Tuesday, March 12, 2019

जब बाढ़ पीड़ितों के हालात देखकर रो पड़े नेताजी

बात उस समय की है जब भारत के स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। उस समय बंगाल बाढ़ की मार से जूझ रहा था और नेताजी अपने कुछ मित्रों के साथ उन बाढ़-पीड़ितों की सहायता कर रहे थे। बाढ़ की वजह से बहुत से गांव पूरी तरह डूबकर बर्बाद हो चुके थे, वहां के लोगों को हर समय बीमारियों और अन्न-वस्त्र के अभाव का सामना करना पड़ रहा था। इन्हीं कठिन परिस्थितियों में नेताजी उन बाढ़ पीड़ितों के बीच आए और दिन-रात उन लोगों की सेवा जुट गए।

एक दिन जब वह सेवा-कार्य के लिए घर से जा रहे थे, तब उनके पिताजी जानकीनाथ बोस ने उनसे पूछा कि बेटा तुम कहां जा रहे हो? आजकल तुम बहुत व्यस्त रहने लगे हो। तब नेताजी ने उत्तर दिया कि पिता जी मैं बाढ़-पीड़ितों की सेवा में लगा हुआ हूँ। बाढ़ की वजह से लोगों का घर तबाह हो गया है, लोग बेघर हो गए हैं। उनकी ऐसी हालत देखकर मेरा दिल रो उठता है।



इस पर नेताजी के पिताजी ने कहा कि सुभाष, मैं तुमसे सहमत हूं। लोगों की मदद जरूर करनी चाहिए। लेकिन ऐसा करने के लिए अपने कर्तव्यों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। अपने यहां दुर्गा-पूजन का भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इसमें मेरे साथ तुम्हारा होना भी बेहद आवश्यक है। तब पिता को जवाब देते हुए सुभाष ने कहा कि पिताजी, मुझे माफ कीजिए। मेरे लिए आपके साथ चलना संभव नहीं है। जब चारों ओर बाढ़ से हाहाकार मचा हुआ है, ऐसे में मेरे दिमाग में तो केवल एक ही विचार हर समय रहता है- किस तरह लोगों की अधिक-से-अधिक मदद की जाए।

नेताजी ने कहा कि मेरे लिए दीन-दुखियों में ही मां दुर्गा का वास है। मेरी पूजा के भागी यही लोग हैं। उनकी यह बात सुनकर पिता की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े और गदगद होकर उन्होंने सुभाष को गले से लगा लिया। देशभक्ति और सेवाभाव के लिए नेताजी बोस आज भी याद किए जाते हैं।


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