Saturday, March 16, 2019

कृष्ण ने कोयल बनकर शनिदेव को दिये थे दर्शन

शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से छुटकारा मिलता है। आज हम आपको शनिदेव के ऐसे मंदिर के बताने जा रहे हैं जो बहुत ही प्राचीन है। कोकिला शनि मंदिर के आसपास नंदगांव, बरसाना और श्री बांके बिहारी के मंदिर भी स्थित हैं। शनिदेव का यह मंदिर दिल्ली से 128 किमी की दूरी पर तथा मथुरा से 60 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर दुनिया के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक माना जाता है। 

कोकिलावन धाम का यह सुन्दर परिसर लगभग 20 एकड में फैला है। इसमें श्री शनि देव मंदिर, श्री देव बिहारी मंदिर, श्री गोकुलेश्वर महादेव मंदिर, श्री गिरिराजज मंदिर, श्री बाब बनखंडी मंदिर प्रमुख हैं। यहां पर दो प्राचीन सरोवर और गोऊशाला भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां आकर जो भी शनि महाराज के दर्शन करते हैं उन्हें शनि की दशा, साढ़ेसाती और ढैय्या कभी नहीं सताती। शनिश्चरी शनि अमावस्या को यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है। 



पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर के पीछे एक कथा बहुत प्रचलित है। कथा के अनुसार, जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ था तो सभी देवी-देवता उनके दर्शन के लिए नंदगांव पधारे। तब शनिदेव भी देवताओं के साथ वहां पहुंचे थे। लेकिन मां यशोदा ने उन्हें दर्शन करने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं शनिदेव की वक्र दृष्टि कान्हा पर ना पड़ जाए। 

तब दुखी शनि को सांत्‍वना देने के लिए कृष्‍ण ने संदेश दिया कि वे नंद गांव के निकट वन में उनकी तपस्‍या करें वे वहीं दर्शन देने प्रकट होंगे। तब शनि ने इस स्‍थान पर तप किया और श्रीकृष्‍ण ने कोयल रूप में उन्‍हें दर्शन दिए। इसी लिए इस स्‍थान का नाम कोकिला वन पड़ा। साथ ही कृष्‍ण ने शनिदेव को आर्शिवाद दिया कि वे वहीं विराजमान हों और इस स्‍थान पर जो उनके दर्शन करेगा उस पर शनि की दृष्‍टि वक्र नहीं होगी बल्‍की उनकी इच्‍छा पूर्ति होगी। कृष्‍ण ने स्‍वयं भी वहीं पास में राधा के साथ मौजूद रहने का वादा किया। तब से शनि धाम के बाईं ओर कृष्‍ण, राधा जी के साथ विराजमान हैं। 

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