Tuesday, March 12, 2019

जानिए पैर छूने के धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व

हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति बहुत ही प्राचीन हैं। हमारे संस्कार ही हमारी पहचान है, हमेशा बड़ो का आदर करना उनके चरण स्पर्श कर उनका अभिनंदन करना यही हमारी सभ्यता और संस्कृति है। यह परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है, आज भी अपने से बड़े के चरण स्पर्श करना और उससे आशीर्वाद लेने की परम्परा लगभग देश के हर कोने में मिलती है। हिंदू धर्म में चरण स्पर्श यानी पैर छूने को आस्था और संस्कार की श्रेणी में गिना जाता है। सनातन धर्म में अपने से बड़े के आदर के लिए चरण स्पर्श उत्तम माना गया है। चरण छूने का मतलब है पूरी श्रद्धा के साथ किसी के आगे नतमस्तक होना। 

इससे विनम्रता आती है और मन को शांति मिलती है। साथ ही चरण छूने वाला दूसरों को भी अपने आचरण से प्रभावित करने में कामयाब होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि हर रोज बड़ों के अभि‍वादन से आयु, विद्या, यश और बल में बढ़ोतरी होती है। जब हम किसी आदरणीय व्यक्ति के चरण छूते हैं, तो आशीर्वाद के तौर पर उनका हाथ हमारे सिर के उपरी भाग को और हमारा हाथ उनके चरण को स्पर्श करता है। ऐसी मान्यता है कि इससे उस पूजनीय व्यक्ति की पॉजिटिव एनर्जी आशीर्वाद के रूप में हमारे शरीर में प्रवेश करती है। इससे हमारा आध्यात्मिक तथा मानसिक विकास होता है। 



हमारा शरीर जो बहुत सी तंत्रिकाओं से मिलके बना है। जो तंत्रिका हमारे मस्तिष्क से शुरू होती है वो हमारे हाथों और पैरों के टिप पे आके खत्म होती है तो पैर छूने की प्रक्रिया में जब हम अपने फिंगर टिप से उलटे तरफ के पैर छूते हैं यानि बाईं हाथ से दायां पैर और दाएं हाथ से बायां पैर तो इस तरह शरीर का सर्किट पूरा हो जाता है यानि विद्युत चुम्बकीय उर्जा का चक्र बन जाता है और उनकी उर्जा हमारे अन्दर प्रवाहित होने लगती है यानि दो शरीरों की ऊर्जा आपस में जुड़ जाती हैं और पैर छूने वाला संग्राहक यानि ऊर्जा लेने वाला और पैर छुआने वाला ऊर्जा का दाता बन जाता है।

न्यूटन के नियम के अनुसार इस संसार में सभी वस्तुएं 'गुरूत्वाकर्षण' के नियम से बंधी हैं और गुरूत्व भार सदैव आकर्षित करने वाले की तरफ जाता है, हमारे शरीर में भी यही नियम है। सिर को उत्तरी ध्रुव और पैरों को दक्षिणी ध्रुव माना गया है। इसका मतलब यह हुआ कि गुरुत्व ऊर्जा या चुंबकीय ऊर्जा हमेशा उत्तरी ध्रुव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र पूरा करती है। यानी शरीर में उत्तरी ध्रुव (सिर) से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव (पैरों) की ओर प्रवाहित होती है। दक्षिणी ध्रुव पर यह ऊर्जा असीमित मात्रा में स्थिर हो जाती है। पैरों की ओर ऊर्जा का केंद्र बन जाता है। पैरों से हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने को ही हम 'चरण स्पर्श' कहते हैं।

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