Saturday, March 23, 2019

सुंदरकांड अर्थ सहित


जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा।
कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा ॥
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ।
तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥4॥
भावार्थ: उसने योजनभर (चार कोस में) मुँह फैलाया। तब हनुमान् जी ने अपने शरीर को उससे दूना बढ़ा लिया। उसने सोलह योजन का मुख किया। हनुमान् जी तुरंत ही बत्तीस योजन के हो गए॥4॥

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