Wednesday, March 13, 2019

जानिए गणेश जी को क्यों चढ़ाई जाती है दूर्वा?

जब भी हमारे घर में कोई मंगल आयोजन होता है तो सबसे पहले गौरी पुत्र श्री गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान श्रीगणेश को सभी देवताओं में प्रथम पूज्य देव के रूप में पूजा जाता है। भगवान गणेश की पूजा करने से विद्या, यश, संतान, धन आदि की प्राप्ति होती है। यहां तक की भक्त को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। भगवान गणेश को कई तरह की मिठाइयां, फल, फूल आदि चढ़ाए जाते हैं लेकिन एक चीज और है जो गणेश जी को अति प्रिय है और वो है 'दूर्वा'। 

दूर्वा यानि दूब यह एक तरह की घास होती है जो गणेश पूजन में प्रयोग होती है। एक मात्र गणेश ही ऐसे देव है जिनको दूर्वा चढ़ाई जाती है। इक्कीस दूर्वा को इक्कठी कर एक गांठ बनाई जाती है तथा कुल 21 गांठ गणेश जी को मस्तक पर चढ़ाई जाती है। लेकिन क्या आपको पता है आखिर क्यों गणेश जी को दूर्वा चढ़ाई जाती है और क्या है इसकी पीछे की पौराणिक कथा। कथा के अनुसार, प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था। इस दैत्य के कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राही-त्राही मची हुई थी। 



अनलासुर ऋषि-मुनियों और आम लोगों को जिंदा निगल जाता था। दैत्य से त्रस्त होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे। सभी ने शिव जी से प्रार्थना की कि वे अनलासुर के आतंक का नाश करें। शिवजी ने सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल श्री गणेश ही कर सकते हैं। शिव जी ने कहा कि अनलासुर दैत्य का अंत करने के लिए गणेश को उसे निगलना होगा। तब क्या था शिव जी की आज्ञा पाकर गणेश जी निकल पड़े दैत्य का नाश करने के लिए। 

श्री गणेश ने अनलासुर को पकड़ा और उसे निगल गए, लेकिन उसे निगलते ही गणेश जी के पेट में जोरों की जलन होने लगी। सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों ने गणेश जी के पेट की जलन शांत करने के लिए कई प्रकार के उपाय किए, लेकिन उनके पेट की जलन शांत नहीं हुई। तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर श्रीगणेश को खाने को दी। जब गणेश जी ने दूर्वा ग्रहण की तो उनके पेट की जलन शांत हो गई। इसके बाद प्रसन्न होकर गणेश जी ने कहा कि जो भक्त मुझे दुर्वा अर्पित करेगा, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।

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