Wednesday, March 13, 2019

जानिए क्या है 'जागर'?

उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है, यहां हर कण-कण में देवी-देवता का निवास करते हैं। हमारी संस्कृति में देवी-देवताओं का महत्वपूर्ण स्थान है और हर कष्ट के निवारण के लिए यहीं देवी-देवता किसी इंसान के पवित्र शरीर के माध्यम से अपने भक्तों का कष्ट दूर करते हैं, उत्तराखंड में इस प्रक्रिया को जागर कहते हैं। जागर का मतलब होता है जगाना। उत्तराखण्ड तथा नेपाल के पश्चिमी क्षेत्रोँ में कुछ ग्राम देवताओँ की पूजा कि जाती है, जैसे गंगनाथ, गोलु, भनरीया, काल्सण आदि। बहुत देवताओँ को स्थानीय भाषा में 'ग्राम देवता' कहा जाता है। 



उत्तराखंड और डोटी के लोग देवताओं को जगाने के लिए ही जागर लगाते हैं। जागर में जगरिया मुख्य पात्र होता है, जो रामायण, महाभारत आदि धार्मिक ग्रंथों की कहानियों के साथ ही जिस देवता को जगाया जाता है उस देवता के चरित्र को स्थानीय भाषा में हुड्का (हुडुक), ढोल तथा दमाउ बजाते हुए वर्णन करता है। जगरिया के साथ दो तीन लोग भी रहते हैं, जो उसके साथ जागते है और कांसे की थाली को नगाडे की तरह बजाकर गाते हैं। जागर का दूसरा पात्र होता है, डंगरिया यानि 'डग मगाने वाला'। 

डंगरिया के शरीर में देवता चढ़ता है, जगरिया के जगाने पर डंगरिया कांपता है और जगरिया के गीतों की ताल पर नाचने लगता है। डंगरिया के आगे चावल के दाने रखे जाते हैं, जिसे वह हाथ में लेकर लोगों की समस्या का समाधान करते हैं। डंगरिया आदमी का भूत, भविष्य तथा वर्तमान सब कुछ सटिक बताता है। जागर का तीसरा पात्र होता है स्योँकार (सेवाकार) स्योँकार उसे कहा जाता है जो अपने घर अथवा मन्दिर में जागर कराता है और जगरीया, डगरीया लगायत अन्य लोगोँ के लिए भोजन पानी की पूरी व्यवस्था करता है। जागर कराने से स्योँकार को इच्छित फल की प्राप्ति होती है। 

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