Tuesday, March 5, 2019

शक्ति का प्रयोग हमेशा दूसरों की भलाई के लिए करें

बात उस समय की है जब स्वामी रामकृष्ण परमहंस की ख्याति पूरे विश्व में फैली हुयी थी। लेकिन परमहंस जी इस ख्याति से कुछ योगी खुश नहीं थे और उन्हीं में से एक योगी ऐसा था जो स्वामी परमहंस जी को नीचा दिखाने और उनकी ख्याति को पूरे विश्व से खत्म करने का मन बना चुका था। एक दिन वह ईर्ष्यालु योगी स्वामी जी के पास गया और उनसे बोला कि अगर आप इतनी ख्याति प्राप्त करके संत बन गये हैं तो आज आप मुझे अपना चमत्कार दिखाइए। आपके पास ऐसा कौन-सा चमत्कार है कि लोग आपको परमहंस कहने लगे, ये आज आपको साबित करके दिखाना होगा।

इस पर स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने बड़े ही सहज भाव से जवाब दिया कि नहीं मित्र, मैं तो साधारण-सा मनुष्य हूं मेरे पास कोई चमत्कारी शक्ति नहीं है। इस पर योगी ने कहा कि नहीं, आप परमहंस है आज आपको साबित करके दिखाना होगा। हमारे सामने जो गंगा नदी बह रही है उस पर चल कर दिखाइये। तब मैं मान लूंगा की आप परमहंस है। इस पर स्वामी ने कहा, मैंने आपको पहले भी कहा है कि मैं साधारण व्यक्ति हूं आपको कोई गलतफहमी हुई है मैं पानी पर नहीं चल सकता।



स्वामी जी बात सुनकर उस योगी को गुस्सा आ गया और ऊचे स्वर में बोला, नहीं, आप परमहंस नहीं हो और ना ही आप परमहंस हो सकते क्योंकि मैंने पूरे 18 वर्षों में हिमालय पर घोर तपस्या की है। तब जाकर यह शक्ति प्राप्त की है। मैं जब चाहूं तब गंगा नदी पर चलकर इसे पार कर सकता हूं। यह बात सुनकर स्वामी परमहंस विन्रम भाव से बोले मित्र! आपने 18 साल बेकार कर दिये मुझे तो गंगा नदी पार करने के लिए मांझी को 2 पैसे देने होता है और वह गंगा पार करवा देता है।

जरा सोचो अठारह साल में आपने पानी पर चलने की सिद्धि प्राप्त की है, वह अठारह साल की कमाई क्या दो पैसे से अधिक है। योगी स्वामी परमहंस के आगे निरुत्तर हो गया। उसकी नजरें नीची हो गयी। स्वामी ने योगी को समझाया भले ही कोई संत साधना से सिद्धि प्राप्त कर ले पर कदापि, उसे उस शक्ति पर गर्व नहीं करना चाहिए। संत का धर्म होता है उस शक्ति का उपयोग हमेशा लोगों की भलाई के लिए करना।

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