Thursday, March 7, 2019

क्यों पहनते हैं जनेऊ और क्या है इसका वैज्ञानिक महत्व?

हमारे सनातन हिन्दू धर्म में कई संस्कार होते हैं जिनमें से एक यज्ञोपवीत संस्कार भी है। यज्ञोपवीत संस्कार को 'जनेऊ संस्कार' या फिर 'उपनयन संस्कार' भी कहते हैं। उपनयन' का अर्थ है, 'पास या सन्निकट ले जाना।' यानी ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना। जनेऊ धारण करने की परम्परा बहुत ही प्राचीन है। वेदों में जनेऊ धारण करने की हिदायत दी गई है। यह तीन धागों वाला सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात् इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे। 



जनेऊ में तीन सूत्र – त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक – देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक – सत्व, रज और तम के प्रतीक होते है। साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक है तो तीन आश्रमों के प्रतीक भी। इस संस्कार में मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी अहम होते हैं। यज्ञोपवीत धारण करने वाले व्यक्ति को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। एक बार जनेऊ धारण करने के बाद मनुष्य इसे उतार नहीं सकता। यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। जनेऊ धारण करने के कई वैज्ञानिक आधार भी है। 

आयुर्वेद के अनुसार, यज्ञोपवीत धारण करने से इंसान की उम्र लंबी, बुद्धि तेज, और मन स्थिर होता है। जनेऊ धारण करने से व्यक्ति बलवान, यशस्वी, वीर और पराक्रमी होता है। जनेऊ धारण करने से न तो हृदयरोग होता है और न ही गले और मुख का रोग सताता है। मान्यता है कि सन से तैयार यज्ञोपवीत पित्त रोगों से बचाव करने में सक्षम है। जो व्यक्ति स्वर्ण के तारों से तैयार यज्ञोपवीत धारण करते हैं, उन्हें आंखों की बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। इससे बुद्धि और स्मरण शक्ति बढ जाती है और बुढापा भी देर से आता है। रेशम का जनेऊ पहनने से वाणी पर नियंत्रण रहता है। मान्यता है कि चांदी के तार से तैयार यज्ञोपवीत धारण करने से शरीर पुष्ट होता है। आयु में भी वृद्धि होती है। ध्यान रखें कि जनेऊ शरीर पर बायें कंधे से हृदय को छूता हुआ कमर तक होना चाहिए।

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