Omsanatan
Wednesday, May 22, 2019
कबीर दास जी दोहे
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
अर्थ:
कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो
कितनी गहरी पीड़ा
होती है
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