Wednesday, February 27, 2019

जब हनुमान जी और महर्षि वाल्मीकि के बीच हो गई थी बहस

यह बात तो सर्वविदित है कि जब कभी कहीं भी राम कथा होती है तो वहां हनुमान जी गुप्त रूप से मौजूद होते हैं। और कुछ ऐसा ही हुआ महर्षि वाल्मीकि जी के साथ। यह बात उन दिनों की है जब महर्षि वाल्मीकि रामायण लिखा करते थे। वह दिनभर में जितनी भी रामायण लिखते, शाम को उसे वनवासियों को सुनाते। राम कथा सुनने के लिए काफी संख्या में वनवासी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में शाम के समय जुटते। 

एक बार वाल्मीकि अशोक वाटिका का प्रसंग सुना रहे थे। उन्होंने कहा कि हनुमान जी जब सीता माता की खोज करने अशोक वाटिका पहुंचे तो वहां उन्होंने सफेद फूल देखे। तभी वहां राम कथा सुन रहे एक वनवासी ने उन्हें रोका और बोला कि हनुमान जी ने सफेद नहीं, लाल फूल देखे थे। लेकिन वाल्मीकि जी नहीं माने और उन्होंने कहा, नहीं हनुमान जी सफेद फूल देखे थे। दोनों ही अपनी बात अड़े रहे।



 जब दोनों को बहस करते हुए काफी देर हो गई तो अंत में वाल्मीकि जी ने वनवासी से पूछा कि तुम्हें कैसे पता कि हनुमान ने वहां सफेद नहीं, लाल फूल देखे थे। तब वनवासी ने कहा कि मैं ही हनुमान हूं। ऐसा बोलते ही वह वनवासी अपने असली रूप में आ गया। हनुमानजी के वास्तविक रूप में आने के बाद भी वाल्मीकि जी अपनी बात पर अड़े रहे। उन्होंने हनुमान जी से कहा कि अशोक वाटिका में सफेद फूल ही थे, लाल नहीं थे। 

जब दोनों के बीच विवाद बढ़ गया तो मध्यस्थता कराने के लिए ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे इसका हल निकालने को कहा। तब ब्रह्मा जी ने हनुमान से कहा कि उन्होंने सफेद फूल ही देखे थे। लेकिन जब वो अशोक वाटिका में थे तो उस समय उनकी आंखें क्रोध से लाल हो रही थी। जिस कारण उन्हें सफेद फूल भी लाल दिखाई दे रहे थे। 

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