Sunday, March 31, 2019

पापमोचनी एकादशी की कथा

पापमोचनी एकादशी की कथा

बहुत समय पहले मांधाता नाम के एक पराक्रमी राजा थे। राजा मांधाता ने एक बार लोमश ऋषि से पूछा कि मनुष्य जो जाने-अनजाने में पाप करता है, उससे कैसे मुक्त हो सकता है? तब लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी, तो वह उन पर मोहित हो गई और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थ। तभी उनकी नजऱ अप्सरा पर गई और उसके मनोभाव को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने प्रयास में सफल हुई और ऋषि की तपस्या भंग हो गई। ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जागी तो उन्हें आभास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरक्त हो चुके हैं। उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध आया और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी।  ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी (पापमोचिनी एकादशी) का व्रत करने के लिए कहा। भोग में डूबे रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था। ऋषि ने भी एकादशी का व्रत किया, जिससे उनका पाप भी नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गई और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ तब वह पुन: स्वर्ग चली गई।

पापमोचनी एकादशी

पापमोचनी एकादशी
06:16 to 08:38

Thursday, March 28, 2019

मंत्र जाप के नियम

मंत्र जाप के नियम

– मंत्र जाप का सबसे पहला नियम है मंत्र का सही उच्‍चारण करना।

– जिस मंत्र का जाप करना है उसका अर्घ्‍य पहले से लें।

– मंत्र सिद्धि को गुप्‍त रखना चाहिए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है।

– कम से कम 108 मनकों का जाप अवश्‍य करना चाहिए।

ये है मंत्र जाप के नियम – किसी विशिष्‍ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जाप करना चाहिए। इस तरह किया गय जाप अतिशीघ्र फल देता है। जाप का दक्षांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए।

आइये जानते है चुकंदर की फायदे :


1 हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाने के लिए चुकंदर बेहद फायदेमंद है। नियमित रूप से चुकंदर या चुकंदर के जूस का सेवन रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाने में बेहद मददगार साबित होगा।
2 रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी चुकंदर एक रामबाण औषधि है। नियमित इसका सेवन कर आप रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर कई गंभीर बीमारियों से बच सकते हैं।
3 विटामिन ए, विटामिन सी, फाइबर, सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन, आयरन और नेचुरल शुगर जैसे तत्वों से भरपूर चुकंदर सेहत से जुड़े कई बेमिसाल फायदे पहुंचाता है।
4 नियमित रूप से चुकंदर के जूस का सेवन कर आप अपनी त्वचा को साफ और चमकदार बना सकते हैं। इतना ही नहीं यह आपको जवां दिखने में भी मददगार होगा। यह एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है और तनाव में भी राहत देता है।
5 महिलाओं के लिए नियमित रूप से चुकंदर का सेवन करना बेहद फायदेमंद है। यह शरीर में आयरन यानि लौह तत्व की कमी को पूरा करने में सहायक है, जो महिलाओं में अधिकांशत: देखी जाती है।

Wednesday, March 27, 2019

पूजन विधि :


व्रती को इस दिन प्रातःकालीन कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करना चाहिए।
शीतला सप्तमी या अष्टमी का व्रत केवल चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होता है और यही तिथि मुख्य मानी गई है।
संकल्प के पश्चात विधि-विधान तथा सुगंधयुक्त गंध व पुष्प आदि से माता शीतला का पूजन करें।
संकल्प के पश्चात विधि-विधान तथा सुगंधयुक्त गंध व पुष्प आदि से माता शीतला का पूजन करें।
इसके पश्चात एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) खाद्य पदार्थों, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग लगाएं।
यदि आप चतुर्मासी व्रत कर रहे हो तो भोग में माह के अनुसार भोग लगाएं। जैसे- चैत्र में शीतल पदार्थ, वैशाख में घी और शर्करा से युक्त सत्तू, ज्येष्ठ में एक दिन पूर्व बनाए गए पूए तथा आषाढ़ में घी और शक्कर मिली हुई खीर।
तत्पश्चात शीतला स्तोत्र का पाठ करें और शीतला अष्टमी की कथा सुनें।
रात्रि में जगराता करें और दीपमालाएं प्रज्ज्वलित करें।
विशेष : इस दिन व्रती को चाहिए कि वह स्वयं तथा परिवार का कोई भी सदस्य किसी भी प्रकार के गरम पदार्थ का सेवन न करें। इस व्रत के लिए एक दिन पूर्व ही भोजन बनाकर रख लें तथा उसे ही ग्रहण करें। बसौड़ा वाले दिन सुबह ठंडे पानी से नहाना चहिए और जिन माताओं के बच्चे अभी माता का दूध पीते हो तब उन्हें बसौड़ा के दिन नहाना नहीं चाहिए।

आज का राशिफल


आज का पंचांग


महामंत्र

हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे , हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे

यह मन्त्र दिव्यशक्ति का प्रतिक है जितनी शक्ति भगवान मे होती है उतनी शक्ति इस मन्त्र के जाप करने से आती है....इस मन्त्र की  विशेषता : मन्त्र के उच्चारण करने से हृदय के कलमश दूर होते है हृदय मे शांति और सिद्धि के प्राप्ति  होती है...यह मंत्रो का राजा कहलाता है ..इसके जाप करने से सुख , समृद्धि इत्यादि की  प्राप्ति होती है
महामंत्र का लक्ष्य है -भगवान को प्राप्त करना
हरे के अर्थ है - राधारानी,
कृष्णा के अर्थ- श्री कृष्ण भगवान,
हरे राम के अर्थ - बलराम या सीताराम

शीतला माता की शुभकामनाये

शीतला माता का पर्व कभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को, कही वैशाख मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को तो कही चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की

सप्तमी अथवा अष्टमी को मनाया जाता है। शीतला माता अपने साधकों के तन-मन को शीतल कर देती है तथा समस्त प्रकार के तापों का नाश करती

है। शीतला माता का पर्व चाहे षष्टी को हो, सप्तमी को हो या अष्टमी को इसे दूसरे नामों से भी जाना जाता है, जैसे बसौड़ा अथवा बसियौरा भी इसे कहा

जाता है।

माता शीतला पर्व का महत्व

हिन्दू धर्म के अनुसार माता शीतला अष्टमी को महिलाएं अपने परिवार तथा बच्चो की सलामती के लिए एवम घर में सुख,शांति के लिए रंग पंचमी से

अष्टमी तक माता शीतला को बासौड़ा बनाकर पूजती है। माता शीतला को बासौड़ा में कढ़ी-चावल, चने की दाल, हलवा, बिना नमक की पूड़ी आदि चढ़ावे

के एक दिन पूर्व रात्रि में बना लिए जाता है तथा अगले दिन यह बासी प्रसाद माता शीतला को चढ़ाया जाता है। पूजा करने के पश्चात महिलाएं बासौड़ा

का प्रसाद अपने परिवारो में बां ट कर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करके माता शीतला का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

Tuesday, March 26, 2019

मेथी के फायदे

1. डायबिटीज :
शुगर के मरीजों को अक्सर अपनी डाइट में मेथी के दाने शामिल करने के लिए कहा जाता है। इसके सेवन से शुगर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
2. कोलेस्ट्रॉल :
शोध के अनुसार मेथी के दानों में कोलेस्ट्रॉल को कम करने की क्षमता है। खासकर, यह एलडीएल यानी खराब कोलेस्ट्रॉल को शरीर से खत्म करने में कारगर है।
3. ह्रदय के लिए :
ह्रदय बेहतर तरीके से काम कर सके, उसके लिए मेथी के सेवन की सलाह दी जाती है। जो लोग नियमित रूप से मेथी का सेवन करते हैं, उन्हें दिल का दौरा पड़ने की आशंका कम होती है और अगर दौरा पड़ भी जाए, तो जानलेवा स्थिति से बचा जा सकता है।
4. पाचन तंत्र :
आजकल हमारा खान-पान जिस तरह को हो गया है, उसके चलते हमारा पाचन तंत्र लगातार खराब हो रहा है। साथ ही पेट से जुड़ी अन्य बीमारियां भी हो जाती हैं। इससे निपटने के लिए मेथी का सेवन करना बेहतर उपाय है।
5 वजन नियंत्रण :
अगर आप वजन कम करना चाहते हैं, तो मेथी आपकी मदद कर सकती है। इसे आप अपनी डाइट में जरूर शामिल करें
मेथी के दाने शरीर में फैट को जमा नहीं होने देते। साथ ही ये लिपिड और ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म के स्तर में सुधार लाते हैं, जिससे वजन कम होने लगता है
6 रक्तचाप में सुधार :
उच्च रक्तचाप कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकता है। रक्तचाप अधिक होने पर ह्रदय रोग हो सकते हैं। इससे निपटने के लिए मेथी का सेवन किया जा सकता है।
7 .कील-मुंहासे :
जिन्हें अक्सर कील-मुंहासों की शिकायत रहती है, उन्हें मेथी का प्रयोग जरूर करना चाहिए। मुंहासों को खत्म करने में मेथी मददगार साबित हो सकती है।
8 .झड़ते बाल :
बालों को जड़ों से मजबूत बनाने के लिए मेथी का प्रयोग किया जा सकता है। साथ ही यह बालों के रोम छिद्रों से जुड़ी समस्याओं को भी खत्म करती है।

सुंदरकांड अर्थ सहित

सुंदरकांड अर्थ सहित
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान॥2॥
भावार्थ: तुम श्री रामचंद्रजी का सब कार्य करोगे, क्योंकि तुम बल-बुद्धि के भंडार हो। यह आशीर्वाद देकर वह चली गई, तब हनुमान् जी हर्षित होकर चले

आज का राशिफल


आज का पंचांग


महामृत्युंजय मंत्र

महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में मिलता है। संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो मृत्यु को जीतने वाला हो। इसलिए भगवान शिव की स्तुति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है। इसके जप से संसार के सभी कष्ट से मुक्ति मिलती हैं। ये मंत्र जीवन देने वाला है। इससे जीवनी शक्ति तो बढ़ती ही है साथ ही सकारात्मकता बढ़ती है। महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव से हर तरह का डर और टेंशन खत्म हो जाती है। शिवपुराण में उल्लेख किए गए इस मंत्र के जप से आदि शंकराचार्य को भी जीवन की प्राप्ती हुई थी।
इस मंत्र का मतलब है कि हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का
पालन-पोषण करते हैं।

तिलक का महत्व

 तिलक का महत्व
माथे पर राख द्वारा चिन्हित तीन आड़ी रेखाऐं दर्शाती हैं की लगाने वाला शिव-भक्त है। नाक पर तिकोन और उसके ऊपर “V” चिन्ह यह दर्शाता है कि लगाने वाला विष्णु-भक्त है। यह चिन्ह भगवान विष्णु के चरणों का प्रतीक है, जो विष्णु मन्त्रों का उच्चारण करते हुए लगाया जाता है। तिलक लगाने के अनेक कारण एवं अर्थ हैं परन्तु यहाँ हम मुख्यतः वैष्णवों द्वारा लगाये जाने वाले गोपी-चन्दन तिलक के बारे में चर्चा करेंगे । गोपी-चन्दन (मिट्टी) द्वारका से कुछ ही दूर एक स्थान पर पायी जाती है। इसका इतिहास यह है कि जब भगवान इस धरा-धाम से अपनी लीलाएं समाप्त करके वापस गोलोक गए तो गोपियों ने इसी स्थान पर एक नदी में प्रविष्ट होकर अपने शरीर त्यागे। वैष्णव इसी मिटटी को गीला करके विष्णु-नामों का उच्चारण करते हुए, अपने माथे, भुजाओं, वक्ष-स्थल और पीठ पर इसे लगते हैं।

तिलक हमारे शरीर को एक मंदिर की भाँति अंकित करता है, शुद्ध करता है और बुरे प्रभावों से हमारी रक्षा भी करता है। इस तिलक को हम स्वयं देखें या कोई और देखे तो उसे स्वतः ही श्री कृष्ण का स्मरण हो आता है। गोपी चन्दन तिलक के माहात्म्य का वर्णन विस्तार रूप में गर्ग-संहिता के छठवें । उसके अतिरिक्त कई अन्य शास्त्रों में भी इसके माहात्म्य का उल्लेख मिलता है।

क्यों लगाते हैं तिलक माथे पर


हिन्दू आध्यात्म की असली पहचान तिलक से होती है। मान्यता है कि तिलक लगाने से समाज में मस्तिष्क हमेशा गर्व से ऊंचा होता है। हिंदू परिवारों में किसी भी शुभ कार्य में "तिलक या टीका" लगाने का विधान हैं। यह तिलक कई वस्तुओ और पदार्थों से लगाया जाता हैं। इनमें हल्दी, सिन्दूर, केशर, भस्म और चंदन आदि प्रमुख हैं, परन्तु क्या आप जानते हैं कि इस तिलक लगाने के प्रति भावना क्या छिपी हैं? पुराणों में वर्णन मिलता है कि संगम तट पर गंगा स्नान के बाद तिलक लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है की स्नान करने के बाद पंडों द्वारा विशेष तिलक अपने भक्तों को लगाया जाता है। माथे पर तिलक लगाने के पीछे आध्यात्मिक महत्व है।
दरअसल, हमारे शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं। इन्हें चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र होता है। यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। तिलक लगाने से एक तो स्वभाव में सुधार आता हैं व देखने वाले पर सात्विक प्रभाव पड़ता हैं। तिलक जिस भी पदार्थ का लगाया जाता हैं उस पदार्थ की ज़रूरत अगर शरीर को होती हैं तो वह भी पूर्ण हो जाती हैं।

कैसे करे गर्मियों मे अपनी देखभाल

गर्मी में आपका पसीना ज़्यादा मात्रा में निकलता है, अतः काफी पानी पीकर शरीर की नमी को बनाए रखें। कैफीन युक्त पेय पदार्थों से दूर रहे। आप

ठंडी चाय, ताज़ा रस, नारियल पानी, नींबू पानी आदि कई विकल्पों में से एक विकल्प चुन सकते हैं। ज़्यादा आइस क्रीम ना खाएं क्योंकि यह मोटापा

बढ़ाती है और चीनी से भरपूर होती है। सही तापमान में रखा पानी पियें क्योंकि ज़्यादा ठन्डे पानी से गला खराब हो सकता है।
हमेशा धुप से आने के या पसीना पसीना होने के बाद नहा ज़रूर लें। इससे ना सिर्फ आपको ताज़गी मिलेगी बल्कि आपकी त्वचा पर बैक्टीरिया कम

होंगे। नहाते समय अपनी त्वचा को एक्सफोलिएट अवश्य करें। इससे मृत कोशिकाएं निकलेंगी एवं आपको स्वस्थ त्वचा की प्राप्ति होगी।
गर्मियों में तैलीय भोजन या फुल क्रीम डेरी उत्पाद ग्रहण करने से आपकी पाचन प्रणाली पर असर पडेगा। काफी मात्रा में सलाड और फल खाएं। ताज़ी

पत्तेदार सब्ज़ियाँ, मौसमी फल और मछलियाँ खाइये। ओमेगा ३ फैटी एसिड और एंटी ऑक्सीडेंट्स युक्त भोजन ग्रहण करें। मौसम के अनुसार भोजन

करने से आप कई बीमारियों से बच सकते हैं। लाल टमाटर, खीरा, संतरा, गाजर आदि गर्मियों में खाने वाले भोजन हैं।
सही कपडे ना सिर्फ आपको आकर्षक दिखाएंगे बल्कि आपको आराम भी पहुंचाएंगे। गर्मियों में पूरे बाज़ू के कपडे पहनें क्योंकि ऐसा न करने से टैनिंग हो सकती है। हलके रंग के ढीले कपडे पहनें क्योंकि ये आरामदायक होते हैं और इनसे हवा आ जा पाती है। सूरज की रौशनी से बचने के लिए टोपी पहनें। आँखों को बचाने के लिए चश्मे पहनें।

Monday, March 25, 2019

सुंदरकांड अर्थ सहित

बदन पइठि पुनि बाहेर आवा।
मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा।
बुधि बल मरमु तोर मैं पावा॥6॥

भावार्थ: और उसके मुख में घुसकर (तुरंत) फिर बाहर निकल आए और उसे सिर नवाकर विदा माँगने लगे। (उसने कहा-) मैंने तुम्हारे बुद्धि-बल का भेद पा लिया, जिसके लिए देवताओं ने मुझे भेजा था॥6॥

आज का पंचांग


आज का राशिफल


राधारानी का मुरली के प्रति सौतन व्यवहार

मुरली भगवान  कृष्ण के ह्रदय रुपी वक्षस्थल मे वास करती है मुरली की मधुर स्वरों मे गोपियों की ह्रदय मे  प्रेम की  अथा तरंगो को सर्जन करके

उनमे प्रेम और उल्ल्लास भर दिया। वे उस मुरली की माध्यम से श्री कृष्ण की ध्यान मे खो जाती है । भगवान श्री कृष्ण की मुरली शब्द ब्रह्ममा बका

प्रतीक है तथा मुरली से निकलनी वाली ध्वनि तरंगे भगवती  सरस्वती की  प्रतीक है क्यों की संपूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वरों की व ज्ञान की देवी है ..एक

समय की  बात है ।आज से कई हज़ारो  वर्ष पूर्व ब्रह्मा जी द्वारा सरस्वती जी पृथ्वी लोक पर बंशाजड़ होने का श्राप  मिला ।बंशाजड़  अर्थात बॉस  की

जड़. श्राप मिलते ही सरस्वती जी ने बगवान नारायण की स्तुति प्रारम्भ कर दी । एक हज़ार वर्ष तक प्रभु प्राप्ति की लिए सरस्वती जी ने तप किया।

तप के फलस्वरूप भगवान विष्णु जी ने प्रसन्न होकर सरस्वती जी को दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा - सरस्वती जी ने कहा के जिस प्रकार

बैकुंठ लोक मे देवी लक्ष्मी आपकी चरण वंदन करती है उसी प्रकार मै भी आपका एक अंग बनना चाहती हूँ. भगवान विष्णु मुस्कुराये और देवी लक्ष्मी

से भी बढ़ क्र देवी सरस्वती को वरदान दिया कि कृष्ण अवतार मे अपनी सहचरी बनाने का वरदान सरस्वती जी को दिया तब उन्होंने ब्रह्मा कि कि  श्राप को याद करके प्रभु से कहा मुझे तो जड़ बॉस के रूप मे जन्म लेने का श्राप मिला है यह सुनकर प्रभु ने कहा निसंदेह तुम्हे चाहे जड़ रूप मे जन्म

मिले , फिर भी मे तुम्हे अपनाऊंगा तुम मे ऐसी प्राण शक्ति भर दूंगा कि तुम एक विलक्षण चेतना का अनुभव करोगी और अपनी जड़ो को चैतन्य

बनाये रख सकोगी


तथाअस्तु कहकर प्रभु अंतर्ध्यान हो जाते है और सरस्वती जी का ब्रह्मम श्राप के  प्रभाव से बांस कि वृक्ष जन्म हुआ और भगवान विष्णु कि वरदान से

द्वापर युग मे श्री कृष्ण अवतार मे उस बांस का यानी सरस्वती जी का मुरली के रूप मे जन्म हुआ और विश्व वन्दनीये प्रभु कि प्रिये मुरली बन

गयी....मुरली सब जड़ चेतन के मन को चुरा लेती है और भगवान श्री कृष्ण इसे सदा होटो पर सजाये रखते और  कमली मे लगाए  रखते है... कृष्ण

भगवान और मुरली का सम्बन्ध राधारानी से बढ़कर है मुरली मन को जड़चेतन करनेवाली और  ह्रदय को वसीभूत करने वाली ,और सभी को अपनी

और आकर्षित करने वाली एक पल भी सावरिये  से दूर न रहने वाली बासुरी ने बांस के होकर भी राधारानी से उच्च स्थान पाया है राधारानी का

मुरली से सौतन जैसा साथ है यही कारण है वो वरदान जो देवी लक्ष्मी से बढ़कर मुरली को मिला (भगवती लक्ष्मी राधारानी और सत्यभामा का

अवतार है ) वह इस प्रकार फलीभूत हुआ और मुरली को ठाकुर जी के पास प्रेम, मान और सम्मांन किशोरी राधारानी  के तरह प्राप्त हुआ

रंग पंचमी की कथा

रंग पंचमी त्यौहार हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है देखा जाऐ तो यह त्यौहार रंगो के त्यौहार

होली का विस्तार है । उत्तर भारत मे होली की शुरुआत श्री पंचमी से होती है जो की चैत्र महा की रंग पंचमी तक चलती है इसलिए रंग पंचमी को

होली का अंतिम दिन भी कहा जाता है। त्रेता युग के प्रभारं मे श्री हरी विष्णु जी ने धूलि वंदन किया, इसका अर्थ है उस युग मे विष्णु जी ने अलग-

अलग तेजोमय रंगो से अवतार लिया था। त्रेता युग मे अवतार निर्मित होने पर उसे तेजोमय अर्थात विविध रंगो की सहायता से दर्शन रूप मे वर्णित

किया गया है। भगवान हरी ने जब इन अवतारों की रूप रेखा बनाई तो भगवती योगमाया ने भगवान विष्णु जी के चरणों पर गुलाल लगाया वही देव

आदि देव महादेव अपनी योग शक्ति से इस लीला को देख रहे थे, इस कल्याणकारी कार्य और लोक कल्याण की लिए भगवान आशुतोष साक्षात प्रकट

जाते है जहां भगवान विष्णु और देवी योगमाया थी। भगवान विष्णु और भोलेनाथ जब एक दूसरे को देखते है और प्रणाम करते है तभी योगमाया देवी

दोनों देवो की बीच रंग उड़ाती है और आकाश से सभी देवतागण पुष्प वर्षा करते हुए जयघोष करते है। आज के दिन उड़ीसा के जगन्नाथ पूरी मे

भगवान का विशेष रंग श्रृंगार किया जाता है जो की भगवान श्री हरी का अवतार श्री कृष्ण है। वही दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के अंदर

शंकर जी के बारह (12) ज्योतिर्लिंगों मे से एक ज्योतिर्लिंग महाकाल का रंग श्रृंगार होता है व फूलो का विशेष डोला सजाया जाता है और लोग इस यात्रा

के दौरान रंग गुलाल उड़ाते है व ऐसी मान्यता है की उज्जैन नगरी मे आज के दिन भगवान शंकर होली खेलने साक्षात महाकाल स्वरूप मे उज्जैन

नगरी आते है। यह उत्सव बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है और इसी के साथ होली महापर्व का समापन हो जाता है। रंग पंचमी आप सभी के

जीवन मे रंगो की बहार को बनाये रखे। आपका जीवन रंगो सा चमकता रहे, यही. रंग पंचमी का उदेश्य है। इसी के साथ आप सभी को रंग पंचमी की

हार्दिक शुभकामनाएं।

Sunday, March 24, 2019

आप सभी को सनातन परिवार की ओर से रंग पचमी की हार्दिक शुभकामनाये


सुंदरकांड अर्थ सहित

जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूप देखावा॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा।
अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥5॥
भावार्थ: जैसे-जैसे सुरसा मुख का विस्तार बढ़ाती थी, हनुमान् जी उसका दूना रूप दिखलाते थे। उसने सौ योजन (चार सौ कोस का) मुख किया। तब हनुमान् जी ने बहुत ही छोटा रूप धारण कर लिया॥5॥

#आज का पंचांग #


आज का राशिफल


Saturday, March 23, 2019

क्या आप जानते है तुलसी की माला के महत्व ?

हिंदू धर्म में
तुलसी को बहुत बड़ा महत्व दिया गया है| तुलसी की माला पहनने से कई बीमारियां ठीक हो होती हैं, तुलसी को शास्त्रों में अनुसार उल्लेख है| कि भगवान विष्णु ने शालिगराम का रूप इसलिए ही लिया था ताकि वे तुलसी के चरणों में रह सकें। इस लिए भगवान विष्णु को रमप्रिया मानी जाती है। और तुलसी खुद को भगवान की सेविका मानती हैं और उन्हें शालिगराम के रूप मे हमेशा अपने छांव में रखती हैं। तुलसी के पौधे में कई औषधीय गुण भी पाए जाते हैं जो की बीमारियों और दवाइयों में इस्तमाल किया जाता है|शास्त्रो में बताया गया है कि तुलसी की माला पहनने से पहले इसे गंगा जल और धूप दिखाना चाहिए। इसे तुलसी की को धारण करने पर बुध और गुरु ग्रह बलवान होते हैं और सुख-समृद्धि भी दुगनी हो जाती है | तुलसी की माला पहनने से पहले मंदिर में जाकर श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए। इसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद आप पर सदेव बना रहेता है | तुलसी की माला को धारण करने वाले को लहसुन-प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे तुलसी की का अनाधर होता है | जो भी व्यक्ति तुलसी की माला को धारण करता है उसे मांस व मदिरा से भी दूर रहना चाहिए।
हिंदू धर्म में महिलाएं सुख-समृद्धि लाने के लिए तुलसी की पूजा करती हैं। इसी तरह तुलसी की माला भी धारण करना अच्छा माना जाता है। जो सजन भगवान विष्णु और कृष्ण के में आस्था विश्वास रखते है वो तुलसी की माला को धारण करते हैं। कहा जाता है कि इस माला को पहहने से ही आत्मा और मन की शुद्धि होती है। इतना ही नहीं भगवान कृष्ण के भक्त मानते हैं कि इस माला से जप करने से भगवान उनके और करीब आते हैं। और उन की सारी मनोकामना पूरी करते है |तुलसी की  वैसे  तो आप कभी भी धारण कर सकते है| लेकिन अगर आप इसे किसी शुभ महूरत पर पहनते है तो आपको इस का दुगना फ़ायदा होता है और आप को हर तरफ से सफलता मिलती है| तुलसी की  को आप ने सोमवार के दिन धारण तुलसी की माला में विद्युत शक्ति होती है। इस माला को पहनने से यश, कीर्ति और सौभाग्य बढ़ता है। शालिग्राम पुराण में कहा गया है कि तुलसी की माला भोजन करते समय शरीर पर होने से अनेक यज्ञों का पुण्य मिलता है। जो भी कोई तुलसी की माला पहनकर नहाता है, उसे सारी नदियों में नहाने का पुण्य मिलता है।

सुंदरकांड अर्थ सहित


जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा।
कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा ॥
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ।
तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥4॥
भावार्थ: उसने योजनभर (चार कोस में) मुँह फैलाया। तब हनुमान् जी ने अपने शरीर को उससे दूना बढ़ा लिया। उसने सोलह योजन का मुख किया। हनुमान् जी तुरंत ही बत्तीस योजन के हो गए॥4॥

Friday, March 22, 2019

शहीदी दिवस


आज का राशिफल


पंचांग


जल ही जीवन है


नमस्कार

नमस्ते का 'नमः' शब्द का अर्थ होता है नमन, जिसमें आप अपने हाथों को जोड़कर सामने वाले का सम्मानपूर्वक स्वागत करते हैं. साथ ही नमस्ते और नमस्कार दोनों का मतलब होता है.
नमस्ते का उच्चारण करने मात्र से ही शरीर के अंदर पॉजीटिव एनर्जी का संचार होता है, जो सामने वाले व्यक्ति की आत्मा को भी प्रभावित करती है..............
नमस्ते का अध्यात्मिक अर्थ
नमस्ते सामने वाले व्यक्ति के अन्दर की आत्मा का सम्मान दर्शाता है. जब आप दोनों हथेलियों को जोड़कर मुंह से नमस्ते का उच्चारण करते हैं तो आपके अंदर एक तरंग उत्पन्न होती है. इसके साथ ही यह तरंग सामने वाले व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है.

माँ वैभव लक्ष्मी

1-यह व्रत स्त्री एवं कुमारिका भी यह व्रत कर सकती है।
2-स्त्री के बदले पुरुष भी यह व्रत करें तो उसे भी उत्तम फल अवश्य मिलता है।
3- यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहिये। खिन्न होकर या बिना भाव से यह व्रत नहीं करना चाहिए।
4-कुछ लोग 11 या 21 बार की मन्नत करके व्रत करते हैं।
5-एक बार व्रत पूरा करने के पश्चात फिर मन्नत कर सकते हैं और फिर से व्रत कर सकते हैं।
6-माता लक्ष्मी देवी के अनेक रूप हैं। उनमें उनका धनलक्ष्मी स्वरूप ही वैभवलक्ष्मी है और माता लक्ष्मी का श्रीयंत्र अति प्रिय है। व्रत करते समय लक्ष्मी जी के हर स्वरूप को और श्रीयंत्र को प्रणाम करना चाहिये, तभी व्रत का फल मिलता है। अगर हम इतनी भी मेहनत नहीं कर सकते हैं तो लक्ष्मीदेवी भी हमारे लिये कुछ करने को तैयार नहीं होगी और हम पर माँ की कृपा नहीं होगी।
7-व्रत के दिन सुबह से ही `जय मां लक्ष्मी` का  जाप  मन ही मन करना चाहिये और मां का पूरा भाव से स्मरण करना चाहिये।
8-घर में सोना न हो तो चांदी की चीज पूजन में रखनी चाहिये।
9-व्रत पूरा होने पर कम से कम सात स्त्रियों को या आपकी इच्छा अनुसार जैसे 11, 21, 51, 101 स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की पुस्तक कुमकुम का तिलक करके भेंट के रूप में देनी चाहिए।
10-शुक्रवार को व्रत करके शाम को एक समय भोजन ले सकते हैं।

Thursday, March 21, 2019

 तव बदन पैठिहउँ आई।
सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥
कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना।
ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥3॥
भावार्थ: तब मैं आकर तुम्हारे मुँह में घुस जाऊँगा (तुम मुझे खा लेना)। हे माता! मैं सत्य कहता हूँ, अभी मुझे जाने दे। जब किसी भी उपाय से उसने जाने नहीं दिया, तब हनुमान् जी ने कहा- तो फिर मुझे खा न ले॥3॥

आज का राशिफल


पंचांग


Wednesday, March 20, 2019

होली है

खुशियों से हो ना कोई दूरी,
रहे ना कोई ख्वाहिश अधूरी,
 रंगो से भरे इस मौसम में,
 रंगीन हो आपकी दुनिया पूरी
सनातन परिवार के तरफ से आप सभी को होली के शुभकामनाये 

होली पर न करे ये.........

होली पर न करे ये..........
1- होली का काफी अधिक महत्व है। इस दिन किए गए पूजा-पाठ से सभी देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। अगर आप महालक्ष्मी की कृपा पाना चाहते हैं तो होली तक घर में शांति बनाए रखें।
2-किसी भी प्रकार का वाद-विवाद न करें। अन्यथा होली पर की गई पूजा से शुभ फल नहीं मिल पाएंगे।
3- इन दिनों में सुबह देर तक सोने से बचना चाहिए। सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। इस बात का ध्यान नहीं रखेंगे तो आलस्य बढ़ेगा और देवी-देवता की कृपा नहीं मिल पाएगी।
4-होलाष्टक के दिनों में शुभ काम जैसे विवाह, सगाई, नए घर में प्रवेश, मुंडन, गोद भराई आदि नहीं करना चाहिए।
मान्यता है कि इन दिनों में सभी नौ ग्रहों का स्वभाव उग्र रहता है और उनसे शुभ फल नहीं मिल पाते हैं। इसीवजह से होलाष्टक में ये सभी काम नहीं किए जाते हैं।
5-होली के दिन किसी का अपमान न करें: याद रहे होली रंगों का त्यौहार है इस दिन पर अपने दुश्मन से भी बैर न रखें और उसे भी गले लगाकर सम्मान दें। होली के दिन आपके घर कोई भी आता है उसका सम्मान करें किसी का अपमान न करें और न ही मुंह से गलत अपशब्द निकाले।
6-नॉनवेज न खाएं: वैसे तो लोगों को होली के दिन नॉनवेज खाने का ही शौक होता है जिसे वो अपनी शान मानते हैं लेकिन अगर हो सके तो नॉनवेज न खांए क्योंकि हिंदू धर्म में इसे बुरा मानते हैं और जानवरों को मारने से पाप लगता है।
7-कर्ज या पैसो का लेन-देन न करें: इस दिन लिया गया उधार बढ़ता रहता है लेकिन चुकाया गया कर्ज शुभता लेकर आता है। शास्त्रों में कर्ज लेना निषेध बताया गया है। इस दिन कर्ज लेने के बजाए पुराना कर्ज हो तो चुका देना चाहिए।

Tuesday, March 19, 2019

प्रह्लाद और होलिका की कथा

होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है। विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया। वह चाहता था कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड़ दे, परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यपु ने उसे बहुत सी प्राणांतक यातनाएँ दीं लेकिन वह हर बार बच निकला। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अतः उसने होलिका को आदेश दिया के वह प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए। परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया। होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उसके अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं।

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फाग खेलन बरसाने आए हैं नन्दलाल


होली का त्योहार राधा और कृष्ण की पावन प्रेम कहानी से भी जुडा हुआ है। वसंत के सुंदर मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है। मथुरा और वृन्दावन की होली राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबी हुई होती है। बरसाने और नंदगाँव की लठमार होली तो प्रसिद्ध है ही देश विदेश में श्रीकृष्ण के अन्य स्थलों पर भी होली की परंपरा है। यह भी माना गया है कि भक्ति में डूबे जिज्ञासुओं का रंग बाह्य रंगों से नहीं खेला जाता, रंग खेला जाता है भगवान्नाम का, रंग खेला जाता है सद्भावना बढ़ाने के लिए, रंग होता है प्रेम का, रंग होता है भाव का, भक्ति का, विश्वास का। होली उत्सव पर होली जलाई जाती है अंहकार की, अहम् की, वैर द्वेष की, ईर्ष्या मत्सर की, संशय की और पाया जाता है विशुद्ध प्रेम अपने आराध्य का, पाई जाती है कृपा अपने ठाकुर की।

Monday, March 18, 2019

आज का राशिफल


आज का पंचांग




क्या है  दान 

दान किसी वस्तु पर से अपना अधिकार समाप्त करके दूसरे का अधिकार स्थापित करना दान है। साथ ही यह आवश्यक है कि दान में दी हुई वस्तु के बदले में किसी प्रकार का विनिमय नहीं होना चाहिए। इस दान की पूर्ति तभी कही गई है जबकि दान में दी हुईं वस्तु के ऊपर पाने वाले का अधिकार स्थापित हो जाए। मान लिया जाए कि कोई वस्तु दान में दी गई किंतु उस वस्तु पर पानेवाले का अधिकार होने से पूर्व ही यदि वह वस्तु नष्ट हो गई तो वह दान नहीं कहा जा सकता। ऐसी परिस्थिति में यद्यपि दान देनेवाले को प्रत्यवाय नहीं लगता तथापि दाता को दान के फल की प्राप्ति भी नहीं हो सकती।

कान्हा जी ने कहा था

Sunday, March 17, 2019

सुंदरकांड अर्थ सहित

जात पवनसुत देवन्ह देखा।
जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता।
पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥1॥

भावार्थ: देवताओं ने पवनपुत्र हनुमान् जी को जाते हुए देखा। उनकी विशेष बल-बुद्धि को जानने के लिए (परीक्षार्थ) उन्होंने सुरसा नामक सर्पों की माता को भेजा, उसने आकर हनुमान् जी से यह बात कही-॥1॥

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आज का राशिफल


Saturday, March 16, 2019

कृष्ण ने कोयल बनकर शनिदेव को दिये थे दर्शन

शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से छुटकारा मिलता है। आज हम आपको शनिदेव के ऐसे मंदिर के बताने जा रहे हैं जो बहुत ही प्राचीन है। कोकिला शनि मंदिर के आसपास नंदगांव, बरसाना और श्री बांके बिहारी के मंदिर भी स्थित हैं। शनिदेव का यह मंदिर दिल्ली से 128 किमी की दूरी पर तथा मथुरा से 60 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर दुनिया के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक माना जाता है। 

कोकिलावन धाम का यह सुन्दर परिसर लगभग 20 एकड में फैला है। इसमें श्री शनि देव मंदिर, श्री देव बिहारी मंदिर, श्री गोकुलेश्वर महादेव मंदिर, श्री गिरिराजज मंदिर, श्री बाब बनखंडी मंदिर प्रमुख हैं। यहां पर दो प्राचीन सरोवर और गोऊशाला भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां आकर जो भी शनि महाराज के दर्शन करते हैं उन्हें शनि की दशा, साढ़ेसाती और ढैय्या कभी नहीं सताती। शनिश्चरी शनि अमावस्या को यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है। 



पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर के पीछे एक कथा बहुत प्रचलित है। कथा के अनुसार, जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ था तो सभी देवी-देवता उनके दर्शन के लिए नंदगांव पधारे। तब शनिदेव भी देवताओं के साथ वहां पहुंचे थे। लेकिन मां यशोदा ने उन्हें दर्शन करने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं शनिदेव की वक्र दृष्टि कान्हा पर ना पड़ जाए। 

तब दुखी शनि को सांत्‍वना देने के लिए कृष्‍ण ने संदेश दिया कि वे नंद गांव के निकट वन में उनकी तपस्‍या करें वे वहीं दर्शन देने प्रकट होंगे। तब शनि ने इस स्‍थान पर तप किया और श्रीकृष्‍ण ने कोयल रूप में उन्‍हें दर्शन दिए। इसी लिए इस स्‍थान का नाम कोकिला वन पड़ा। साथ ही कृष्‍ण ने शनिदेव को आर्शिवाद दिया कि वे वहीं विराजमान हों और इस स्‍थान पर जो उनके दर्शन करेगा उस पर शनि की दृष्‍टि वक्र नहीं होगी बल्‍की उनकी इच्‍छा पूर्ति होगी। कृष्‍ण ने स्‍वयं भी वहीं पास में राधा के साथ मौजूद रहने का वादा किया। तब से शनि धाम के बाईं ओर कृष्‍ण, राधा जी के साथ विराजमान हैं। 

गायत्री  मंत्र को हिन्दू धर्म मे बहुत ही पवित्र माना गया है कहते है प्रातः काल गायत्री  मन्त्र का जाप  करने  से मनुष्य  शारीरिक व् मानसिक दोनों ही रूपों से ही लाभदायक होता है
 पर उतना ही जुरूरी इसके भावार्थ को समझना है।



आइये जानते है इस भव्य गायत्री मन्त्र के अर्थ को ........

#omsanatan#

आज का पंचांग


Friday, March 15, 2019

इस मंदिर में पानी का दीपक जलाकर भक्त मांगते हैं मन्नत

हमारे भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जहां आज भी चमत्कार देखने को मिलते हैं और इन चमत्कारों की वजह से ही एक भक्त का विश्वास अपने भगवान पर और बढ़ जाता है। इन मंदिरों में कई ऐसे राज छुपे हुए हैं जिन्हें अभी तक वैज्ञानिक भी नहीं सुलक्षा पाए हैं और ऐसा ही एक अनसुलक्षा राज है कालीसिंध नदी के किनारे बना माता का मंदिर। इस मंदिर में घी या तेल का दीपक नहीं बल्कि पानी का दीपक जलाया जाता है। इस मंदिर की यही अनोखी विशेषता है जिससे भक्तों के बीच उत्सुकता बनी हुई है। इस मंदिर में मन्नत का दीपक जलाने के लिए घी-तेल की जरुरत नहीं होती, बल्कि पानी का ही दीया जलाकर लोग अपनी मन्नत मांगते हैं। इस मंदिर में ऐसा पिछले 5 सालों से चलता आ रहा है। 



गड़ियाघाट वाली माँ के नाम से जाना जाने वाला यह मंदिर मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में कालीसिंध नदी के तट पर बना हुआ है। मंदिर में दीपक जलाने के लिए मन्दिर के पास उपस्थित कालीसिंध नदी से पानी लाया जाता है। ये दीपक बरसात के मौसम में नहीं जलता क्योंकि बरसात के कारण कालीसिंध नदी का जल का स्तर बढ़ जाता है जिससे मंदिर पानी में डूब जाता है जो दीपक को बुझा देता है। बरसात खत्म होने के बाद इस दीपक को दोबारा शारदीय नवरात्र के पहले दिन जलाते हैं जो फिर दोबारा बारिश होने तक जलता है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि पहले इस मंदिर में तेल का दीपक जलता था। लेकिन लगभग पांच साल पहले माता ने सपने में मुझे दर्शन दिए और कहा कि तुम अब पानी का दीपक जलाओ। माता का आदेश मानकर मैंने पानी का दीपक जलाया जो जलने लगा। तभी से मां के चमत्कार से यह दीपक जल रहा है।


जानिए संतोषी माता की व्रत कथा

शुक्रवार के व्रत का विशेष महत्‍व इसलिए है क्‍योंकि इस दिन देवी की पूजा की जाती है। संतोषी माता का व्रत करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। देवी संतोषी का व्रत रखने से महिलाओं व पुरुषों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। संतोषी माता के व्रत से जुड़ी हुई एक कथा भी प्रचलित है। एक गांव में एक बुढ़ी मां थी, उनका एक पुत्र था। बुढ़ी मां के पुत्र के विवाह के बाद वह बहु से ही वो बहु से घर का सारा काम करवाती थी, लेकिन अपनी बहु का खाने के लिए कुछ नहीं देती थी। बुढ़िया का पुत्र यह सब देखता था लेकिन कुछ बोल नहीं पाता था। एक दिन लड़के ने अपनी मां से बोला कि मां मैं परदेस जा रहा हूं। बेटे की परदेस जाने की बात मां बहुत खुश हो गई और उसे वहां जाने की आज्ञा दे दी। 

इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास गया और बोला कि मैं परदेस जा रहा हूं, तुम अपनी कोई निशानी मुझे दे दो। इस पर उसकी पत्नी ने बोला कि मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है। यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगती है, इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन जाती है। जब बुढ़िया का पुत्र वहां से चला गया तो बुढ़िया ने अपनी बहु पर और अत्याचार करना चालू कर दिया। बुढ़िया के अत्याचारों से दुखी होकर उसकी बहु एक दिन मंदिर चली गई। मंदिर में उसने देखा कि बहुत सारी स्त्रियां पूजा कर रही थी। उसने उन स्त्रियों से पूजा के बारे में पूछा तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही है, माता का व्रत करने से सभी कष्टों का नाश होता है। 



उन्होंने बताया कि शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल लेना, गुड़-चने का प्रसाद लेकर तथा सच्चे मन से मां का पूजन करना चाहिए। खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देना, एक वक्त भोजन करना। व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी। माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया और उसमें कुछ पैसे भी आए। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जाकर अन्य स्त्रियों से बोली कि संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है। उसकी यह बात सुनकर सारी स्त्रियां भी पूर्ण श्रद्धा से संतोषी माता का व्रत करने लगी। 

जब बुढ़िया की बहु मंदिर में थी तो उसने संतोषी माता से कहा कि हे मां! जब मेरे पति यहां वापस आ जाएंगे, तभी मैं व्रत का उद्यापन करूंगी। एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं और रुपया भी नहीं आया है। इसके बाद जब वह सुबह उठा तो उसने सपने की सारी बात अपने सेठ को बताई और घर जाने की इजाजत मांगी, लेकिन उसके सेठ ने मना कर दिया। सेठ के मना करने के बाद उसने संतोषी माता से विनती कि और मां की कृपा से सेठ की दुकान में कई व्यापारी आए, सोना-चांदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए और कर्जदार भी रुपया लौटा गए। 

जब सेठ का सारा सामान बिक गया तो उसने उसे घर जाने की इजाजत दे दी। घर आकर उसने अपनी मां और पत्नी को बहुत सारे पैसे दिये। फिर उसकी पत्नी ने सारी बात बताई और कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। उसने सभी उद्यापन की सारी तैयारी की और सभी को न्यौता भी दिया। लेकिन उसके पड़ोस में एक स्त्री थी जो उसके सुख बहुत जलती थी, उसने अपने बच्चों को सिखाया कि अगर तुम उद्यापन में वहां जाओंगे तो तुम भोजन में खटाई जरूर मांगना। 

बच्चों ने ऐसा ही किया और भोजन करते समय उन्होंने खटाई मांगी। तो बुढ़िया की बहु ने उन्हें पैसे देकर बहलाने के लिए पैसे दे दिये और बच्चों ने बाहर से पैसों की खटाई खरीदकर खा ली। तो संतोषी माता ने बहु पर अपना कोप किया और राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले गए। किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों से खरीदकर खटाई खाई है। तो बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया और संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका टैक्स राजा ने मांगा था। अगले शुक्रवार को उसने फिर से विधिवत व्रत का उद्यापन किया, इससे संतोषी मां बहुत प्रसन्न हुईं और उन दोनों की सारी मनोकामना पूर्ण की।




जब संत कबीर दास जी ने ली थी राजा बीर सिंह की परीक्षा

संत कबीर दास जी को कौन नहीं जानता, उनकी ख्याति विश्वभर में फैली हुई है। कबीर दास जी हिंदी साहित्य के सबसे प्रसिद्ध व्यक्तित्व है, उनकी रचनाओं पर भक्ति आंदोलन का विशेष प्रभाव पड़ा था। आज हम उन्हीं के जीवन से जुड़ा हुआ ऐसा प्रेरक प्रसंग बताएंगे, जो हमारे जीवन के लिए किसी प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं है। बात उस समय की है जब बनारस शहर में संत कबीर दास जी की प्रसिद्धी दूर-दूर तक फैली हुई थी। शहर के राजा बीर सिंह भी कबीर के विचारों के बड़े पैरोकारों में से एक थे। 

जब भी कभी कबीर जी राजा बीर सिंह के दरबार में आते थे तो आदर स्वरूप राजा उन्हें अपने स्थान पर सिंहासन पर बैठाते और स्वयं उनके चरणों में बैठ जाते। अचानक एक दिन कबीर दास जी के मन में ख्याल आया कि क्यों ना राजा की परीक्षा ली जाए कि राजा उनके बारे में क्या सोचता है उसके मन में उनके लिए कितना आदर है? उसके अगले ही दिन वे हाथों में दो रंगीन पानी की बोतले (शराब की बोतले लग रही थी) लेकर अपने दो अनुयायों (एक तो मोची था और दूसरी एक महिला थी, जो कि शुरुआत में एक वैश्या थी) के साथ राम नाम जपते हुए राज्य की ओर निकल पड़े। 



कबीर जी के इस कार्य से उनके विरोधियों को उनके ऊपर ऊंगली उठाने का अवसर मिल गया और पूरे बनारस में उनका विरोध होने लगा, यह बात धीरे-धीरे राजा तक पहुंच गई। कुछ समय बाद कबीर दास राजा के पास पहुंचे, तो इस बार वह अपनी गद्दी से नहीं उठा क्योंकि उनके इस बर्ताव से राजा बहुत दुखी था। यह सब कुछ देखकर कबीर दास जी को यकीन हो गया कि राजा बीर सिंह भी आम लोगों की तरह ही हैं। उन्होंने तुरंत ही पानी से भरी रंगीन बोतलों को नीचे फेंक दिया, यह सब देखकर राजा सोचने लगे कि कोई भी शराबी इस तरीके से अपनी शराब की बोतले नहीं तोड़ सकता, जरूर इन बोतलों में कुछ और ही था? 

राजा ने कबीर दास जी से पूछा कि यह सब क्या है? तब मोची ने बोला कि महाराज, क्या आपको पता नहीं? जगन्नाथ मंदिर में आग लगी हुई है और संत कबीर दास जी इन बोतलों में भरे पानी से वो आग बुझा रहे हैं। आग की घटना की बात सुनकर राजा को वो समय याद आ गया और कुछ दिन बाद इस घटना की सच्चाई जानने के लिए एक दूत को जगन्नाथ मंदिर भेजा। मंदिर के आस-पास पूछताछ के बाद इस घटना की पुष्टि हो गई कि उसी दिन मंदिर में आग लगी थी, जिसे बुझा दिया गया था। जब बीर सिंह को इस घटना की सच्चाई के बारे में पता चला तो उन्हें कबीर के साथ किए हुए अपने व्यवहार पर गलती महसूस हुई और कबीर दास जी पर उनका विश्वास और दृढ़ हो गया। 

Thursday, March 14, 2019

शुक्रवार को करें संतोषी माता का व्रत, पूर्ण होगी हर मनोकामना

सप्‍ताह के प्रत्‍येक दिन किसी ना किसी विशिष्‍ट देवी-देवता की पूजा होती है, ऐसे ही शुक्रवार का दिन भी विशेष देवी को समर्पित है। शुक्रवार के दिन संतोषी माता को पूजा जाता है। यह व्रत हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध और लोकप्रिय व्रतों में से एक है जिसे अधिकतर महिलाएं रखती है। शुक्रवार के व्रत का विशेष महत्‍व इसलिए है क्‍योंकि इस दिन देवी की पूजा की जाती है। मां वैभव लक्ष्‍मी जहां व्‍यक्ति का घर धन धान्‍य से पूर्ण रखती हैं तो वहीं मां संतोषी अपने भक्‍तों के दुखों को हर लेती हैं। देवी संतोषी का व्रत रखने से महिलाओं व पुरुषों दोनों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। 



जो व्रती पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ व्रत का पालन करता है उसे सुख-सौभाग्य, वैभव, घर की शांति, व्यापार में वृद्धि, धन की वृद्धि, परीक्षा में सफलता, आदालत में जीत, लाभ और पारिवारिक ख़ुशी की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से अविवाहित कन्यायों को अच्छे वर की प्राप्ति भी होती है। जो भी इस दिन व्रत का पालन करता है उसे कुछ बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए। व्रती को किसी भी खट्ट खाद्य पदार्थ को खाना या छूना नहीं चाहिए। भोजन में किसी भी तरह की खट्टी चीज जैसे खट्टे फल, अचार या खट्टी सब्जी नहीं खानी चाहिए। साथ ही व्रत रखने वाले व्यक्ति के परिवारजनों को भी इस दिन खट्टे से परहेज रखना चाहिए। प्रसाद के रूप में केवल गुड़ और चने का ही सेवन करना चाहिए।

सुंदरकांड अर्थ सहित

जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥



भावार्थ : समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो (अर्थात्‌ अपने ऊपर इन्हें विश्राम दे)।