Thursday, February 7, 2019

भगवान विष्णु ने इस तरह चूर किया था दैत्यराज बली का घमंड

भगवान विष्णु ने पृथ्वी के उद्धार के लिए कई अवतार लिए थे, और उनमें में एक था वामन अवतार। धर्म ग्रथों के अनुसार, वामन अवतार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से पांचवें अवतार हैं। वामन देव भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की द्वादसी को अवतरित हुए थे। लेकिन आखिर क्यों लिया श्रीविष्णु ने वामन अवतार? ये अवतार लेने की श्रीविष्णु को क्या जरूरत पड़ी थी। दरअसर, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। यह बात तब कि है जब दैत्यराज बली ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। राजा बली बड़े पराक्रमी और दानी थे। भगवान के वे बड़े भक्त भी थे, लेकिन उसे बहुत ही घमंडा था और बली के इसी घमंड को टोड़ने के लिए श्रीविष्णु ने वामन अवतार लिया। जब देवराज इंद्र बली से पराजित हो गये तो इंद्र की दयनीय स्थिति देखकर उनकी मां अदिति बहुत दुखी हुईं और अपने पुत्र के उद्धार के लिए विष्णु जी की आराधना की। 



इससे प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट होकर बोले- देवी! चिंता मत करो। मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लेकर इंद्र को उसका खोया राज्य दिलाऊंगा। इसके बाद श्रीविष्णु ने अदिति के गर्भ से वामन के रूप में अवतार लिया। उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे। एक दिन उन्हें पता चला कि राजा बली स्वर्ग पर स्थायी अधिकार जमाने के लिए अश्वमेध यज्ञ करा रहा है। यह जानकर वामन वहां पहुंचे गए, जैसे ही वे राजा बली के यज्ञ स्थल पर गए, बली उन्हें देखकर बहुत प्रभावति हुआ। उसने भगवान के आकर्षक रूप को देखते हुए उन्हें उचित स्थान दिया। बली ने उन्हें एक उत्तम आसन पर बिठाकर उनका सत्कार किया और अंत में उनसे भेंट मांगने के लिए कहा। 

इस पर वामन चुप रहे, लेकिन जब बली उनके पीछे पड़ गया तो उन्होंने अपने कदमों के बराबर तीन पग भूमि भेंट में मांगी। तब बली मुस्कुराए और बोले- तीन पग भूमि तो बहुत छोटा-सा दान है। महाराज और कोई बड़ा दान माँग लीजिए, लेकिन वामन अपनी बात पर अड़े रहे। इस पर बली ने हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया। संकल्प पूरा होते ही वामन का आकार बढ़ने लगा और उनका रूप विराट हो गया। उन्होंने एक पग से पृथ्वी और दूसरे से स्वर्ग को नाप लिया। तीसरे पग के लिए बली ने अपना मस्तक आगे कर दिया। वह बोला- प्रभु, सम्पत्ति का स्वामी सम्पत्ति से बड़ा होता है। तीसरा पग मेरे मस्तक पर रख दें। सब कुछ गंवा चुके बली को अपने वचन से न फिरते देख वामन प्रसन्न हो गए। उन्होंने ऐसा ही किया और बाद में उसे पाताल का अधिपति बना दिया और देवताओं को उसके भय से मुक्ति दिलाई।

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