Tuesday, February 26, 2019

अत्याचार के खिलाफ हमेशा आवाज उठाए

ये बात उन दिनों की जब भारत अंग्रजों का गुलाम था। स्वामी विवेकांद रेल से यात्रा करके कहीं जा रहे थे। रेल के जिस डिब्बे में स्वामी जी बैठे थे, उसी कोच में अपने बच्चे के साथ एक महिला भी यात्रा कर रही थी। यात्रा के दौरान रेल एक स्टेशन पर रूकी और उस स्टेशन से दो अंग्रेज अफसर चढ़े। वो डिब्बे में जा पहुंचे जहां स्वामी जी बैठे थे और महिला के सामने वाली सीट पर आकर बैठ गए। उन दिनों अंग्रेज हमेशा ही भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार करते थे और ये उनके लिए आम बात थी। 

थोड़ी देर बाद वो दोनों अफसर उस महिला के साथ बदसलूकी और भद्दी टिप्पणी करने लगे। वो महिला अंग्रेजी नहीं समझती थी, तो चुप रही। महिला को शांत देख दोनों अंग्रेज महिला को परेशान करने पर उतर आए। कभी उसके बच्चे को तंग करते। कभी बच्चे का कान मरोड़ते, तो कभी उसके गाल पर चुटकी काट लेते। परेशान होकर उस महिला ने अगला स्टेशन आने पर एक दूसरे कोच में बैठे भारतीय सिपाही से उन दोनों की शिकायत की। 



शिकायत पर वह भारतीय सिपाही उस कोच में आया, मगर अंग्रेजों को देखकर कुछ कहें बगैर ही वहां से वापस चला गया। जब रेल दोबारा चलने लगी तो दोनों अंग्रेज अफसरों ने अपनी हरकत फिर से शुरू कर दी। विवेकानंद काफी देर से यह सब देख-सुन रहे थे। वो समझ गए थे कि ये अंग्रेज इस तरह नहीं मानेंगे। वो अपने स्थान से उठे और जाकर उन अंग्रेजों के सामने खड़े हो गए।

उनकी सुगठित काया देखकर अंग्रेज सहम गए। पहले तो विवेकानंद ने उन दोनों की आंखों में घूरकर देखा। फिर अपने दायें हाथ के कुरते की आस्तीन ऊपर चढ़ा ली और हाथ मोड़कर उन्हें अपने बाजुओं की सुडौल और कसी हुए मांसपेशियां दिखाईं। विवेकानंद के रवैये से दोनों अंग्रेज अफसर डर गए और अगले स्टेशन पर वह दूसरे कोच में जाकर बैठ गए। बाद में विवेकानंद ने अपने एक प्रवचन में यही घटना सुनाते हुए कहा कि जुल्म को जितना सहेंगे, वह उतना ही मजबूत होगा। अत्याचार के खिलाफ तुरंत आवाज उठानी चाहिए।

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