Friday, March 15, 2019

जब संत कबीर दास जी ने ली थी राजा बीर सिंह की परीक्षा

संत कबीर दास जी को कौन नहीं जानता, उनकी ख्याति विश्वभर में फैली हुई है। कबीर दास जी हिंदी साहित्य के सबसे प्रसिद्ध व्यक्तित्व है, उनकी रचनाओं पर भक्ति आंदोलन का विशेष प्रभाव पड़ा था। आज हम उन्हीं के जीवन से जुड़ा हुआ ऐसा प्रेरक प्रसंग बताएंगे, जो हमारे जीवन के लिए किसी प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं है। बात उस समय की है जब बनारस शहर में संत कबीर दास जी की प्रसिद्धी दूर-दूर तक फैली हुई थी। शहर के राजा बीर सिंह भी कबीर के विचारों के बड़े पैरोकारों में से एक थे। 

जब भी कभी कबीर जी राजा बीर सिंह के दरबार में आते थे तो आदर स्वरूप राजा उन्हें अपने स्थान पर सिंहासन पर बैठाते और स्वयं उनके चरणों में बैठ जाते। अचानक एक दिन कबीर दास जी के मन में ख्याल आया कि क्यों ना राजा की परीक्षा ली जाए कि राजा उनके बारे में क्या सोचता है उसके मन में उनके लिए कितना आदर है? उसके अगले ही दिन वे हाथों में दो रंगीन पानी की बोतले (शराब की बोतले लग रही थी) लेकर अपने दो अनुयायों (एक तो मोची था और दूसरी एक महिला थी, जो कि शुरुआत में एक वैश्या थी) के साथ राम नाम जपते हुए राज्य की ओर निकल पड़े। 



कबीर जी के इस कार्य से उनके विरोधियों को उनके ऊपर ऊंगली उठाने का अवसर मिल गया और पूरे बनारस में उनका विरोध होने लगा, यह बात धीरे-धीरे राजा तक पहुंच गई। कुछ समय बाद कबीर दास राजा के पास पहुंचे, तो इस बार वह अपनी गद्दी से नहीं उठा क्योंकि उनके इस बर्ताव से राजा बहुत दुखी था। यह सब कुछ देखकर कबीर दास जी को यकीन हो गया कि राजा बीर सिंह भी आम लोगों की तरह ही हैं। उन्होंने तुरंत ही पानी से भरी रंगीन बोतलों को नीचे फेंक दिया, यह सब देखकर राजा सोचने लगे कि कोई भी शराबी इस तरीके से अपनी शराब की बोतले नहीं तोड़ सकता, जरूर इन बोतलों में कुछ और ही था? 

राजा ने कबीर दास जी से पूछा कि यह सब क्या है? तब मोची ने बोला कि महाराज, क्या आपको पता नहीं? जगन्नाथ मंदिर में आग लगी हुई है और संत कबीर दास जी इन बोतलों में भरे पानी से वो आग बुझा रहे हैं। आग की घटना की बात सुनकर राजा को वो समय याद आ गया और कुछ दिन बाद इस घटना की सच्चाई जानने के लिए एक दूत को जगन्नाथ मंदिर भेजा। मंदिर के आस-पास पूछताछ के बाद इस घटना की पुष्टि हो गई कि उसी दिन मंदिर में आग लगी थी, जिसे बुझा दिया गया था। जब बीर सिंह को इस घटना की सच्चाई के बारे में पता चला तो उन्हें कबीर के साथ किए हुए अपने व्यवहार पर गलती महसूस हुई और कबीर दास जी पर उनका विश्वास और दृढ़ हो गया। 

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