जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और व्रत करने वाले हर जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही व्यक्ति सभी नीच योनि अर्थात भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है और उसमें कभी जन्म नहीं लेता है। जया एकादशी से जुड़ी हुई बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से यह एक है। प्राचीन समय में देवराज इंद्र का स्वर्ग में राज था। स्वर्ग में देवराज इंद्र और अन्य देवगण सुखपूर्वक रहते थे। एक दिन नंदन वन में उत्सव चल रहा था और इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे। इस दौरान गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत और उसकी कन्या पुष्पवती, चित्रसेन और उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे। साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी वहां उपस्थित थे। उस समय गंधर्व गाना गा रहे थे और कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थी। इसी बीच पुष्पवती की नजर माल्यवान पर पड़ी और वह उस पर मोहित हो गई।
पुष्पवती अपने नृत्य से माल्यवान पर काम-बाण चलाने लगी। पुष्पवती सभा की मर्यादा भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो गया। माल्यवान, पुष्पवती को देखकर सुध-बुध खो बैठा और अपने गाने से भटक कर सुर-ताल छोड़ दिए। यह देखकर इंद्र देव को क्रोध आ गया और दोनों को श्राप दे दिया। देवराज इंद्र के श्राप देते ही दोनों ही पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। उन दोनों को उस पिशाच योनि में काफी दुख भोगना पड़ रहा था। तब माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया एकादशी आई। उस दिन दोनों ने वह व्रत किया और केवल फलाहार पर ही अपना दिन व्यतीत किया। उस दिन भी दोनों बहुत दुखी थे और सायंकाल के समय पीपल के वृक्ष के नीचे बैठे थे। लेकिन तभी अचानक उनकी मृत्यु हो गई और जया एकादशी का व्रत करने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई। इसके बाद माल्यवान और पुष्पवती पहले की तरह सुंदर हो गए और उन दोनों को स्वर्ग लोक में वापस स्थान मिल गया।
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