Wednesday, February 20, 2019

वाणों की शैया पर लेटे भीष्म पितामह से द्रौपदी ने पूछा ऐसा प्रश्न चौंक उठे सब

ये बात उस समय की है जब महाभारत के युद्ध का अंतिम दौर चल रहा था। युद्ध के दौरान भीष्म पितामह वाणों की शैया पर लेटे हुए थे। युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ पितामह के चरणों के समीप बैठेकर उनका धर्मोपदेश सुन रहे थे। तभी द्रौपदी वहां उपस्थित हुई और बोली, 'पितामह मेरी भी एक शंका है, क्या आप मुझे उसका उत्तर देंगे।' पितामह ने स्नेहपू्र्वक कहा- 'बोलो बेटी', तुम्हारा क्या प्रश्न है। द्रौपदी ने कहा कि पितामह यह प्रश्न पूछने से पहले मैं आपके क्षमा चाहती हूं क्योंकि जो प्रश्न मैं पूछना चाहती हूं वो बहुत टेढ़ा है। तब पितामह ने कहा- बेटी, तुम्हें जो भी पूछना है तुम निर्भय होकर पूछो। द्रौपदी ने सवाल किया कि- 'पितामह! जब भरी सभा में दु:शासन मेरा चीरहरण कर रहा था, उस समय आप भी वहां उपस्थित थे, किंतु आपने मेरी सहायता नहीं की। आखिर क्यों? उस समय आपका विवेक और ज्ञान कहां चला गया था? एक अबला के चीर हरण का दृश्य आप अपनी आंखों से किस प्रकार देख सके थे?' द्रौपदी का यह प्रश्न सुनकर पांडव चौंक पड़े। 



पितामह ने दौपदी के प्रश्न का उत्तर दिया कि बेटी, उसके लिए मुझे मांफ कर दो। मैं उस समय दुर्योधन का पाप से पूर्ण अन्न खा रहा था। वही पाप मेरे मन और मस्तिष्क में समाया हुआ था। मैं देख रहा था कि यह अत्याचार हो रहा है, अधर्म हो रहा है, लेकिन उसको रोक नहीं सका। मैं चाहता था कि ऐसा न हो, किंतु मना करने का सार्मथ्य मुझमें नहीं था। द्रौपदी ने पितामह को बीच में टोक कर कहा कि लेकिन आज आपको यह ज्ञान कैसे प्रकट हो गया कि दुशासन ने जो कुछ किया था वो गलत था। पितामह ने कहा कि बेटी आज अर्जुन के बाणों ने मेरा वह सारा रक्त बाहर निकाल दिया है जिसमें दुर्योधन के पाप के अन्न का प्रभाव था। अब तो मैं रक्तविहीन प्राणी हूं, इसलिए मेरा विवेक आज सजग है। मेरे शरीर से पाप के अन्न से बना रक्त निकल गया है।' पितामह का जवाब सुनने के बाद द्रौपदी ने कुछ नहीं कहा। 

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