Omsanatan
Saturday, August 3, 2019
कबीर दास जी के दोहे
हरिया जांणे रूखड़ा, उस पाणी का नेह।
सूका का
ठ न जानई, कबहूँ बरसा मेंह॥
अर्थ:
पानी के स्नेह को हरा वृक्ष ही जानता है.सूखा काठ – लकड़ी क्या जाने कि कब पानी बरसा? अर्थात सहृदय ही प्रेम भाव को समझता है. निर्मम मन इस भा
वना को क्या जाने ?
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