Wednesday, February 6, 2019

गांधारी के श्राप के कारण खत्म हो गया था सारा यदुवंश

अठारह दिन चले महाभारत के युद्ध में कौरवों के समस्त कुल का नाश हुआ, साथ ही पांचों पांडवों को छोड़कर पांडव कुल के अधिकांश लोग मारे गए। इस युद्ध में कौरवों की पराजय के साथ जाने कितने ही महारथियों की मृत्यु हो गई। इसी युद्ध में पांडवों की विजय के साथ एक नए भारतवर्ष के उदय की प्रस्तावना लिखी गई। हस्तिनापुर का साम्राज्य पांडवों के अधीन हो गया। महाभारत के युद्ध ने कितनी ही मांओं की गोदें उजाड़ दीं, पर उनमें से एक ऐसी भी थी, जिसकी पीड़ा अविनाशी थी। वह थी हस्तिनापुर की महारानी, सौ कौरवों की माता गांधारी, जिसके सारे ही पुत्र इस युद्ध की भेंट चढ़ गए। महारानी गांधारी ने अपने समस्त पुत्रों के साथ ही अपने वंश का नाश अपने सामने होते हुए पाया। 



इससे भी अधिक दुख उन्हें इस बात का था कि श्री कृष्ण के होते हुए उनके साथ ऐसा अन्याय कैसे हो गया। उनका अंतर्मन बार-बार चीत्कार कर कह रहा था कि जो श्री कृष्ण सारे संसार के पालक हैं, कर्ता-धर्ता हैं, जिनके संकेत मात्र पर यह समस्त विश्व चलायमान है, वे अगर चाहते तो महाभारत का युद्ध रोक सकते थे। ना युद्ध होता, ना कुरूवंश निरवंश होता। इस तरह मोह में अंधा हुआ मां का मन पुत्र हत्या की पीड़ा से धधक रहा था और हर तरफ से घूम फिरकर श्री कृष्ण को ही दोषी मान रहा था। महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया की जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा। गांधारी के श्राप से विनाशकाल आने के कारण श्रीकृष्ण द्वारिका लौटकर यदुवंशियों को लेकर प्रयास क्षेत्र में आ गए थे। यदुवंशी अपने साथ अन्न-भंडार भी ले आये थे। कृष्ण ने ब्राह्मणों को अन्नदान देकर यदुवंशियों को मृत्यु का इंतजार करने का आदेश दिया था।

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