Saturday, March 9, 2019

रामायण काल से ही स्थापित है शनिदेव का यह प्राचीन मंदिर

शनिदेव की टेढ़ी चाल से किसे डर नहीं लगता, उनके क्रोध से इंसान भी क्या देवता भी थर-थर कांपते हैं। शनिदेव की कृपा से रंक भी राजा बन जाता है और राजा रंक बन जाता है। शनिदेव की साढ़ेसाती के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए हमेशा विधि-विधान से मंदिर में जाकर शनि भगवान की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। यूं तो शनिदेव के कई सारे मंदिर हैं लेकिन उनमें से एक ऐसा मंदिर है जो बहुत ही प्रभावशाली है। यह मंदिर देश का ही नहीं बल्कि विश्व का इकलौता मंदिर है जो मुरैना के रिठौरा थाना क्षेत्र के ग्राम ऐंती के पास पर्वत पर स्थित है। 

यहां प्रत्येक शनिश्चरी अमावस्या के दिन लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से शनिदेव के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर में विराजमान शनिदेव की प्रतिमा त्रेतायुग के रामायण काल से ही स्थापित है। शनिदेव की मूर्ति स्थापना चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने की थी और उन्होंने ही शनिदेव की प्रतिमा के सामने ही हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की थी। ऐसा कहा जाता है कि शनिदेव की प्रतिमा का निर्माण आसमान से गिरे उल्कापिंड से हुई थी। शास्त्रों के अनुसार, जब लंकाधिपति रावण के निर्देशानुसार राक्षसों ने हनुमानजी की पूंछ में आग लगाई और जब हनुमानजी ने विधि के विधान अनुसार लंका दहन करना चाहा तो सफल नहीं हो सके थे। 



तब हनुमानजी ने अपनी योग शक्ति से इसका कारण जाना तो उन्हें पता चला कि उनके प्रिय सखा शनिदेव रावण के पैरों का आसन बने हुये है तथा शनिदेव के प्रभाव से ही लंका दहन नहीं हो पा रहा है। हनुमानजी ने अपनी बुद्धि चातुर्य से काम लेते हुये शनिदेव को लंकाधिपति रावण के पैरों के नीचे से मुक्त कराया और शनिदेव को तुरंत ही लंका से चले जाने को कहा। कई युगों तक रावण का बंधक बने रहने से शनिदेव इतने कमजोर और शक्तिहीन हो गये थे कि उन्हें सही से चला भी नहीं जा रहा था। 

तब हुनुमान जी ने अपनी शक्ति व ताकत से शनिदेव को भारत देश की ओर फेंक दिया,जो मुरैना जिले के ग्राम ऐंती के पर्वत पर गिरे जिसे अब वर्तमान में शनिपर्वत के नाम से जाना जाता है। इसके बाद शनिदेव ने हजारों वर्षों तक इस पर्वत पर घोर तप किया और अपनी पुरानी शक्तियों को हासिल कर लिया। शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना करने से शनिदेव प्रसन्न होते है। ऐंती ग्राम के इस प्राचीन शनि मंदिर पर प्रत्येक शनिश्चरी अमावस्या पर देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और शनिदेव के दर्शन कर अपनी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।

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