Saturday, March 9, 2019

छोटे-छोटे संकल्पों से जीता बड़ा युद्ध

अगर जीवन में बड़ी जीत हासिल करनी है तो आप उसे छोटे-छोटे संकल्पों से ही पूरा कर सकते हो। जैसे-जैसे हमारे छोटे-छोटे संकल्प पूरे होने लगते हैं तो बड़े संकल्पों को पूरा करने का आत्मविश्वास भी जागृत होता है। कुछ ऐसा ही हुआ शिवाजी के साथ, पहले उन्होंने अपने छोटे-छोटे युद्ध पर जीत हासिल की और फिर एक बड़ी जीत हासिल की। दरअसल, यह बात उन दिनों की है जब छत्रपति शिवाजी मुगलों के विरुद्ध छापा मार युद्ध लड़ रहे थे। पूरे दिन छापा मारते-मारते वह बहुत थक गए थे, थक-हार कर वह एक वनवासी बुढ़िया की झोपड़ी में पहुंच गए। 



उन्होंने उस बुढ़िया से कुछ खाने के लिए मांगा। लेकिन बुढ़िया के घर में सिर्फ चावल ही थे, तो उसने प्रेम से भात पकाया और वही शिवाजी को परोस दिया। शिवाजी को बहुत भूख लग रही थी, तो वो भात को झट से खाने बैठ गए। लेकिन जल्दबाजी में उंगलियां जला बैठे। हाथ की जलन शांत करने के लिए फूंकने लगे। यह देख बुढ़िया ने उनके चेहरे की ओर गौर से देखा और बोली- सिपाही तेरी सूरत शिवाजी जैसी लगती है और साथ ही यह भी लगता है कि तू उसी की तरह मूर्ख है। बुढ़िया की यह बात सुनकर शिवाजी हैरान हो गए और उससे पूछा कि भला शिवाजी की मूर्खता तो बताओ आप और मेरी भी। 

बुढ़िया ने उत्तर दिया कि तूने किनारे-किनारे से थोड़ा-थोड़ा ठंडा भात खाने की अपेक्षा बीच के सारे भात में हाथ डाला और उंगलियां जला लीं। यही मूर्खता शिवाजी करता है। वह दूर किनारों पर बसे छोटे-छोटे किलों को आसानी से जीतते हुए शक्ति बढ़ाने की अपेक्षा बड़े किलों पर धावा बोलता है और हार जाता है। बुढ़िया की यह बात सुनकर शिवाजी को अपनी रणनीति की विफलता का कारण पता चल जाता है। आखिर किस वजह से वह अपनी रणनीति में हार जाते हैं। इसके बाद विजय प्राप्त करने के लिए शिवाजी ने बुढ़िया की सीख मानी और सबसे पहले छोटे लक्ष्य बनाए और उन्हें पूरा करने की रणनीति अपनाई। फिर, शिवाजी की शक्ति बढ़ती चली गई और अंत में उन्होंने बड़ी जीत हासिल की। 

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