Monday, March 25, 2019

राधारानी का मुरली के प्रति सौतन व्यवहार

मुरली भगवान  कृष्ण के ह्रदय रुपी वक्षस्थल मे वास करती है मुरली की मधुर स्वरों मे गोपियों की ह्रदय मे  प्रेम की  अथा तरंगो को सर्जन करके

उनमे प्रेम और उल्ल्लास भर दिया। वे उस मुरली की माध्यम से श्री कृष्ण की ध्यान मे खो जाती है । भगवान श्री कृष्ण की मुरली शब्द ब्रह्ममा बका

प्रतीक है तथा मुरली से निकलनी वाली ध्वनि तरंगे भगवती  सरस्वती की  प्रतीक है क्यों की संपूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वरों की व ज्ञान की देवी है ..एक

समय की  बात है ।आज से कई हज़ारो  वर्ष पूर्व ब्रह्मा जी द्वारा सरस्वती जी पृथ्वी लोक पर बंशाजड़ होने का श्राप  मिला ।बंशाजड़  अर्थात बॉस  की

जड़. श्राप मिलते ही सरस्वती जी ने बगवान नारायण की स्तुति प्रारम्भ कर दी । एक हज़ार वर्ष तक प्रभु प्राप्ति की लिए सरस्वती जी ने तप किया।

तप के फलस्वरूप भगवान विष्णु जी ने प्रसन्न होकर सरस्वती जी को दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा - सरस्वती जी ने कहा के जिस प्रकार

बैकुंठ लोक मे देवी लक्ष्मी आपकी चरण वंदन करती है उसी प्रकार मै भी आपका एक अंग बनना चाहती हूँ. भगवान विष्णु मुस्कुराये और देवी लक्ष्मी

से भी बढ़ क्र देवी सरस्वती को वरदान दिया कि कृष्ण अवतार मे अपनी सहचरी बनाने का वरदान सरस्वती जी को दिया तब उन्होंने ब्रह्मा कि कि  श्राप को याद करके प्रभु से कहा मुझे तो जड़ बॉस के रूप मे जन्म लेने का श्राप मिला है यह सुनकर प्रभु ने कहा निसंदेह तुम्हे चाहे जड़ रूप मे जन्म

मिले , फिर भी मे तुम्हे अपनाऊंगा तुम मे ऐसी प्राण शक्ति भर दूंगा कि तुम एक विलक्षण चेतना का अनुभव करोगी और अपनी जड़ो को चैतन्य

बनाये रख सकोगी


तथाअस्तु कहकर प्रभु अंतर्ध्यान हो जाते है और सरस्वती जी का ब्रह्मम श्राप के  प्रभाव से बांस कि वृक्ष जन्म हुआ और भगवान विष्णु कि वरदान से

द्वापर युग मे श्री कृष्ण अवतार मे उस बांस का यानी सरस्वती जी का मुरली के रूप मे जन्म हुआ और विश्व वन्दनीये प्रभु कि प्रिये मुरली बन

गयी....मुरली सब जड़ चेतन के मन को चुरा लेती है और भगवान श्री कृष्ण इसे सदा होटो पर सजाये रखते और  कमली मे लगाए  रखते है... कृष्ण

भगवान और मुरली का सम्बन्ध राधारानी से बढ़कर है मुरली मन को जड़चेतन करनेवाली और  ह्रदय को वसीभूत करने वाली ,और सभी को अपनी

और आकर्षित करने वाली एक पल भी सावरिये  से दूर न रहने वाली बासुरी ने बांस के होकर भी राधारानी से उच्च स्थान पाया है राधारानी का

मुरली से सौतन जैसा साथ है यही कारण है वो वरदान जो देवी लक्ष्मी से बढ़कर मुरली को मिला (भगवती लक्ष्मी राधारानी और सत्यभामा का

अवतार है ) वह इस प्रकार फलीभूत हुआ और मुरली को ठाकुर जी के पास प्रेम, मान और सम्मांन किशोरी राधारानी  के तरह प्राप्त हुआ

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