Sunday, February 10, 2019

सोमवार का व्रत करने से पूर्ण होती है हर मनोकामना

महादेव जिस भी इंसान से प्रसन्न होते हैं उस पर खुशियों की बरसात कर देते हैं। जो सोमवार को भगवान शिव का व्रत करता है, उनकी पूजा करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। लेकिन क्या आपको पता है आखिर क्यों करते हैं सोमवार का व्रत, क्या है इसके पीछे की कहानी। एक समय की बात है, एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। इसी कारण वह बहुत दुखी था और पुत्र प्राप्ति के लिए हर सोमवार को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता था। वह रोज शिव मंदिर जाता और पूरी श्रद्धा के साथ शिव जी और पार्वती की पूजा करता। एक दिन उसकी भक्ति को देखकर मां पार्वती प्रसन्न हुई और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना को पूर्ण करने का आग्रह किया। तब शिवजी ने कहा कि 'हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो है उसे भोगना ही पड़ता है।' 

लेकिन माता पार्वती ने दोबारा शिवजी से आग्रह किया। तब माता के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया लेकिन यह भी कहा कि उस बालक की आयु केवल बाहर वर्ष ही होगी। लेकिन साहूकार को ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो साहूकार ने उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना। जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना। दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। 



दोनों को चलते-चलते रात ही गई थी, वे दोनों एक नगर में पहुंचे जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था और जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। लेकिन राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची। राजकुमार के पिता ने रास्ते में साहूकार के पुत्र को देखा और उसके मन में विचार आया कि क्यों न अपने बेटे की जगह इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर वहां से विदा कर दूंगा और बाद में राजकुमारी को अपने ले आऊंगा। इसके बाद राजकुमार के पिता के अपनी साजिश के तहत साहूकार के बेटे को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया। लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था, उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी। 

उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि 'तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।' जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। यह बात जानकर राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ। कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देखकर उसके मामा ने विलाप करना शुरू कर दिया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे, तब माता ने कहा कि स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। कृपा आप इस व्यक्ति के कष्ट को दूर करें। जब शिवजी उस मृत बालक के पास गए तो बोले- ये तो साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। लेकिन अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है। तभी माता पार्वती ने कहा कि महादेव आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।

माता के आग्रह पर शिवजी ने उस बालक को लंबी आयु का वरदान दे दिया। इसके बाद शिक्षा समाप्त करके बालक अपने मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया। वहीं, बालक के माता-पिता भूखे-प्यासे रहकर अपने बेटे का इंतजार कर रहे थे, उन्होंने प्रण लिया था कि यदि उनके बेटे की मरने की खबर आई तो वे भी अपना जीवन त्याग देंगे। लेकिन जब उन्होंने अपने बेटे के जीवित होने का समाचार सुना तो वह दोनों बहुत प्रसन्न हुए और महादेव व माता पार्वती का बहुत धन्यवाद किया। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर उसे दर्शन दिये और कहा कि मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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