Monday, March 25, 2019

रंग पंचमी की कथा

रंग पंचमी त्यौहार हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है देखा जाऐ तो यह त्यौहार रंगो के त्यौहार

होली का विस्तार है । उत्तर भारत मे होली की शुरुआत श्री पंचमी से होती है जो की चैत्र महा की रंग पंचमी तक चलती है इसलिए रंग पंचमी को

होली का अंतिम दिन भी कहा जाता है। त्रेता युग के प्रभारं मे श्री हरी विष्णु जी ने धूलि वंदन किया, इसका अर्थ है उस युग मे विष्णु जी ने अलग-

अलग तेजोमय रंगो से अवतार लिया था। त्रेता युग मे अवतार निर्मित होने पर उसे तेजोमय अर्थात विविध रंगो की सहायता से दर्शन रूप मे वर्णित

किया गया है। भगवान हरी ने जब इन अवतारों की रूप रेखा बनाई तो भगवती योगमाया ने भगवान विष्णु जी के चरणों पर गुलाल लगाया वही देव

आदि देव महादेव अपनी योग शक्ति से इस लीला को देख रहे थे, इस कल्याणकारी कार्य और लोक कल्याण की लिए भगवान आशुतोष साक्षात प्रकट

जाते है जहां भगवान विष्णु और देवी योगमाया थी। भगवान विष्णु और भोलेनाथ जब एक दूसरे को देखते है और प्रणाम करते है तभी योगमाया देवी

दोनों देवो की बीच रंग उड़ाती है और आकाश से सभी देवतागण पुष्प वर्षा करते हुए जयघोष करते है। आज के दिन उड़ीसा के जगन्नाथ पूरी मे

भगवान का विशेष रंग श्रृंगार किया जाता है जो की भगवान श्री हरी का अवतार श्री कृष्ण है। वही दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के अंदर

शंकर जी के बारह (12) ज्योतिर्लिंगों मे से एक ज्योतिर्लिंग महाकाल का रंग श्रृंगार होता है व फूलो का विशेष डोला सजाया जाता है और लोग इस यात्रा

के दौरान रंग गुलाल उड़ाते है व ऐसी मान्यता है की उज्जैन नगरी मे आज के दिन भगवान शंकर होली खेलने साक्षात महाकाल स्वरूप मे उज्जैन

नगरी आते है। यह उत्सव बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है और इसी के साथ होली महापर्व का समापन हो जाता है। रंग पंचमी आप सभी के

जीवन मे रंगो की बहार को बनाये रखे। आपका जीवन रंगो सा चमकता रहे, यही. रंग पंचमी का उदेश्य है। इसी के साथ आप सभी को रंग पंचमी की

हार्दिक शुभकामनाएं।

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