Wednesday, February 13, 2019

जानिए किस पाप के कारण सबसे पहले हुई थी द्रौपदी की मृत्यु

गांधारी के कृष्ण को श्राप देने के बाद पूरा यदुवंश साम्राज्य समाप्त हो चुका था, उनके नाश की बात जानकर युधिष्ठिर को बहुत दुख हुआ। इसके बाद महर्षि वेदव्यास की आज्ञा लेकर द्रोपदी सहित पांडवों ने राज-पाठ त्याग कर परलोक जाने का निश्चय किया। युधिष्ठिर ने युयुत्सु को बुलाकर उसे संपूर्ण राज्य की देखभाल का भार सौंप दिया, और परीक्षित का राज्यभिषेक कर स्वर्ग की यात्रा पर निकल गए। युधिष्ठिर ने सुभद्रा से कहा कि आज से परीक्षित हस्तिनापुर का तथा वज्र जो श्री कृष्ण का पुत्र था इंद्रप्रस्थ का राजा है। अत: तुम इन दोनों पर समान रूप से स्नेह रखना। 

इसके बाद पांडवों ने अपने मामा वसुदेव व श्रीकृष्ण तथा बलराम आदि का विधिवत तर्पण व श्राद्ध किया। इसके बाद पांडवों व द्रौपदी ने साधुओं के वस्त्र धारण किए और स्वर्ग जाने के लिए निकल पड़े। रस्ते में पांडवों के साथ एक कुत्ता भी चलने लगा। अनेक तीर्थों, नदियों व समुद्रों की यात्रा करते-करते पांडव आगे बढऩे लगे और लालसागर तक आ गए। अर्जुन ने लोभ के कारण अपने गांडीव धनुष और अक्षय तरकस का त्याग नहीं किया, तभी वहां अग्निदेव उपस्थित हुए और उन्होंने अर्जुन से अपने अस्त्र त्यागने को कहा। अग्निदेव के कहने पर अर्जुन ने अपने अस्त्र त्याग दिये। 

पांडवों ने पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करने की इच्छा से उत्तर दिशा की ओर से यात्रा की और यात्रा करते-करते हिमालय तक पहुंच गए। हिमालय लाँघ कर पांडव आगे बढ़े तो उन्हें बड़े बड़े बालू का समुद्र दिखाई पड़े। इसके बाद उन्होंने मेरु पर्वत के दर्शन किए, पांचो पांडव द्रोपदी तथा के साथ-साथ वो कुत्ता तेजी से उनके साथ चल रहा था। तभी अचानक से द्रौपदी नीचे गिर गई, तभी भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि द्रौपदी ने तो कभी कोई पाप नहीं किया, तो फिर क्या कारण है कि वह नीचे गिर पड़ी। तब युधिष्ठिर ने बताया कि द्रौपदी हम सभी में अर्जुन को अधिक प्रेम करती थी। इसीलिए उनके साथ ऐसा हुआ है, ऐसा कहकर युधिष्ठिर द्रौपदी को देखे बिना ही आगे बढ़ गए। थोड़ी देर बाद सहदेव भी नीचे गिर गए। 



युधिष्ठिर ने सहदेव का गिरने का कारण बताया कि वह अपने जैसा विद्वान किसी को नहीं समझते थे इसी दोष के कारण उन्हें गिरना पड़ा है। कुछ देर बाद नकुल भी गिर पड़े भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने बताया कि नकुल अपने रूप पर बहुत अभिमान करते थे इसीलिए उनकी यह गति हुई है। थोड़ी देर के बाद अर्जुन भी गिरने पर युधिष्ठिर ने भीमसेन को बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर अभिमान था। अर्जुन ने कहा था कि एक ही दिन में शत्रुओं का नाश कर देंगे, लेकिन ओ ऐसा नहीं कर पाए। अपने अभिमान के कारण ही अर्जुन की यह हालत हुई। थोड़ा आगे चलने पर भीम भी गिर पड़े। तब युधिष्ठिर ने भीम को इसका कारण बताया कि वह बहुत खाते थे, और अपने बल का झूठा प्रदर्शन करते थे इसीलिए उन्हें भूमि पर गिरना पड़ा। यह कहकर युधिष्ठिर आगे चल दिए केवल वह कुत्ता ही उनके साथ चलता रहा। 

कुछ दूर चलकर ही युधिष्ठिर को स्वर्ग ले जाने के लिए देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आए। युधिष्ठिर कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आए। युधिष्ठिर ने कहा कि मेरा भाई और द्रौपदी मार्ग में गिर पड़े हैं, वह भी हमारे साथ चलें ऐसी कोई व्यवस्था कीजिए। तब इंद्र ने कहा कि वह सभी शरीर त्याग कर स्वर्ग पहुंचे हैं, लेकिन आप सशरीर स्वर्ग में जाएंगे। इंद्र की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता मेरा परम भक्त है, इसलिए इसे भी मेरे साथ स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए। लेकिन इंद्र ने कुत्ते को ले जाने से मना कर दिया, युधिष्ठिर ने इंद्र का काफी समझाया लेकन वो नहीं माने। 

तो कुत्ते के रूप में यमराज अपने वास्तविक रूप में आ गए। युधिष्ठिर को अपने धर्म में स्थित देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद देवराज इंद्र युधिष्ठिर को अपने रथ में बिठाकर स्वर्ग ले गए। स्वर्ग जा कर युधिष्ठिर ने देखा कि वहां दुर्योधन एक दिव्य सिंहासन पर बैठा है और वहां अन्य कोई नहीं है। यह देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि मेरे भाई और द्रौपदी जिस लोक में गए हैं, मैं भी वहां जाना चाहता हूं। मुझे उनसे अधिक उत्तम लोक की कामना नहीं है। देवताओं ने कहा कि यदि आपकी ऐसी इच्छा है तो आप आप इस देवदूत के साथ चले जाइए यह आपको अपने भाइयों के पास पहुंचा देगा। युधिष्ठिर उस देव दूध के साथ चले गए।

देवदूत युधिष्ठिर को ऐसे मार्ग से ले गया जो बहुत खराब था, वहां पर घोर अंधकार था और चारों तरफ से बदबू आ रही थी। इधर उधर मुर्दे दिखाई दे रहे थे, लोहे के चोच वाले कौवे और गीद्ध मंडरा रहे थे। वहां की दुर्गंध से तंग आकर युधिष्ठिर ने देवदूत से पूछा कि हमें इस मार्ग पर और कितनी दूर चलना है और उनके भाई कहां है? युधिष्ठिर की बात सुनकर देवदूत ने कहा की देवताओं ने कहा था कि जब आप थक जाएं, तो आपको लौटा लाऊं। यदि आप थक गए हो तो हम पुनः लौट चलते हैं। जब युधिष्ठिर वापस लौटने लगे तो उन्हें दुखी लोगों की आवाज सुनाई दी। वह सब युधिष्ठिर से कुछ देर वही रुकने के लिए कह रहे थे। युधिष्ठिर ने उनसे उनका परिचय पूछा तो उन्होंने बताया कि वह कर्ण, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी हैं। 

तब युधिष्ठिर ने देवदूत से कहा कि तुम देवताओं के पास लौट जाओ, मेरे यहां रहने से यदि मेरे भाइयों को सुख मिलता है तो मैं इस दुर्गम स्थान पर ही रहूंगा। देवदूत ने यह बात जाकर देवराज इंद्र को बता दी। युधिष्ठिर के कुछ समय उस स्थान पर बीतने के बाद सभी देवता वहां आ गए। देवराज इंद्र ने युधिष्ठिर को बताया कि तुमने अश्वत्थामा के मरने की बात कहकर छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विश्वास दिलाया था। इसी के परिणाम स्वरुप तुम्हें भी छल से कुछ देर नरक के दर्शन करने पड़े। अब तुम मेरे साथ स्वर्ग चलो, वहां तुम्हारे भाई पहले से ही पहुंच गए हैं। इस प्रकार युधिष्ठिर अपने भाइयों और द्रौपदी को स्वर्ग मेँ देख कर बहुत प्रसन्न हुए।

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