Thursday, February 7, 2019

जब माता अनुसूईया ने अपने तप से त्रिदेवों को बना दिया शिशु

महर्षि अत्री की पत्नी सती अनुसूईया अपने पतिव्रता धर्म के कारण हर जगह सुविख्यात थी, उनकी हर जगह मिसालें दी जाती थी। जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वनवास काल में थे तो उस दौरान वह महर्षि अत्रि के आश्रम में ठहरे थे जहां सीता माता ने उनसे पतिव्रता धर्म की शिक्षा ली थी। लेकिन माता अनुसूईया की पतिव्रता भक्ति से तीनों देवियां उस समय विचलित हो गई जब उन्हें नारद जी द्वारा पता चला कि माता अनुसूईया ही सबसे पतिव्रता स्त्री हैं और उस दिन उन्होंने माता अनुसूईया की परीक्षा लेने की ठान ली। दरअसल, एक दिन लक्ष्मी जी, पार्वती जी और सरस्वती जी अपने पतिव्रता होने की एक-दूसरे से चर्चा कर रही थी। तभी वहां नारद जी तीनों देवियों के पास जा पहुंचे और माता अनुसूईया के पतिव्रता धर्म का गुणगान करने लगे। लेकिन त्रिदेवियों को यह प्रशंसा बहुत चुभ गई। 

तभी ब्रह्मा, विष्णु और शिव वहां पहुंचे गए जहां तीनों देवियां आपस में बात कर रही थी। तीनों देवियों ने त्रिदेवों से माता अनुसूईया की परीक्षा लेने की जिद्द की। तीनों देवों ने उन्हें बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं मानी और बहुत आग्रह करने पर तीनों देव वहां से ऋषियों का वेष धारण कर महर्षि अत्री के आश्रम पहुंच गए। अतिथि-सत्कार की परंपरा के चलते सती अनुसूईया ने त्रिमूर्तियों का उचित रूप से स्वागत किया और खाने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन ऋषियों के भेष में त्रिमूर्तियों ने एक स्वर में कहा कि हे साध्वी, हमारा एक नियम है कि जब तुम निर्वस्त्र होकर भोजन परोसोगी, तभी हम भोजन करेंगे। ऋषियों की यह बात सुनकर माता अनुसूईया अस मंजस में पड़ गई और सोचने लगी कि अगर ऐसा किया तो उनका पतिव्रता धर्म खंडित हो जाएगा। उन्होंने मन ही मन ऋषि अत्रि का स्मरण किया और अपनी दिव्य शक्ति से जाना कि यह तो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। 



मुस्कुराते हुए माता अनुसूईया बोली 'जैसी आपकी इच्छा'.... माता ने तीनों यतियों पर जल छिड़का और उन्हें शिशुयों में परिवर्तित कर दिया। सुंदर शिशु देख कर माता अनुसूईया के हृदय में मातृत्व भाव उमड़ पड़ा। इसके बाद माता ने शिशुओं को स्तनपान कराया, दूध-भात खिलाया, गोद में सुलाया। तीनों गहरी नींद में सो गए। त्रिदेवों को झूले में झुलाते हुए माता अनुसूईया माता ने कहा- ‘तीनों लोकों पर शासन करने वाले त्रिमूर्ति मेरे शिशु बन गए, मेरे भाग्य को क्या कहा जाए। फिर वह मधुर कंठ से लोरी गाने लगी। उसी समय कहीं से एक सफेद बैल आश्रम में पहुंचा और द्वार के सम्मुख खड़ा हो गया। फिर, एक विशाल गरुड़ पंख फड़फड़ाते हुए आश्रम के ऊपर से उड़ने लगा। एक राजहंस विकसित कमल को चोंच में लिए हुए आश्रम में उतर आया। उसी समय महती वीणा पर नीलांबरी राग का आलाप करते हुए नारद जी और उनके पीछे लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती आ पहुंची। 

नारद ने विनयपूर्वक अनुसूईया से कहा कि माता ये तीनों अपने पतियों को ढूंढ रही हैं, कृपया आप इनके पतियों को लौटा दीजिये। अनुसूईया ने तीनों देवियों को प्रणाम किया और कहा- माताओं, झूलों में सोने वाले शिशु अगर आपके पति हैं तो इन्हें आप ले जा सकती हैं। जब त्रिदेवियों ने तीनों शिशु को देखा तो वे तीनों उन्हें एक समान ही लगे। इस पर लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती भ्रमित होने लगीं। तीनों की असमंजस को देखकर नारद जी ने उनसे पूछा कि क्या आप अपने पति को पहचान नहीं सकतीं? जल्दी से अपने-अपने पति को गोद में उठा लीजिए। जल्दी-जल्दी में देवियों ने एक-एक शिशु को गोदी में उठा लिया। 

शिशुओं को गोदी में उठाते ही तीनों के तीनों त्रिमूर्तियों के रूप में खड़े हो गए। तब उन्हें पता चला कि सरस्वती ने शिवजी को, लक्ष्मी ने ब्रह्मा को और पार्वती ने विष्णु को उठा लिया है। तीनों देवियों ने माता अनुसूईया से क्षमा मांगी और उन्हें पूरा सच बताया। उन्होंने प्रार्थना की कि उनके पति को दोबारा उनके स्वरूप में ले आए। तब माता अनुसूईया ने त्रिदेवों को उनका रूप प्रदान किया। अनुसूईया की मातृ भक्ति से खुश होकर तीनों देवों ने माता से वरदान मांगने को कहा। तब माता ने बोला कि आप तीनों मेरी कोख से जन्म लें ये वरदान चाहिए अन्यथा नहीं। तभी से मां सती अनुसूईया के नाम से प्रख्यात हुई तथा कालान्तर में भगवान दतात्रेय रूप में भगवान विष्णु का, चन्द्रमा के रूप में ब्रह्मा का तथा दुर्वासा के रूप में भगवान शिव का जन्म माता अनुसूया के गर्भ से हुआ।

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