Friday, March 15, 2019

जानिए संतोषी माता की व्रत कथा

शुक्रवार के व्रत का विशेष महत्‍व इसलिए है क्‍योंकि इस दिन देवी की पूजा की जाती है। संतोषी माता का व्रत करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। देवी संतोषी का व्रत रखने से महिलाओं व पुरुषों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। संतोषी माता के व्रत से जुड़ी हुई एक कथा भी प्रचलित है। एक गांव में एक बुढ़ी मां थी, उनका एक पुत्र था। बुढ़ी मां के पुत्र के विवाह के बाद वह बहु से ही वो बहु से घर का सारा काम करवाती थी, लेकिन अपनी बहु का खाने के लिए कुछ नहीं देती थी। बुढ़िया का पुत्र यह सब देखता था लेकिन कुछ बोल नहीं पाता था। एक दिन लड़के ने अपनी मां से बोला कि मां मैं परदेस जा रहा हूं। बेटे की परदेस जाने की बात मां बहुत खुश हो गई और उसे वहां जाने की आज्ञा दे दी। 

इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास गया और बोला कि मैं परदेस जा रहा हूं, तुम अपनी कोई निशानी मुझे दे दो। इस पर उसकी पत्नी ने बोला कि मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है। यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगती है, इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन जाती है। जब बुढ़िया का पुत्र वहां से चला गया तो बुढ़िया ने अपनी बहु पर और अत्याचार करना चालू कर दिया। बुढ़िया के अत्याचारों से दुखी होकर उसकी बहु एक दिन मंदिर चली गई। मंदिर में उसने देखा कि बहुत सारी स्त्रियां पूजा कर रही थी। उसने उन स्त्रियों से पूजा के बारे में पूछा तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही है, माता का व्रत करने से सभी कष्टों का नाश होता है। 



उन्होंने बताया कि शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल लेना, गुड़-चने का प्रसाद लेकर तथा सच्चे मन से मां का पूजन करना चाहिए। खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देना, एक वक्त भोजन करना। व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी। माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया और उसमें कुछ पैसे भी आए। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जाकर अन्य स्त्रियों से बोली कि संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है। उसकी यह बात सुनकर सारी स्त्रियां भी पूर्ण श्रद्धा से संतोषी माता का व्रत करने लगी। 

जब बुढ़िया की बहु मंदिर में थी तो उसने संतोषी माता से कहा कि हे मां! जब मेरे पति यहां वापस आ जाएंगे, तभी मैं व्रत का उद्यापन करूंगी। एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं और रुपया भी नहीं आया है। इसके बाद जब वह सुबह उठा तो उसने सपने की सारी बात अपने सेठ को बताई और घर जाने की इजाजत मांगी, लेकिन उसके सेठ ने मना कर दिया। सेठ के मना करने के बाद उसने संतोषी माता से विनती कि और मां की कृपा से सेठ की दुकान में कई व्यापारी आए, सोना-चांदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए और कर्जदार भी रुपया लौटा गए। 

जब सेठ का सारा सामान बिक गया तो उसने उसे घर जाने की इजाजत दे दी। घर आकर उसने अपनी मां और पत्नी को बहुत सारे पैसे दिये। फिर उसकी पत्नी ने सारी बात बताई और कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। उसने सभी उद्यापन की सारी तैयारी की और सभी को न्यौता भी दिया। लेकिन उसके पड़ोस में एक स्त्री थी जो उसके सुख बहुत जलती थी, उसने अपने बच्चों को सिखाया कि अगर तुम उद्यापन में वहां जाओंगे तो तुम भोजन में खटाई जरूर मांगना। 

बच्चों ने ऐसा ही किया और भोजन करते समय उन्होंने खटाई मांगी। तो बुढ़िया की बहु ने उन्हें पैसे देकर बहलाने के लिए पैसे दे दिये और बच्चों ने बाहर से पैसों की खटाई खरीदकर खा ली। तो संतोषी माता ने बहु पर अपना कोप किया और राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले गए। किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों से खरीदकर खटाई खाई है। तो बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया और संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका टैक्स राजा ने मांगा था। अगले शुक्रवार को उसने फिर से विधिवत व्रत का उद्यापन किया, इससे संतोषी मां बहुत प्रसन्न हुईं और उन दोनों की सारी मनोकामना पूर्ण की।




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