Monday, March 11, 2019

अद्भुत है महादेव का लिंगराज मंदिर

आज हम आपको भगवान शिव के ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जो अपने आप में बहुत खास और भारत के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। लिंगराज मंदिर ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और विष्णु का ही एक रूप है। यह मंदिर भुवनेश्वर के मुख्य मंदिरों में से एक है, जिसे ललाटेडुकेशरी ने 617-657 ईं. में बनवाया था। इसके बाद जगमोहन (प्रार्थना कक्ष), मुख्य मंदिर और मंदिर के टावर का निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया और भोग-मंडप का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया। फिर 1099 और 1104 ई. के बीच शालिनी की पत्नी ने नाटमंदिर का निर्माण करवाया। 

लिंगराज मंदिर 180 फीट ऊंचा है और कंलिगा स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर का प्रतिनिधित्व करता है। इस मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही 160 मी x 140 मी आकार का एक चतुर्भुजाकार कमरा है। इस मंदिर का आकार इसे अन्‍य मंदिरों से अलग रूप में प्रस्‍तुत करता है। मंदिर में स्‍थापित मूर्तियां चारकोलिथ पत्‍थर की बनी हुई हैं और ये आज भी वैसी ही चमक रही है जैसे पहले थी। मंदिर की खास बात यह है कि लिंगराज मंदिर में कोई भी गैर हिंदू प्रवेश नहीं कर सकता। अगर किसी इस मंदिर के दर्शन करने हैं तो उसके लिए मंदिर के बाहर एक बड़ा सा चबूतरा बनाया गया है, जहां से गैर हिंदू मंदिर को देख सकते हैं। मंदिर में हर साल करोड़ो लोग दर्शन के लिए आते हैं। 



यहाँ की पूजा पद्धति के अनुसार, सर्वप्रथम बिन्दुसरोवर में स्नान किया जाता है, फिर क्षेत्रपति अनंत वासुदेव के दर्शन किए जाते हैं, जिनका निर्माणकाल नवीं से दसवीं सदी का रहा है। गणेश पूजा के बाद गोपालनीदेवी, फिर शिवजी के वाहन नंदी की पूजा के बाद लिंगराज के दर्शन के लिए मुख्य स्थान में प्रवेश किया जाता है, यहाँ आठ फ़ीट मोटा तथा क़रीब एक फ़ीट ऊँचा स्वयंभू लिंग स्थित है। गर्भग्रह के अलावा जगमोहन तथा भोगमण्डप में सुंदर सिंहमूर्तियों के साथ देवी-देवताओं की कलात्मक प्रतिमाएं हैं।

इस मंदिर के बारे में एक धार्मिक कथा भी बहुत प्रचलित है। प्रचलित कथा के अनुसार, लिट्टी तथा वसा नाम के दो भयंकर राक्षसों का वध देवी पार्वती ने यहीं पर किया था। संग्राम के बाद उन्हें प्यास लगी, तो शिव जी ने कूप बनाकर सभी पवित्र नदियों को योगदान के लिए बुलाया। यहीं पर बिन्दूसागर सरोवर है तथा उसके निकट ही लिंगराज का विशालकाय मन्दिर है। कहते हैं कि मध्य युग में यहाँ सात हज़ार से अधिक मन्दिर और पूजास्थल थे, जिनमें से अब क़रीब पाँच सौ ही शेष बचे हैं। यह मंदिर वैसे तो भगवान शिव को समर्पित है, परन्तु शालिग्राम के रूप में भगवान विष्णु भी यहां मौजूद हैं।

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