द्वविमौ ग्रसते
भूमिः सर्पो बिलशयानिवं। राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम्॥
जिस प्रकार बिल
में रहने वाले मेढक, चूहे आदि जीवों को सर्प खा जाता है, उसी प्रकार शत्रु का विरोध न करने वाले राजा
और परदेस गमन से डरने वाले ब्राह्मण को यह समय खा जाता है ।
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