कि 'नहीं माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नहीं समझीं। भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पांव को नहीं बल्कि उसके हृदय को विदीर्ण कर देगा। मां, वह अपनी पीड़ा से नहीं बल्कि यह सोचकर तड़प उठेगा कि इसी कंटीली राह से मेरे भैया राम गुजरे होंगे और ये शूल उनके पगों में भी चुभे होंगे। मैया, मेरा भरत कल्पना में भी मेरी पीड़ा सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति में आप कमल पंखुड़ियों सी कोमल बन जाना।' 

Thursday, February 21, 2019

बहुत अनूठा है मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर

भारत के तमिलनाडु राज्य के मदुराई शहर एक ऐसा हिंदू मंदिर है जो अपने आप में बेहद खास है। मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर स्थापत्य एवं वास्तुकला की दृष्टि से आधुनिक विश्व के आश्चर्यों में गिना जाता है। यह मंदिर माता पार्वती को समर्पित है जो मिनाक्षी के नाम से जानी जाती है और शिव जो सुन्दरेश्वर के नाम से जाने जाते है। पूरे दक्षिण भारत में इस मंदिर में मां मीनाक्षी की पूजा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ की जाती है। 



हिन्दु पौराणिक कथानुसार, पांड्या राजा मलयध्वज की तपस्या से प्रसन्न होकर मां पार्वती ने अपने अशं के रूप में रानी कंचनशाला की कोख से जन्म लिया और उनका नाम मीनाक्षी रखा गया। जब मीनाक्षी बड़ी हो गई तो भगवान शिव सुन्दरेश्वरर रूप में देवी मीनाक्षी से विवाह की इच्छा से धरती पर आये और देवी मीनाक्षी से विवाह करने का प्रस्ताव रखा और उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस मंदिर की इमारत में 12 भव्य गोपुरम है, जिन पर महीन चित्रकारी की है। इस मंदिर का विस्तार से वर्णन तमिल साहित्य में प्राचीन काल से होता आया है। वर्तमान में जो मंदिर है, यह 17वीं शताब्दी में बनवाया गया था। मंदिर में आठ खंभो पर आठ लक्ष्मीजी की मूर्तियां अंकित हैं। इन पर भगवान शंकर की पौराणिक कथाएं उत्कीर्ण हैं। 

Wednesday, February 20, 2019

काली मिर्च के बेहतरीन फायदे

हमारी हर घर की रसोई के खास मसालों में काली मिर्च का प्रयोग होता है। काली मिर्च क्वीन ऑफ स्पाइस नाम से काफी प्रसिद्ध है। इसमें केल्शियम ,आयरन, फास्फोरस, कैरोटिन, थाईमन जैसे पोष्टिक तत्व होते है। काली मिर्च हमारे भोजन के स्वाद को बढ़ाती ही है साथ ही कई बीमारियों से भी बचाती है। काली मिर्च के कई बेहतरीन फायदे हैं।

1. सर्दी में खांसी, जुकाम, बंद नाक, ठंडी लगने जैसी बीमारियों से निजात पाने के लिए अदरक-कालीमिर्च-तुलसी-शहद का काढ़ा बनाकर पियें या फिर कूटकर चाय के साथ उबाल कर पिये। 

2. सर में रूसी की समस्या दूर करने के लिए 1 चम्मच पीसी काली मिर्च चूर्ण को दही में मिलाकर सर की त्वचा में लगायें। आधे घंटे लगे रहने के बाद पानी से धो दें। इससे आपको फायदा होगा।

3. काली मिर्च में विटामिन ए, विटामिन सी, एंटी-ओक्सिडेंट, फलेवोनोइडस जैसे गुम पाए जाते हैं। काली मिर्च एंटी बैक्टीरियल गुण स्वांस सम्बन्धी रोगों को भी दूर करता है।



4. काली मिर्च चेहरे की समस्याओं के लिए काफी उपयोगी है। गुलाब जल में 15 से 20 काली मिर्च पीस लीजिये। इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएँ और सुबह गरम पानी से चेहरे को धो लें, आपके चेहरे पर मुहांसे और दाग धब्बे ठीक हो जायेंगे।  

5. पेट में यदि कीड़े हो गए हों जिसकी वजह से भूख कम लगती है और निरंतर वजन कम होने लगता है। इसका एक बड़ा कारण खराब खान पान हो सकता है। इसके लिए आप किशमिश के साथ काली मिर्च खाएं या फिर छाछ में काली मिर्च व काला नमक मिलाकर पिये काफी लाभ होगा।

6. बाजार में काली मिर्च एसेंशियल आयल मिलता है, जो काफी फायदेमंद है। इस तेल की तासीर गर्म होती है। इस तेल की मालिश से रक्त संचार तेज होता है, जिससे आर्थराइटिस, गाउट, गठिया रोग में आराम मिलता है।

7. काली मिर्च से शरीर का मोटापा भी घटता है। इसमें फाइट्रोन्यूट्रीयस नामक तत्व होता है जो अतिरिक्त चर्बी को काटता है। इसलिए काली मिर्च के सेवन से पेट की एक्स्ट्रा चर्बी हट जाती है। यह मेटाबोलिज़म को बेहतर बनाती है। साथ ही पेट से जुड़ी समस्याओं से भी राहत दिलाती है।

डर से भागो मत उसका सामना करो

यह बात उस समय की जब स्वामी विवेकानंद जी बनारस की यात्रा पर थे। वह बनारस की गलियों का भ्रमण कर रहे थे और मंदिरों के दर्शन कर रहे थे। मंदिरों का भ्रमण करते-करते स्वामी जी दुर्गा मां के मंदिर ले निकले। तभी वहां मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया। बंदर उनके नजदीक आते और तरह-तरह की आवाजें निकाल कर उन्हें डराने की कोशिश करते। स्वामी जी यह देख बहुत भयभीत हो गए और खुद को बचाने की सहजवृत्ति ने उन्हें भागने पर विवश कर दिया। स्वामी जी जल्द से जल्द वहां से निकल जाना चाहते थे। वो दौड़ कर भागने लगे, पर बन्दर तो मानो पीछे ही पड़ गए थे। वे उन्हें दौडाने लगे।



वहीं, पास में खड़ा एक वृद्ध सन्यासी ये सब कुछ देख रहा था। स्वामी विवेकानंद को डरकर भागता देख उसने उन्हें रोका और समझाते हुये बोला- ''रुको! भागो मत, उनका सामना करो!'' यह सुनते ही स्वामी जी तुरन्त रुक गये। रुक कर वो पलटे और बंदरों की तरफ बढ़े। तेजी से उनके करीब जाने लगे। उनकी इस निडरता को देख बंदर ही उनसे डर गये और उनसे दूर भाग गये। इस घटना ने स्वामी जी को बड़ी सीख दी। इस वाक़ये के कई सालों बाद स्वामी ने एक भाषण के दौरान कहा भी था- ''अगर तुम कभी किसी भी बात या हालात से डर गये तो उससे भागना मत, पलटना और उसका सामना करना।''

आज का पंचांग - 21 फरवरी 2019


जानिए क्यों करना चाहिए दान

हमारे हिंदू धर्म में दान का बहुत महत्व है। हर मनुष्य को अपनी श्रद्धा के अनुसार कुछ न कुछ दान अवश्य करना चाहिए। दान एक ऐसा कार्य है, जिसके जरिए हम न केवल धर्म का पालन करते हैं बल्कि अपने जीवन की तमाम समस्याओं से भी छुटकारा मिता है। जीवन में सारी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए दान का विशेष महत्व है। दान करने से ग्रहों की पीड़ा से भी मुक्ति पाना आसान होता है। दान हमेशा उस ही व्यक्ति को देना चाहिए, जिसे उसकी आवश्यकता अधिक हो, ऐसा करने से मनुष्य की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। धन-धान्य से संपन्न मनुष्य या दुराचारी मनुष्य को दिया जाने वाला दान व्यर्थ माना जाता है। 



जिस इंसान को दान करने में आनंद मिलता है, उसे ईश्वर की असीम कृपा प्राप्त होती है क्योंकि दान इंसान को श्रेष्ठ और सत्कर्मी बनाता है। अगर आप अनाज का दान करते हैं तो आपके जीवन में अन्न का अभाव नहीं होता। वस्त्रों का दान करने से आर्थिक स्थिति हमेशा उत्तम होती है। आप उन्हीं स्तर के कपड़ों को दान करें, जिस स्तर के कपड़े आप पहनते हैं। कभी भी फटे या खराब वस्त्रों का दान न करें। तिल का दान करने वाले मनुष्यों को संतान की प्राप्ति होती है और जो लोग लोहा दान करते हैं उनको सारे रोगों का नाश होता है व शनि के दोषों का भी निवारण होता है। स्वर्ण का दान करने से आयु लंबी होती है और कपास का दान करने वाले लोगों के जीवन में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है।

किसी औषधि से कम नहीं दालचीनी

हमारे हर घर में दालचीनी का उपयोग मसालों के रूप में किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दालचीनी आपकी हर बीमारी का इलाज करने में सक्षम है। दालचीनी को पेड़ की छाल से बनाया जाता है और यह आपको बाजार में सूखे छाल या फिर पाउडर के रूप में उलब्ध हो जाएगी। दानचीनी में शक्तिशाली रोगापुरोधी, एंटी-इंफ्लेमेटरी, संक्रामक विरोधी और एंटी-क्लोटिंग गुण होते हैं। यह एंटी-ऑक्सिडेंट, पॉलीफेनोल और मैंगनीज, आयरन और फाइबर जैसे खनिजों का भी एक अति उत्कृत्ट स्रोत है। साथ ही यह शर्करा, कार्बोहाइड्रेट, फैटी एसिड और एमिनो एसिड का भी एक अच्छा स्रोत है। इसके पोष्ख तत्व आपके शरीर को स्वस्थ्य रखने में मदद करते हैं। अगर दालचीनी का उपयोग शहद के साथ किया जाए तो यह आपके शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। 

1 दालचीनी का प्रयोग कैंसर जैसे रोग पर नियंत्रण पाने में सक्षम है। वैज्ञानिकों ने अमाशय के कैंसर और हड्डी के बढ़ जाने की स्थिति में दालचीनी और शहद को लाभदायक बताया है। एक माह तक गरम पानी में दालचीनी पाउडर और शहद का सेवन इसके लिए बेहद फायदेमंद होता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है, जिससे शरीर बीमारियों से लड़ सके।

2. दालचीनी बालों के लिए बहुत उपयोगी है। आलिव ऑयल गर्क करके उसमें 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर, लेप बनाकर सिर में बालों की जड़ों व त्वचा पर नहाने से 15 मिनट पहले लगाएं। इससे आपके बाल गिरना बंद हो जायेंगे। इसके साथ इसके उपयोग से आपके दोमुंहा बाल भी ठीक हो जाएंगे।



3. दालचीनी कब्ज के लिए काफी असरकारक है। दालचीनी, सोंठ, जीरा और इलायची थोड़ी सी मात्रा में मिलाकर खाते रहने से कब्ज और अजीर्ण (भूख न लगना) की समस्याओं से लाभ मिलता है। 

4. कमजोर गर्भाशय के कारण बार-बार गर्भस्राव होता रहता है। गर्भधारण से कुछ महीने पहले दालचीनी और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर 1 चम्मच रोजाना सेवन करने से गर्भाशय शक्तिशाली होता है।

5. दालचीनी हार्टअटैक वाले मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है। शहद और दालचीनी को बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच नाश्ते में रोजाना खाएं। इससे धमनियों का कोलेस्ट्रोल कम होगा, जिसको एक बार हार्टअटैक आ चुका है, उन मरीजों को दोबारा हार्ट अटैक नहीं आता है।

6. अगर आप मोटापा घटाना चाहते हैं तो ये आपके लिए एक बेहतर उपाय है। 1 कप पानी में आधा चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर उबालिये, फिर इसमें 1 चम्मच शहद डालकर रोजाना सुबह नाश्ते से पहले तथा रात को सोने से पहले पियें। इससे आपका बढ़ा वजन कम होगा और मोटापा भी नहीं बढ़ेगा।

7. अगर आपके पेट में कीड़े हैं तो चौथाई चम्मच दालचीनी के चूर्ण को 1 चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना एक बार लें। इससे आपके पेट के सारे कीड़े नष्ट हो जायेंगे।

8. चुटकी भर दालचीनी को एक चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना 3 बार चूसने से टांसिल यानि गांठे ठीक हो जाती है। दालचीनी को पीसकर शहद में मिलाकर उंगली से टांसिल पर लगाने से लाभ होता है।

वाणों की शैया पर लेटे भीष्म पितामह से द्रौपदी ने पूछा ऐसा प्रश्न चौंक उठे सब

ये बात उस समय की है जब महाभारत के युद्ध का अंतिम दौर चल रहा था। युद्ध के दौरान भीष्म पितामह वाणों की शैया पर लेटे हुए थे। युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ पितामह के चरणों के समीप बैठेकर उनका धर्मोपदेश सुन रहे थे। तभी द्रौपदी वहां उपस्थित हुई और बोली, 'पितामह मेरी भी एक शंका है, क्या आप मुझे उसका उत्तर देंगे।' पितामह ने स्नेहपू्र्वक कहा- 'बोलो बेटी', तुम्हारा क्या प्रश्न है। द्रौपदी ने कहा कि पितामह यह प्रश्न पूछने से पहले मैं आपके क्षमा चाहती हूं क्योंकि जो प्रश्न मैं पूछना चाहती हूं वो बहुत टेढ़ा है। तब पितामह ने कहा- बेटी, तुम्हें जो भी पूछना है तुम निर्भय होकर पूछो। द्रौपदी ने सवाल किया कि- 'पितामह! जब भरी सभा में दु:शासन मेरा चीरहरण कर रहा था, उस समय आप भी वहां उपस्थित थे, किंतु आपने मेरी सहायता नहीं की। आखिर क्यों? उस समय आपका विवेक और ज्ञान कहां चला गया था? एक अबला के चीर हरण का दृश्य आप अपनी आंखों से किस प्रकार देख सके थे?' द्रौपदी का यह प्रश्न सुनकर पांडव चौंक पड़े। 



पितामह ने दौपदी के प्रश्न का उत्तर दिया कि बेटी, उसके लिए मुझे मांफ कर दो। मैं उस समय दुर्योधन का पाप से पूर्ण अन्न खा रहा था। वही पाप मेरे मन और मस्तिष्क में समाया हुआ था। मैं देख रहा था कि यह अत्याचार हो रहा है, अधर्म हो रहा है, लेकिन उसको रोक नहीं सका। मैं चाहता था कि ऐसा न हो, किंतु मना करने का सार्मथ्य मुझमें नहीं था। द्रौपदी ने पितामह को बीच में टोक कर कहा कि लेकिन आज आपको यह ज्ञान कैसे प्रकट हो गया कि दुशासन ने जो कुछ किया था वो गलत था। पितामह ने कहा कि बेटी आज अर्जुन के बाणों ने मेरा वह सारा रक्त बाहर निकाल दिया है जिसमें दुर्योधन के पाप के अन्न का प्रभाव था। अब तो मैं रक्तविहीन प्राणी हूं, इसलिए मेरा विवेक आज सजग है। मेरे शरीर से पाप के अन्न से बना रक्त निकल गया है।' पितामह का जवाब सुनने के बाद द्रौपदी ने कुछ नहीं कहा। 

Tuesday, February 19, 2019

इस मंदिर में समुद्र खुद करता है भगवान शिव का जलाभिषेक

गुजरात में एक भोले बाबा का एक ऐसा मंदिर है जहां खुद समुद्र उनका जलाभिषेक करता है। स्तंभेश्वर मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है, जिसका आकार चार फुट ऊंचा और दो फुट के घेरे वाला है। यह मंदिर भारत के सबसे रहस्यमय मंदिरों में गिना जाता है और इस मंदिर को गायब मंदिर भी कहा जाता है। लोगों की मान्यता है कि इस स्तंभेश्वर मंदिर में स्वयं शिवशंभु विराजते हैं, इसलिये समुद्र देवता खुद उनका जलाभिषेक करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह परंपरा सदियों से सतत चली आ रही है। भगवान शिव का यह अद्भुत मंदिर गुजरात के भरुच जिले की जम्बूसर तहसील में एक गांव कावी में है। 



समुद्र के के किनारे यह गांव स्थित है। समुद्र के इस किनारे पर दो बार ज्वार-भाटा आता है। ज्वार के समय समुद्र का पानी मंदिर के अंदर आता है और शिवलिंग का अभिषेक दो बार कर वापस लौट जाता है। ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है। इस मंदिर के दर्शन केवल कम लहरों में समय ही किये जा सकते हैं क्योंकि ऊंची लहरों के समय यह मंदिर डूब जाता है। पानी में डूब जाने के कारण मंदिर दिखाई नहीं देता और जब ऊंची लहरें खत्म हो जाती है तो मंदिर के ऊपर सारा पानी नीचे उतर जाता है फिर दोबारा मंदिर दिखने लगता है। इस अद्भुत मंदिर के दर्शन के दूर-दूर से लोग आते हैं।

पपीते के बेहतरीन फायदे

पपीता हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। पपीते में फाइबर, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट्स से भी भरपूर होता है। पपीते में प्रोटीन, पोटैशियम, फाइबर और विटामिन ए जैसे अनेकों पोषक तत्व होते है जो हमारे शरीर के लिए बेहद लाभदायक हैं। सुबह खाली पेट पपीता खाने से शरीर में होने वाली अनेकों बीमारियों एवं समस्याओं से बेहद आसानी से बचा जा सकता है। इसके साथ ही खाली पेट पपीता खाने से वजन भी आसानी से घटता है और आपका कोलेस्ट्रॉल भी नियंत्रण में रहता है।  

1. पपीते में 120 कैलोरी होती है। अगर आप वजन घटाने की बात सोच रहे हैं तो अपनी डाइट में पपीते को जरूर शामिल करें। इसमें मौजूद फाइबर्स वजन घटाने में मददगार होते हैं।

2. पपीता आपके शरीर के लिए आवश्यक विटामिन सी की कमी को पूरा करता है। ऐसे में अगर आप हर रोज कुछ मात्रा में पपीता खाते हैं तो आपके बीमार होने की आशंका कम हो जाएगी। इससे आपकी रोग प्रतिरक्षा क्षमता अच्छी होगी और बीमारियां दूर रहेंगी। 



3. पपीते में विटामिन सी तो भरपूर होता ही है साथ ही विटामिन ए भी पर्याप्त मात्रा में होता है। विटामिन ए आंखों की रोशनी बढ़ाने के साथ ही बढ़ती उम्र से जुड़ी कई समस्याओं के समाधान में भी कारगर है।

4. पपीते में फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है। कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए पपीता बहुत उपयोगी होता है। अगर आप पपीते का नियमित सेवन करते हैं तो शरीर में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में होगा।

5. पपीते के सेवन से पाचन तंत्र भी सक्रिय रहता है। पपीते में कई पाचक एंजाइम्स होते हैं। साथ ही इसमें कई डाइट्री फाइबर्स भी होते हैं जिसकी वजह से पाचन क्रिया सही रहती है। साथ ही पपीता पेट में गैस बनने से भी रोकता है। कब्ज के कारण परेशान लोगों को सुबह खाली पेट पपीता खाने से कब्ज की समस्या में तेजी से आराम मिलता है।

6. जिन महिलाओं को पीरियड्स के दौरान दर्द की शिकायत होती है उन्हें पपीते का सेवन करना चाहिए। पपीते के सेवन से पीरियड साइकिल नियमित रहता है वहीं दर्द में भी आराम मिलता है।

7. पीलिया रोग से पीड़ित लोगों के लिए पपीता एक रामबाण की तरह से माना जाता है। पीलिया की बीमारी हो जाने पर कच्चा पपीता नियमित खाने से पीलिया की बीमारी बहुत जल्दी ठीक हो जाती है।

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक जी ने शहीद जवानों को दी श्रद्धांजलि


प्रयागराज कुंभ में भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक जी ने पुलवामा में शहीद हुए जवानों को दो मिनट मौन रहकर दी श्रद्धांजलि

सीखने की कोई उम्र नहीं होती

ये किस्सा है भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का। दरअसल, बात उस समय की है जब अटल बिहारी जी उच्चशिक्षा प्राप्त करने के लिए कानपुर जाना चाहते थे। वह कानून की पढ़ाई करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने डीएवी कॉलेज में एडमिशन लेने का विचार किया। कॉलेज में एडमिशन के लिए उन्होंने अपने पिता जी से बात की। जैसे ही उनके पिता ने एडमिशन की बात सुनी तो बोले- 'मैं भी तुम्हारे साथ कानून की पढ़ाई शुरू करूंगा।' अटल जी के पिता जी सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे। ज्यादातर समय वो घर पर ही रहा करते थे। ऐसे में खुद को व्यस्त रखने का पढ़ाई से बेहतर कोई और साधन नहीं हो सकता। कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए दोनों पिता-पुत्र कानपुर आ गये। उन दिनों कॉलेज के प्राचार्य श्रीयुत कालका प्रसाद भटनागर हुआ करते थे। 



जब भटनागर जी ने पिता-पुत्र को एक साथ एडमिशन के लिये देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। दोनों का एडमिशन एक ही सेक्शन में हो गया। अब जब पिता-पुत्र दोनों एक ही सेक्शन में पढ़ाई करेंगे तब कुछ तो अलग होगा ही। तो होता यूं था कि जिस दिन अटल जी क्लास में न आते, प्राध्यापक महोदय उनके पिताजी से पूछा करते- 'आपका बेटा कहां हैं? आज आया क्यों नहीं?' और जिस दिन पिता जी कक्षा में न जाते, उस दिन अटल जी से वही सवाल होता, 'आपके पिताजी कहां हैं?' और फिर वही ठहाकों से क्लास गूंज उठती। छात्रावास में ये पिता-पुत्र दोनों साथ ही एक ही कमरे में छात्र-रूप में रहते थे। झुंड के झुंड लड़के उन्हें देखने आया करते थे। सही में शिक्षा की कोई उम्र नहीं होती। कभी भी, कहीं भी, अगर किसी से कुछ सीखने को मिले तो हमें जरूर सीखना चाहिए क्योंकि सीखने से कभी कोई छोटा नहीं होता।

Monday, February 18, 2019

हनुमान चालीसा का पाठ है अद्भुत चमत्कारी

हनुमान चालीसा का बड़ा ही महत्व है, जो भी व्यक्ति मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसके सारे कष्ट दूर होते हैं। पूर्ण हनुमान चालीसा का पाठ करने का अपना एक महत्व एवं लाभ है। जैसे लोगों को श्रीमद् भागवत गीता पढ़ने की सलाह दी जाती है, उसी तरह ही लोगों को हनुमान चालीसा पढ़ने की सलाह दी जाती है। विद्वानों के अनुसार, जो बी हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसे अपने अंदर उर्जा महसूस होती है और वह खुद को बलवान समझता है व किसी भी दुश्मन से लड़ने की ताकत रखने लगता है। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनि ग्रह और साढ़े साती का प्रभाव भी कम होता है। हनुमान चालीसा को महान कवि तुलसीदास जी ने लिखा था। 



तुलसीदास जी भगवान राम के बड़े भक्त थे और हनुमान जी को बहुत मानते थे। हनुमान चालीसा में 40 छंद होते हैं जिसके कारण इसको चालीसा कहा जाता है। हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ते समय हनुमान और भगवान राम के इष्ट चित्र की स्थापना जरूर करें। भगवान की मूर्ती के समक्ष पवित्र जल से भरा हुआ एक बर्तन रखें। अब आप आँखें बंद करके सचे मन से चालीसा का जाप करें। हो सके तो कम से कम इस चालीसा का पाठ 3 बार से लेकर 108 बार करें। जब आपका पाठ पूरा हो जाए तो पास रखा जल प्रसाद के रूप में ग्रहण करें और घर में बांटें। पाठ के समय एक बात का ख़ास ध्यान रखें कि आप जब भी हनुमान चालीसा पढें, उसका वक्त हर रोज़ एक ही हो। हमेशा श्री राम की पूजा के बाद ही हनुमान चालीसा का जाप करें।

आज का पंचांग - 19 फरवरी 2019



आज भी रहस्य बनी हुई हैं अजंता-एलोरा की गुफाएं

हमारे भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो आज भी रहस्य का विषय बने हुए हैं। बड़े-बड़े आर्कियोलॉजिकल और जियोलॉजिस्ट भी उन मंदिरों के रहस्यों को नहीं खोल पाये हैं। अजंता-एलोरा की गुफाएं भी कुछ ऐसी ही हैं आर्कियोलॉजिकल और जियोलॉजिस्ट भी अभी तक इन गुफाओं के बारे में पता नहीं लगा पाये हैं। ये गुफाएं कई हजार वर्ष पुरानी हैं। अजंता की ये गुफाएं गुफाएं अपनी चित्रकारी, गुफाएं और अद्भुत मंदिरों के लिए प्रसिद्ध हैं। औरंगाबाद से 101 किमी दूर उत्तर में अजंता की गुफाएं स्थित हैं। 40 लाख टन की चट्टानों को काटकर बनाई गई इन 34 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। इन गुफाओं में 200 ईसा पूर्व से 650 ईसा तक बौद्ध धर्म व संस्कृति का चित्रण है। इन गुफाओं के बारे में वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि ये गुफाएं किसी एलियंस के समूह ने बनाई हैं।



इसके अलावा एक रहस्यमय प्राचीन हिन्दू मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे कोई मानव नहीं बना सकता और इसे आज की आधुनिक तकनीक से भी नहीं बनाया जा सकता। इस विशालकाय अद्भुत मंदिर को देखने सभी आते हैं। इसका नाम कैलाश मंदिर है। आर्कियोलॉजिस्टों के अनुसार, इसे कम से कम 4 हजार वर्ष पूर्व बनाया गया था। 40 लाख टन की चट्टानों से बनाए गए इस मंदिर को किस तकनीक से बनाया गया होगा? यह आज की आधुनिक इंजीनियरिंग के बस की भी बात नहीं है। अजंता की गुफाओं में खुबसूरत चित्रों और भव्य मुर्तियों के अलावा वहा बड़े बड़े पिल्लर, बुद्धो की मुर्तिया, सीलिंग पे बने चित्र अजंता की गुफाओ को एक नया कीर्तिमान देती है और टूरिस्टो को आकर्षित करती है। ऐसा भी कहा जाता है कि इन गुफाओं के अंदर से नीचे एक सीक्रेट शहर है। आर्कियोलॉजिकल और जियोलॉजिस्ट की रिसर्च के मुताबिक, ये कोई सामान्य गुफाएं नहीं हैं। इन गुफाओं को कोई आम इंसान या आज की आधुनिक तकनीक नहीं बना सकती। यहां एक ऐसी सुरंग मौजूद है, जो अंडरग्राउंड शहर में ले जाती है।

हरी मटर के स्वास्थ्यवर्धक फायदे

सर्दियों के मौसम में हरी सब्जियों के साथ हरी मटर का सेवन काफी ज्यादा किया जाता है। हरी मटर स्वाद, सेहत और सौंदर्य का एक अनोखा मिश्रण है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, विटामिन्स, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, कॉपर और जिंक जैसे पोषक तत्व काफी होते हैं जो हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। हरी मटर के बहुत सारे फायदे हैं जो हम बताने जा रहे हैं। 

1. मटर में विटामिन ए, अल्फा-कैरोटीन और बीटा-कैरोटीन की अच्छी मात्रा होती है, जो आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। रोज कच्चे मटर का सेवन करने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
2. मटर में एंटी-इनफ्लैमेट्टरी और एंटी-ऑक्‍सीडेंट के गुण काफी मात्रा होते हैं। इसका सेवन करने से दिर की कई बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है।
3. इसमें एंटीऑक्सिडेंट्स और विटामिन के की मात्रा भरपूर होती है। रोजाना कच्चे मटर का सेवन करते हैं तो यह शरीर में कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है। कैंसर से बचने के लिए मटर किसी वरदान से कम नहीं है।


4. रोज मटर खाने से कोलेस्ट्रॉल लेवल भी कंट्रोल में रहता है। यह शरीर में ट्राइग्लिसराइड्स के स्‍तर को कम करके ब्लड में कोलेस्‍ट्रॉल संतुलित बनाए रखते है।
5. विटामिन्स, फास्फोरस, लोहा, जिंक, मैंगनीज, कॉपर की भी अधिक मात्रा होने के कारण इसका सेवन इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है। इससे शरीर को बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है।
6. हरे मटर खाने से याददाश्त तेज होती है। इसके अलावा इससे दिमाग संबंधी कई छोटी-छोटी प्रॉबल्म दूर रहती है इसलिए अपनी डाइट में इसे जरूर शामिल करें। 
7. अगर आप मोटापा घटाना चाहते हैं तो यह आपके लिए बेहतर ऑप्शन है। रोजाना मुट्ठीभर मटर का सेवन करें, इनमें मौजूद फाइबर्स फैट घटाने में मदद करते हैं, जिससे वजन तेजी से कम होता है।
8. मटर में बहुत अधिक मात्रा में फाइबर और प्रोटीन पाया जाता है, जो खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करता है। इससे डायबिटीज में आराम मिलता है।
9. मटर में फाइबर्स होते हैं जो खाने को पचाने वाले जीवाणुओं को एक्टिव रखता हैं और डाइजेशन को दुरूस्त बनाए रखता है। 
10. मटर में काफी मात्रा में प्रोटीन होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। इसके अलावा इसे खाने से मसल्स भी स्ट्रांग होते है।

Sunday, February 17, 2019

जो शेर माता को खाने आया था, वही बन गया मां का वाहन

शक्ति का रूप मां दुर्गा, जिन्हें सारा जगत मानता और पूजता है। साधारण मनुष्य ही नहीं सभी देव भी मां दुर्गा की अनुकम्पा से प्रभावित रहते हैं। मां दुर्गा को शेरावाली माता भी कहते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि शेर मां का कैसे बना था वाहन। दरअसल, इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है। ये तो आप सभी को पता है कि देवी पार्वती बचपन से ही शिव भक्त थी और शिव को अपना पति भी मानती थी। शिव जी पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने घोर तप किया था, जिसके बाद उनका विवाह शिव जी से हुआ था। लेकिन माता पार्वती के कठोर तप के कारण उनका रंग हल्का काला पड़ गया था। एक समय भगवान शिव और माता पार्वती दोनों ही कैलाश पर बैठे थे। महादेव माता पार्वती से मजाक कर रहे थे। 



मजाक में ही शिवजी ने माता को काली कह दिया। ये बात माता को बुरी लगी और वह कैलाश छोड़कर कठोर तपस्या के लिए एक वन में चली गई। इस बीच एक भूखा शेर मां पार्वती को खाने की इच्छा से वहां पहुंचा, ले‌किन माता को तप में मग्न देख उसी जगह पर बैठ गया। मां ने हठ कर ली थी कि जब तक वह गौरी नहीं हो जाएगी तब तक वह यहीं तपस्या करेगी। तब शिवजी प्रसन्न होकर वहां प्रकट हुए और माता को गोरे होने का वरदान दिया। शिव जी के निर्देश से पार्वती माता ने गंगा में स्नान किया और माता का रंग गौरा हो गया। इस गोरे रंग के कारण ही माता पार्वती को गौरी नाम से भी जाना जाता है। माता पार्वती को जब यह पता चला कि वह शेर उनके साथ ही तपस्या में यहां सालों से बैठा रहा है तो माता ने प्रसंन्न होकर उसे वरदान स्वरूप अपना वाहन बना लिया। तब से मां पार्वती का वाहन बाघ हो गया।

पढ़िये, नेताजी के बचपन से जुड़ा रोचक किस्सा

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बारे में जितना भी जाना जाए या पढ़ा जाए वो कम लगता है। जब भी हम नेताजी के बारे में पढ़ते हैं या सुनते हैं तो हमारे दिलों में एक जोश सा भर जाता है। नेताजी ने जुड़े हुए कई सारे किस्से हैं जो हम पढ़ते या सुनते है। आज हम आपको नेताजी के बचपन से जुड़ा हुआ एक किस्सा बता रहे हैं, आप भी पढ़िये इस रोचक किस्से को। बात उस समय की है जब नेताजी पांच साल के थे। नेताजी के 14 भाई-बहन थे और उसमें उनका 9वां नम्बर था। जब नेताजी के घरवालों ने उन्हें बताया कि अब वह भी अपने भाई-बहनों के साथ जायेंगे, तो वो इस बात से बहुत थे और सबसे ज्यादा खुशी तो इस बात की थी कि अब उनके लिए भी नई स्कूल ड्रेस बनेगी और वे उसे पहनकर स्कूल जायेंगे। 



उनका बचपन से ही पढाई में मन लगता था। चौथी कक्षा में वे मिशनरी स्कूल को छोड़ रावेजा कॉलेजिएट स्कूल चले गये। तब उन्हें उनकी मातृभाषा बंगाली बिल्कुल नहीं आती थी और स्कूल के शिक्षकों ने उन्हें पहली बार बंगाली में लेख लिखने को कहा। जब उन्होंने लेख लिखकर दिखाया तो उसमें बहुत सारी गलतियां थी, तब उनके शिक्षक ने उनकी गलतियों को पूरी कक्षा के सामने सुनाया। शिक्षक का यह बर्ताव उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और इस बेइज्जती का बदला वार्षिक परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त करके लिया। इसके बाद मैट्रिक की परीक्षा में कलकत्ता में टॉप अंक अर्जित किये। स्नातक की परीक्षा उन्होंने फिलोस्पी विषय में प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता से पास किया। माँ बाप का सपना पूरा करने के लिए ICS (इंडियन सिविल सर्विसेज) की परीक्षा पास कर 1919 में लंदन गये और ICS की परीक्षा में अंग्रेजी में सबसे ज्यादा नम्बर अर्जित किये और आल ओवर चौथा स्थान प्राप्त किया। 

आज का पंचांग - 18 फरवरी 2019


Saturday, February 16, 2019

जैसा भाव, वैसी सफलता

एक बार की बात है, महान रसायनशास्त्री आचार्य नागार्जुन को एक ऐसे नवयुवक की तलाश थी जो उनकी प्रयोगशाला में उनके साथ मिलकर रसायन तैयार करने में उनकी मदद कर सके। इसके लिये उन्होंने एक विज्ञप्ति निकाली और उस विज्ञप्ति को देखकर दो नवयुवक उनसे मिलने के लिए उनके पास आये। आचार्य नागार्जुन ने उन दोनों युवकों को रसायन घर से बनाकर लाने को कहा। पहला युवक दो दिन बाद रसायन बनाकर लेकर आया। तब नागार्जुन ने उससे पूछा कि तुम्हें इस काम में कोई कष्ट तो नहीं हुआ? 

युवक ने उत्तर दिया कि मान्यवर बहुत कष्ट उठाना पड़ा। पिती को उदर कष्ट था और मां ज्वर से पीड़ित थी। तथा छोटा भाई पैर पीड़ा से परेशान था तथा गांव में आग भी लग गई थी, पर मैंने किसी पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। मैं सिर्फ अपना रसायन बनाने में ही लीन रहा। आचार्य नागार्जुन उसकी बात को ध्यान से सुनते रहे लेकिन कुछ कहा नहीं। वो युवक अपने मन ही मन सोचता रहा कि आचार्य नागर्जुन उसका ही चुनाव करेंगे किसी और का नहीं, क्योंकि अभी तक दूसरा युवक आया भी नहीं है और वो सबसे पहले रसायन लेकर आया है।



कुछ देर बाद दूसरा युवक भी वहां आ गया। आचार्य ने उसे बड़े ही ध्यान से देखा वो बहुत उदास दिख रहा था। उन्होंने उस दूसरे युवक से पूछा कि क्यों क्या बात हैं? तुम रसायन लेकर नहीं आए? तब उसने जवाब दिया कि मैं रसायन बना ही नहीं सका, क्योंकि जैसे ही बनाने जा रहा था कि एक बूढ़ा रोगी दिखायी पड़ा, जो बीमारी से कराह रहा था। मैं उसको अपने घर ले गया और उसकी सेवा करने लगा। जब वह ठीक हो गया तो मुझे ध्यान आया कि मैंने रसायन तो बनाया ही नहीं। इसीलिये क्षमा मांगने के लिए यहां आ गया। कृपया मुझे दो दिन का समय दीजिये, मैं रसायन बना कर लाउंगा। 

तभी आचार्य नागार्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा कि कल से तुम काम पर आ जाओ। ये सुनकर पहला युवक बहुत हैरान हो गया वो सोचने लगा कि उसे क्यों नहीं चुना गया जबकि वो सबसे पहले रसायन बनाकर लाया है। आचार्य ने पहले युवक से कहा कि तुम जाओ तुम्हारे लिए मेरे पास स्थान नहीं है, क्योंकि तुम काम तो कर सकते हो, लेकिन यह नहीं जान सकते कि काम के पीछे उद्देश्य क्या है? उन्होंने कहा कि रसायन का काम रोग का निवारण करना है, जिसमें रोगी के प्रति संवेदना नहीं उसका रसायन कारगर नहीं हो सकता। आचार्य नागार्जुन की यह बात सुनकर पहला युवक हैरान हो गया और अपनी गलती मानकर वहां से वापस लौट गया।

सर्दियों में इन तरीकों से करें अपना वजन कम

सर्दियों के दिनों में लोगों का आलस बढ़ जाता है, जिसकी वजह से ना कहीं घुमने फिरने के लिए निकलते हैं और ना ही ज्यादा कोई काम करते हैं। इस मौसम में ज्यादातर लोग रजाई में बैठकर पूरे दिन कुछ न कुछ खाना ही पसंद करते हैं। लेकिन अगर आप सर्दियों में ज्यादा आलस करते हैं तो आपका वजन भी बढ़ने लगता है। पर आपको अपने बढ़ते वजन से घबराने की जरूरत नहीं है। आप इन आसान निस्खों से अपने वजन को कंट्रोल कर सकते हैं। 

1. इस मौसम में खाने में फल, हरी सब्जियां और फाइबर की मात्रा अधि‍क लीजिए। इस मौसम में मीठा और फैटी फूड जरूर आकर्ष‍ित करता है, लेकिन इन्हें नजर अंदाज करें। 



2. इस मौसम में गर्मागर्म चाय अैर कॉफी स्वाद के साथ-साथ गर्माहट भी देते हैं। लेकिन इनका सेवन आपको कम करना होगा। इनकी बजाय ग्रीन टी, ब्लैक टी या फिर गर्म पानी में नींबू और शहद या फिर दालचीनी का सेवन आपके वजन को कम करने में मदद करेंगे।

3. इस मौसम में आराम करने के बजाए अगर सुबह जल्दी उठकर व्यायाम किया जाए तो आपका मोटापा कम होने में बेहद फायदा होगा। साथ ही शरीर में गर्माहट भी बनी रहेगी।

4. सर्दियों में लोगों हॉट चॉकलेट, आइसक्रीम जैसी चीजें खाना ज्यादा पसंद होता है, लेकिन इनसे आपका वजन बढ़ता है। अगर आप इन्हें छोड़ नहीं सकते तो इनका सेवन कम कर दीजिये, आप बहुत बड़े कप के बजाय छोटे कप खा सकते हैं। 

5. सर्दी में मूंगफली, नट्स आदि खाए जाते हैं जो कई तरह के न्‍यूट्रिएंट्स से भरपूर होते हैं। इनसे मिलने वाला पोषण बीमारियों से लड़ने में मदद करता है और अगर आपकी सेहत ठीक होगी तो वजन घटाने की तैयारी भी ठीक से कर पाएंगे।

Friday, February 15, 2019

जया एकादशी के व्रत से माल्यवान और पुष्पवती को मिल थी मुक्ति

जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और व्रत करने वाले हर जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही व्यक्ति सभी नीच योनि अर्थात भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है और उसमें कभी जन्‍म नहीं लेता है। जया एकादशी से जुड़ी हुई बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से यह एक है। प्राचीन समय में देवराज इंद्र का स्वर्ग में राज था। स्वर्ग में देवराज इंद्र और अन्य देवगण सुखपूर्वक रहते थे। एक दिन नंदन वन में उत्सव चल रहा था और इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे। इस दौरान गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत और उसकी कन्या पुष्पवती, चित्रसेन और उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे। साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी वहां उपस्थित थे। उस समय गंधर्व गाना गा रहे थे और कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थी। इसी बीच पुष्पवती की नजर माल्यवान पर पड़ी और वह उस पर मोहित हो गई। 



पुष्पवती अपने नृत्य से माल्यवान पर काम-बाण चलाने लगी। पुष्पवती सभा की मर्यादा भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो गया। माल्यवान, पुष्पवती को देखकर सुध-बुध खो बैठा और अपने गाने से भटक कर सुर-ताल छोड़ दिए। यह देखकर इंद्र देव को क्रोध आ गया और दोनों को श्राप दे दिया। देवराज इंद्र के श्राप देते ही दोनों ही पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। उन दोनों को उस पिशाच योनि में काफी दुख भोगना पड़ रहा था। तब माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया एकादशी आई। उस दिन दोनों ने वह व्रत किया और केवल फलाहार पर ही अपना दिन व्यतीत किया। उस दिन भी दोनों बहुत दुखी थे और सायंकाल के समय पीपल के वृक्ष के नीचे बैठे थे। लेकिन तभी अचानक उनकी मृत्यु हो गई और जया एकादशी का व्रत करने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई। इसके बाद माल्यवान और पुष्पवती पहले की तरह सुंदर हो गए और उन दोनों को स्वर्ग लोक में वापस स्थान मिल गया। 

कष्ट से मुक्ति पाने के लिए जया एकादशी पर करें भगवान विष्णु की पूजा

आज जया एकादशी है, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती और जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी मनाई जाती है, हिन्दू धर्म इस एकादशी का बहुत खास महत्व है। यही नहीं यह व्रत करने से व्यक्ति सभी नीच योनि अर्थात भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है और उसमें कभी जन्‍म नहीं लेता है। 


जया एकादशी का व्रत करने से घर की नेगेटिव एनर्जी दूर होती है और परिवारजनों का स्वास्थ्य भी सही रहता है। इस एकादशी को करने से ब्रह्महत्या जैसे पापों से मुक्ति मिलती है। एकादशी के दिन सुबह जल्‍दी उठना चाहिए। नित्‍य कर्मों से निवृत्‍त होकर श्री विष्णु जी ध्यान करें। व्रत का संकल्प लें. फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से उनकी पूजा करें। व्रत रखने वाले को इस दिन भोजन में केवल सात्विक भोजन करना चाहिए। 

स्वामी श्री आनंद गिरी जी महाराज से जानिए योग का महत्व


जम्मू-कश्मीर पुलवामा हमले में शहीद हुए सभी जवानों को शत्-शत् नमन एवं भावपूर्ण श्रद्धांजलि




एक तरफ जहां हमारे देश की युवा पीढ़ी 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे मना रही थी, वही दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर में हमारे सीआरपीएफ के जवानों पर घात लगाकर आत्मघाती हमला किया गया। पुलवामा में हुए इस आतंकी हमले की हम निंदा करते हैं। सनातन टीवी इस दुख में पूरे राष्ट्र के साथ शहीदों के परिजनों के साथ हैं। इस हमले में शहीद हुए सभी जवानों को सनातन परिवार शत्-शत् नमन करता है और उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है। 

भुट्टे के ऐसे फायदे जानकर रोज खाएंगे आप इसे

बरसात का मौसम है और उसमें भुना हुआ भुट्टा ना खाए, तो ये शायद ठीक नहीं होगा। बरसात के मौसम में भुट्टे के स्वाद दोगुना और बढ़ जाता है। भुट्टे खाने के कई फायदे होते हैं। भुट्टे में बहुत सारा मैग्नीशियम, कॉपर, आयरन, विटामिन ए, विटामिन सी, फोलिक एसिड ,विटामिन बी 9, फास्फोरस बहुतायत में पाया जाता है, जो हमें कई बीमारियों से बचा सकता है। मक्के को लोग अलग-अलग तरह से खाना पसंद करते हैं। कोई इसे उबाल कर खाता है, कोई रोटी बनाकर तो कोई बारिश के मौसम में इन्हें भून कर खाता है। आप कैसे भी भुट्टे को खाए लेकिन इसके फायदे काफी चौकाने वाले होते हैं। 

1. भुट्टा तृप्तिदायक, वातकारक, कफ, पित्तनाशक, मधुर और रुचि उत्पादक अनाज है। इसकी खासियत यह है कि पकाने के बाद इसकी पौष्टिकता और बढ़ जाती है। पके हुए भुट्टे में पाया जाने वाला कैरोटीनायड विटामिन-ए का अच्छा स्रोत होता है।
2. भुट्टे को पकाने के बाद उसके 50 प्रतिशत एंटी-ऑक्सीअडेंट्स बढ़ जाते हैं। ये बढती उम्र को रोकता है और कैंसर से लड़ने में मदद करता है।
3. भुट्टे में मिनरल्स और विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। भुट्टे को एक बेहतरीन कोलेस्ट्रॉल फाइटर माना जाता है, जो दिल के मरीजों के लिए बहुत अच्छा है।
4. भुट्टे में विटामिन सी, कैरोटिनॉइड और बायोफ्लेवनॉइड पाया जाता है, जो दिल की बीमारी को दूर करने में सहायक है। यह कोलेस्ट्रॉल लेवल को बढ़ने से बचाता है और शरीर में खून के प्रवाह को भी बढ़ाता है।

5. भुना भुट्टा खाने के बाद उसके बचे हुए भाग को फेके ना बल्कि उसे बीच से तोड़कर सूंघे। ऐसा करने से जुकाम में फायदा होता है। बाद में इसे जानवर को खाने के लिए डाल दें।
6. भुट्टे के बचे हुए भाग को सूखाकर और फिर उसे जलाकर राख बना कर रख लें। इस राख को प्रतिदिन गुनगुने पानी के साथ फांकने से खांसी का इलाज होता है। खांसी कैसी भी हो यह चूर्ण लाभ देता ही है। यहां तक कि कुकर खांसी में भी बड़ी राहत मिलती है।
7. बड़ों को साथ-साथ बच्चों को भी भुट्टे अवश्य खाने चाहिए क्योंकि इससे उनके दांत मजबूत होते हैं।
8. भुट्टे को गर्भवती महिलाओं को अपने आहार में जरुर शामिल करना चाहिए। क्योंकि इसमें फोलिक एसिड पाया जाता है जो गर्भवती के लिए बेहद जरूरी है।
9. भुट्टे के पीले दानों में बहुत सारा मैगनीशियम, आयरन, कॉपर और फॉस्फोरस पाया जाता है, जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं। एनीमिया को दूर करने के लिए भुट्टा खाना चाहिए क्योंकि इसमें विटामिन बी और फोलिक एसिड होता है।
10. बच्चों के विकास के लिए भुट्टा बहुत फायदेमंद माना जाता है। ताजे दूधिया (जो कि पूरी तरह से पका न हो) मक्का के दाने पीसकर एक खाली शीशी में भरकर उसे धूप में रखिए। जब उसका दूध सूख कर उड़ जाए और शीशी में केवल तेल रह जाए तो उसे छान लीजिए। इस तेल को बच्चों के पैरों में मालिश कीजिए। इससे बच्चों का पैर ज्यादा मजबूत होगा और बच्चा जल्दी चलने लगेगा।
11. बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए भी ये बहुत फायदेमंद है. इसमें कोलेस्ट्रॉल न के बराबर होता है और इसलिए ये दिल की सेहत के लिए भी बहुत अच्छा है।
12. भुट्टा लीवर के लिए अधिक लाभकारी है। यह प्रचूर मात्रा में रेशे से भरा हुआ है इसलिए इसे खाने से पेट अच्छा रहता है। इससे कब्ज, बवासीर और पेट के कैंसर के होने की संभावना दूर होती है।
13. भुट्टा टीवी के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद हैं। टीबी के मरीजों को भुट्टा या मक्के की रोटी जरूर खानी चाहिए, इससे उन्हें काफी फायदा होगा।

Thursday, February 14, 2019

हुनर तो सभी में होता है, बस पहचानने की देर होती है

अंग्रेजी के एक महान लेखक थे, जिनका नाम नथानिएल हौथोर्न था। नथानिएल हौथोर्न लेखन के अलावा कस्टम हाउस में भी नौकरी किया करते थे। एक दिन की बात है अचानक से उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। नौकरी से निकाले जाने के बाद जब वो घर पहुंचे तो पत्नी सोफिया से बोले- 'आज मुझे नौकरी से निकाल दिया गया है।' यह बात सुनकर सोफिया परेशान हो गई। 

मगर फिर बड़ी ही सादगी से मुस्करा कर नथानिएल से बोलीं- 'नाकामयाबी में धैर्य से काम करते रहना है। इतने हताश और उदास मत हो। मुझे पता है कि तुम बहुत मेहनती, प्रतिभाशाली और विलक्षण इंसान हो। अगर तुम्हारा एक रास्ता बंद हुआ है तो इसके साथ ही एक ऐसा रास्ता खुला है जो तुम्हें भविष्य में काफी प्रसिद्धि देगा।' नथानिएल हैरानी से बोले, 'नौकरी छूटना तो एक बड़ी आफत है। इसमें भला क्या अच्छा हो सकता है?'



इस पर पत्नी सोफिया ने जवाब देते हुये उनसे कहा- 'मैं जानती हूं तुममे एक हुनर है। तुम बहुत अच्छा लिखते हो नथानिएल। तुम्हारे लिखने का तरीका और भाषा गजब की है। नौकरी के वजह से तुम लेखन को पूरा वक्त नहीं दे पा रहे थे। अब तुम लिखो, कामयाबी जरूर मिलेगी।' सोफिया की ये बात सुनकर नथानिएल थोड़ा सोच में पड़ गये। फिर बोले- 'तुम्हारी बात तो ठीक है, लेकिन तब तक घर का खर्च कैसे चलेगा?' सोफिया ने कहा, 'तुम इन बातों की चिंता मत करो और अपने लेखन पर जुट जाओ। तब तक घर खर्च मैं चलाऊंगी।' 

इसके बाद नथानिएल लेखन में जुट गए और सोफिया ने घर संभाल लिया। दिन बीतते गए और एक साल में नथानिएल ने विक्टोरिया युग का महान उपन्यास 'द स्कारलेट लेटर' लिखा जिसने नथानिएल हौथोर्न को नई पहचान दी। उन्हें आज भी इसी उपन्यास से पहचाना जाता है। हुनर हम सभी में होता है। बस जरूरत है सही समय पर उस हुनर को पहचानने और तराशते हुए उससे एक सुंदर रचना करने की। यह हुनर किसी भी तरह का हो सकता है।

महामंडलेश्वर प्रेमनन्द जी महाराज ने सनातन टीवी के सभी दर्शकों को अपना आशीर्वाद दिया


अपने ही अंदर खोजे समस्याओं का समाधान

भगवान बुद्ध अपने शिष्यों को हमेशा शिक्षा देते थे। एक दिन की बात है प्रातः काल ही बहुत से भिक्षुक उनका प्रवचन सुनने के लिए उनके पास आए। जब भगवान बुद्ध समय पर प्रवचन देने के लिए सभा में पहुंचे तो उनके शिष्यों ने देखा कि उनके हाथ में एक रस्सी है। बुद्ध ने अपना आसन ग्रहण किया और किसी से बिना कुछ कहे ही रस्सी में गाँठ बांधने लगे। वहाँ उपस्थित सभी लोग यह देख सोच रहे थे कि अब बुद्ध आगे क्या करेंगे। तभी बुद्ध ने सभी से एक प्रश्न किया कि मैंने इस रस्सीो में तीन गांठें लगाई है, अब मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि क्या यह वही रस्सी है, जो गाँठें लगाने से पहले थी? 

एक शिष्य ने उत्तर में कहा कि गुरूजी इसका उत्तर देना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि ये वास्तव में हमारे देखने के तरीके पर निर्भर करता है। एक तरफ देखें तो यह वही रस्सी है, इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है और दूसरी तरफ देखें तो इसमें तीन गांठें लगी हुई है जो पहले नहीं थी। पर ये बात भी ध्यान देने वाली है कि बाहर से देखने में भले ही ये बदली हुई लग रही है पर अंदर से तो ये वही है जो पहले थी। तब बुद्ध ने कहा कि अब मैं इन गांठों को खोल देता हूँ। यह कहकर बुद्ध रस्सी के दोनों सिरों को एक दूसरे से दूर खींचने लगे। 



उन्होंने फिर वहां पर मौजूद सभी से पुछा कि तुम्हें क्या लगता है, इस प्रकार इन्हें खींचने से मैं क्या इन गांठों को खोल सकता हूँ? तभी शिष्यों ने तुरंत ही जवाब दिया कि नहीं-नहीं गुरुजी, ऐसा करने से तो गांठें और भी कस जाएंगी और इन्हें खोलना और मुश्किल हो जाएगा। तब बुद्ध ने कहा कि ठीक है, अब एक आखिरी प्रश्न, बताओ इन गांठों को खोलने के लिए हमें क्या करना होगा? शिष्यों ने जवाब दिया कि इसके लिए पहले हमें इन गांठों को गौर से देखना होगा कि पहले इन गांठों को कैसे लगाया गया था, फिर हम इन्हें खोलने की कोशिश कर कर सकते हैं। 

तभी बुद्ध ने कहा कि मैं यही तो सुनना चाहता था। मूल प्रश्न यही है कि जिस समस्या में तुम फंसे हो, वास्तव में उसका कारण क्या है, बिना कारण जाने निवारण असम्भव है। मैं ज्यादातर देखता हूँ कि लोग बिना कारण जाने ही निवारण करना चाहते हैं, कोई मुझसे ये नहीं पूछता कि मुझे क्रोध क्यों आता है, लोग पूछते हैं कि मैं अपने क्रोध का अंत कैसे करूँ? कोई यह प्रश्न नहीं करता कि मेरे अंदर अंहकार का बीज कहाँ से आया, लोग पूछते हैं कि मैं अपना अहंकार कैसे ख़त्म करूँ?

महामंडलेश्वर गुरु माता आनंदमयी जी ने बताया कि इस महाकुंभ में आप कैसे प्राप्त कर सकते हैं पुण्य


तुलसी के बेहतरीन फायदे

हमारे हर घर के आंगन में तुलसी का पौधा होता है। तुलसी सचमुच प्रकृति द्वारा दिया गया एक अमृत है। यह एकमात्र ऐसा पौधा है जिससे रोगनाशक गुण आसपास के वातावरण में लगातार अपने आप फैलते रहते है। इस कारण इसके पास खड़े होने, छूने, रोपने, पानी चढ़ाने में रोगों के प्रभाव से बचाव होता है। तुलसी की लकड़ी, छाल, पत्तियाँ, फल-फूल, जड़ आदि सभी मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी हैं। जानिए तुलसी के बेहतरीन फायदे - 

1. सांस की दु्र्गंध को दूर करने में तुलसी के पत्ते काफी फायदेमंद होते हैं और नेचुरल होने की वजह से इसका कोई साइडइफेक्ट भी नहीं होता है। अगर आपके मुंह से बदबू आ रही हो तो तुलसी के कुछ पत्तों को चबा लें। ऐसा करने से दुर्गंध चली जाती है।

2. अगर आपको सर्दी या फिर हल्का बुखार है तो मिश्री, काली मिर्च और तुलसी के पत्ते को पानी में अच्छी तरह से पकाकर उसका काढ़ा पीने से फायदा होता है। आप चाहें तो इसकी गोलियां बनाकर भी खा सकते हैं।

3. अगर आपको कहीं चोट लग गई हो तो तुलसी के पत्ते को फिटकरी के साथ मिलाकर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है। तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते हैं जो घाव को पकने नहीं देता। इसके अलावा तुलसी के पत्ते को तेल में मिलाकर लगाने से जलन भी कम होती है।



4. अक्सर महिलाओं को पीरियड्स में अनियमितता की शिकायत हो जाती है। ऐसे में तुलसी के बीज का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है। मासिक चक्र की अनियमितता को दूर करने के लिए तुलसी के पत्तों का भी नियमित किया जा सकता है।

5. कई शोधों में तुलसी के बीज को कैंसर के इलाज में भी कारगर बताया गया है। हालांकि अभी तक इसकी पुष्ट‍ि नहीं हुई है।

6. त्वचा संबंधी रोगों में तुलसी खासकर फायदेमंद है। इसके इस्तेमाल से कील-मुहांसे खत्म हो जाते हैं और चेहरा साफ होता है।

7. पुरुषों में शारीरिक कमजोरी होने पर तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है। इसके अलावा यौन-दुर्बलता और नपुंसकता में भी इसके बीज का नियमित इस्तेमाल फायदेमंद रहता है।

8. तुलसी से लाल रक्त कणों में इजाफा होता है और हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है। एक बूंद श्री तुलसी का प्रतिदिन सेवन करने से पेट संबंधी बीमारियां धीरे-धीरे समाप्त हो जाती हैं। और गर्भवती महिलाओं में उल्टी की परेशानी होने पर भी यह लाभकारी है।

9. वजन घटाने के लिए तुलसी बेहद काम की चीज है। तुलसी का नियमित सेवन करने से आपका मोटापा तो कम होगा ही, यह कोलेस्ट्रॉल को कम कर रक्त के थक्के जमने से रोकती है। इससे हार्ट अटैक की संभावना भी कम होती है।


Wednesday, February 13, 2019

आप भी पढ़िये श्रीहरि ने मोहिनी अवतार में कैसे दिखाई थी लीला

जब भी धरती पर पाप बड़ा तब-तब भगवान विष्णु ने अलग-अलग रूपों में अवतार लिया और धरती की रक्षा की। श्रीहरि का एक रूप ऐसा भी था जिसने हर किसी को मोह लिया था, और वो था मोहिनी अवतार। श्रीहरि ने अपना यह अवतार कई बार लिया था। लेकिन धर्मग्रंथों में दी गई जानकारी के मुताबिक, भगवान विष्णु ने तीन बार मोहिनी अवतार लिया था। सबसे पहले श्रीहरि ने अपना मोहिनी अवतार समुद्रमंथन के दौरान लिया था। तब अपने मोहिनी अवतार के रूप में श्रीहरि ने दैत्यों को इतना मोहित किया था कि अमृत के पीछे न भागते हुए मोहिनी के हाथों ही अमृत पीने की इच्छा जाहिर करने लगे थे। लेकिन मोहिनी अवतार में श्रीहरि ने देवों को अमृत और दानवों को सामान्य जल पिलाया था। दूसरी बार श्रीहरि ने मोहिनी अवतार लिया था भस्मासुर का वध करने के लिए। 



जब भस्मासुर को भगवान शिव ने वरदान दिया कि वह किसी पर भी हाथ रखे वो भस्म हो जाएगा। तब कुछ दिनों बाद वह देवी पार्वती पर ही मोहित हो गया और भगवान शिव पर हाथ रखने की कोशिश करने लगा। तब श्रीहरि ने मोहिनी अवतार लिया और भस्मासुर के समक्ष नृत्य करने की शर्त रखी और इस तरह नृत्य करते समय ही उसका हाथ उसी के सिर पर रखवा दिया। इस तरह भस्मासुर का अंत हुआ। और तीसरी बार भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप द्वापरयुग में लिया था। अर्जुन के बेटे इरावन ने अपने पिता की जीत के लिए खुद की बलि देने का मन बनाया। बलि देने से पहले उसकी अंतिम इच्छा थी कि वह मरने से पहले शादी करना चाहता था। मगर इस शादी के लिए कोई भी लड़की तैयार नहीं थी क्योंकि शादी के तुरंत बाद उसके पति को मर जाना था। तब श्रीहरि ने मोहिनी का रूप लिया और इरावन से न केवल शादी की बल्कि एक पत्नी की तरह उसे विदा करते हुए बहुत रोए।

आज का पंचांग