Thursday, March 14, 2019

सुंदरकांड अर्थ सहित

जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥



भावार्थ : समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो (अर्थात्‌ अपने ऊपर इन्हें विश्राम दे)।

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