Thursday, February 28, 2019

कभी किसी से विश्वासघात न करें

यह बात उस समय की है जब पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी की फांसी में दो दिन ही बाकी थे। जब बिस्मिल जी गिरफ्तार हुए थे, वह चाहते तो वहां से भाग सकते थे। लेकिन वह भागे नहीं। इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी किया है, जो इस प्रकार है। उस आत्मकथा में रामप्रसाद बिस्मिल जी ने लिखा कि मुझे जब गिरफ्तार किया गया तो मेरे पास उस समय भी मौका था भागने का। जब मुझे कोतवाली लाया गया तो वहां पर निगरानी के लिए एक सिपाही रखा गया था लेकिन वह सो गया था। मुंशी ने उस सिपाही को जगाया और पूछा कि क्या तुम आने वाली विपत्ति के लिए तैयार हो? 



यह बात सुनकर सिपाही समझ गया और उनके पैरों पर गिरकर बोला कि नहीं मुंशी जी आप भागे तो मैं गिरफ्तार हो जाऊंगा, बाल-बच्चे भूखे मर जायेंगे। सिपाही की यह बात सुनकर मुझे उस पर दया आ गई और मैं वहां से भागा नहीं। रात के समय शौचालय का प्रयोग करने के लिए वह गए और उनके साथ मौजूद सुरक्षा में तैनात सिपाही ने उनकी रस्सी खोल दी। सिपाही को ऐसा करते देख दूसरे सिपाही ने उससे कहा कि ऐसा मत करो इसकी रस्सी मत खोलो। तो पहले वाले सिपाही बोले कि मुझे इनपर पूरा विश्वास है कि यह भागेंगे नहीं। रामप्रसाद बिस्मिल जी के दिमाग में कई बार सुझाव आया कि यह सही मौका है, यहां से भागने का। लेकिन वह भागे नहीं, उनके मन में विचार आया कि जिस सिपाही ने मुझ पर इतना भरोसा किया है तो मैं उसके साथ विश्वासघात कैसे कर सकता हूं। ऐसे थे रामप्रसाद बिस्मिल जी जिन्होंने खुद से पहले दूसरे को देखा।

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