Tuesday, March 12, 2019

जानिए गणेश जी ने कैसे चूर किया था असुर गजमुख का घमंड

हमारे हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य देव के रूप में पूजा जाता है। भगवान गणेश अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनके सारे दुखों को हरते हैं और उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। बुधवार को भगवान श्रीगणेश की पूजा का विधान है। श्रीगणेश की पूजा करने से हर समस्या का निवारण होता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। हमारे शास्त्रों में श्रीगणेश जी से जुड़ी हुई कई रोचक कहानियां प्रचलित हैं। हम सभी को पता है कि गणेश जी का वाहन एक मुषक था, लेकिन क्या आपको पता है कि कैसे वह मूषक गणेश जी का वाहन बना। 

दरअसल, बात उस समय की जब पृथ्वी पर एक बहुत ही भयंकर असुरों का राजा था गजमुख। वह असुर खुद को बहुत ही शक्तिशाली और सभी देवी-देवताओं को अपने वश में करना चाहता था, इसलिए भगवान् शिव से वरदान प्राप्त करने के लिए तपस्या करता था। शिव जी से वरदान पाने के लिए वह अपना राज्य छोड़ कर जंगल में चला गया और बिना खाए पीएं रातदिन शिव जी की तपस्या करने लगा। कुछ साल बीतने के बाद शिव जी उसकी तपस्या से खुश हुए और उसके सामने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। गजमुख ने शिव से कहा कि वह दुनिया में सबसे ताकतवर बनना चाहता है, कोई भी शस्त्र उसे ना मार सके। 



शिवजी ने उसकी तपस्या से खुश होकर उसे दैविक शक्तियाँ प्रदान कि जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। असुर गजमुख को अपनी शक्तियों पर घमंड होने लगा और उनका गलत इस्तेमाल करने लगा। गजमुख चारों तरफ लोगों को परेशान करने लगा, देवी-देवताओं पर आक्रमण करने लगा। गजमुख चाहता था की हर कोई देवता उसकी पूजा करे। गजमुख के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवता त्रिदेवों के शरण में पहुंचे और अपने जीवन की रक्षा के लिए गुहार करने लगे। यह सब देख कर शिवजी ने गणेश को असुर गजमुख को देवताओं पर अत्याचार करने से रोकने के लिए भेजा।

गणेश जी ने गजमुख को समझाया लेकिन वह नहीं समझा और गणेश जी युद्ध करने लगा। युद्ध में गणेश जी ने गजमुख को घायल कर दिया, लेकिन वह फिर भी नहीं माना और उसने खुद को एक मूषक के रूप में बदल लिया और गणेश जी पर आक्रमण कर दिया। जैसे ही वह गणेश जी के पास पहुंचा, वह कूद कर उसके ऊपर बैठ गए और असुर गजमुख को जीवन भर के लिए मूषक में बदल दिया। मूषक रूप में बदलने के बाद गणेश जी ने गजमुख को अपने वाहन के रूप में जीवन भर के लिए रख लिया। श्रीगणेश जी की कृपा पाकर असुर गजमुख बहुत खुश हुआ और मूषक के रूप में ही गणेश जी के साथ रहने लगा तथा उनका मित्र भी बन गया।

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